विवेकानन्द जी ने अपने गुरु से पूछा की हमें जीवन की जटिलता में कोई अपना उत्साह कैसे बनाये रखना चाहिए तब गुरु जी ने बताया कि
इसका सबसे अच्छा उपाय है कि उसे याद करो जो तुमने पाया है,जो हासिल नहीं हो सका उसे नहीं | तुम्हें कहाँ पहुचना कि बजाय की तुम कहाँ पहुँच गये हो इन्होने दुसरा सवाल पूछा कि कई बार मुझे लगता है कि मै बेकार मे प्राथनाएं कर रहा हूँ, इसका कोई अर्थ नहीं है |
परमहंस ने उत्तर दिया शायद तुम डर गये हो, इससे बचो | जीवन कोई समस्या नहीं है, जिसे तुम्हें सुलझाना है | मुझे लगता है कि तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है, तो जीवन बेहद आश्चर्यजनक और सुंदर है उन्होंने तीसरा सवाल किय कि हमारे हमेशा दुखी रहने का कारण क्या है?रामक्रष्ण बोले जीवन की जटिलता से परेशान होना लोगों की आदत बन गई है,यही प्रमुख वजह है लोग खुश नहीं रह पाते हैं | उन्होंने चोथा सवाल किय कि अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैंपरमहंस बोले -जिसे तुम दुःख कह रहे हो दरअसल वह एक परीक्षा है,परीक्षा से प्राप्त अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं | रगड़े जाने पर ही हीरे में चमक आती है | आग में तपने के बाद ही सोना शुद्ध होता है |विवेकानन्द ने वापस सवाल किया क्या इसका मतलब है दुःख से प्राप्त अनुभव उपयोगी होता हैआ ? इसके जबाव में गुरु देव बोलेबिल्कुल ठीक समझ रहे हो, अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है | पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है |
डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर