
स्वामी जी का मानना था देश के सभी नागरिकों को को धर्म नहीं रोटी चाहिए | स्वामी ने संदेश दिया कि पूरब की दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत धर्म से जुड़ी हुई नहीं है। उनके पास धर्म की कमी नहीं है, लेकिन भारत के लाखों पीड़ित जनता अपने सूखे हुए गले से जिस चीज के लिए बार-बार गुहार लगा रही है वो रोटी है। वो हमसे रोटी मांगते हैे, लेकिन हम उन्हें पत्थर पकड़ा देते हैं। भूख से मरती जनता को धर्म का उपदेश देना उसका अपमान है।सच्चाई तो यह ही ह कि स्वामी जी कभी भी किसी धर्म की उपेक्षा की थी वो तो सभी धर्मों संप्रदायों का सम्मान करते थे | हिंदू धर्म पर स्वामी विवेकानंद ने कहा कि हिंदू धर्म का असली संदेश लोगों को अलग-अलग धर्म संप्रदायों के खांचों में बांटना नहीं, बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में पिरोना है। उन्होंने कहा कि गीता में भगवान कृष्ण ने भी यही संदेश दिया था कि अवग-अलग कांच से होकर हम तक पहुंचने वाला प्रकाश एक ही है। ईश्वर ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लेकर हिंदुओं को बताया: मोतियों की माला को पिरोने वाले धागे की तरह मैं हर धर्म में समाया हुआ हूं… तुम्हें जब भी कहीं ऐसी असाधारण पवित्रता और असामान्य शक्ति दिखाई दे, जो मानवता को ऊंचा उठाने और उसे सही रास्ते पर ले जाने का काम कर रही हो, तो समझ लेना मैं वहां मौजूद हूं। विवेकानंद जी धार्मिक आडंबर वाद, कठमुल्लापन धर्मांधता और रूढ़ियों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने धर्म को मानव मात्र की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन-मनन किया था। उनका हिन्दू धर्म रूढ़िवादी एवं अतार्किक मान्यताओं मानने वाला नहीं था। स्वामीजी ने उस समय क्रांतिकारी एवं विद्रोही बयान देते हुए कहा कि “ इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मन्दिरों में स्थापित कर दिया जाये और मन्दिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाये “। उनका यह आह्वान आज भी एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है। उनके इस आह्वान को सुनकर उस समय सम्पूर्ण पुरोहित वर्ग की घिग्घी बंध गई थी। आज कोई नामी गिरामी साधु तो क्या सरकारी मशीनरी भी किसी अवैध मंदिर की मूर्ति को हटाने का जोखिम नहीं उठा सकती। विवेकानंद ने पुरोहितवाद, ब्राह्मणवाद, धार्मिक कर्मकांड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ाई और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विसंगतियों के खिलाफ युद्ध भी किया।
स्वामी जी मानते थे कि जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते।जब कभी दिल और दिमाग के टकराव में हमेशा अपने दिल की सुनो। उनके अनुसार आकांक्षा अज्ञानता और असमानता ही बंधन के जनक हैं | जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में खुद स्वयं से प्रेम कर सकता हूं तो दुसरो में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हूँ ?बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है कि लगातार पवित्र विचार करते रहे ।सही मायनों में उस आदमी ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है जो आदमी किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता है | स्वामीजी के मुताबिक़ वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं।
स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है भारतीयों को याचक नहीं बनना चाहिये। स्वामी विवेकानंद का यह कथन अपने देश की धरोहर के लिये दम्भ का बड़बोलापन नहीं था किन्तु एक सच्चे वेदांत संत की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी।स्वामी विवेकानन्द परमात्मा में विश्वास से अधिक अपने आप पर विश्वास करने को अधिक महत्व देते थे। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में हमारे चारो ओर घटने वाली छोटी या बड़ी, सकारात्मक या नकारात्मक सभी घटनायें हमें अपनी असीम शक्ति को प्रकट करने का अवसर प्रदान करती है।
स्वामीजी के मुताबिक़ विनम्रता से किसी भी जटिल परिस्थिति को हल्का किया जा सकता है और प्रेम के धागे को टूटने से बचाया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद के मन में हमेशा अपने आपसे यह सवाल करते थे कि क्या सच में भगवान है? रामकृष्ण जी ने उनके इस प्रश्न के उत्तर में कहा, “हाँ, मैंने भगवान को देखा है ठीक वैसे ही जैसे अभी मैं तुम्हें देख रहा हूँ। भगवान तो हर जगह व्याप्त है, बस तुम्हें उन्हें देखने के लिए वो दृष्टि चाहिए” | अपने गुरु की बात सुनकर उनको विश्वास हो गया कि ईशवर है | स्वामीजी ने अपना सारा जीवन अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस देव को समर्पित कर दिया | रामक्रष्ण जी ने अपनी महा समाधी लेने पूर्व अपने शिष्य नरेन्द्र को अपने सीने से लगाकर कहा आज मेने अपनी सारी साधना और सिद्धियां को तुम्हें सुपर्द कर दिया और में खाली हो गया हूँ | |एक दिन शारदा मां ने स्वामी विवेकानंद से कहा पुत्र मुझे चाकू लाकर दो। स्वामी विवेकानंद चाक़ू लेकर आए और उसकी धार को अपनी तरफ़ रखा और पकड़ने वाले हिस्से को माँ की तरफ़ किया। उनकी माताजी उनसे काफ़ी प्रसन्न हुई और बोली कि अब तुम समाज के उत्थान के लिए काम कर सकते हो। उन्होंने माँ शारदा से उनके इस सोच का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा: जिस तरह से तुमने मुझे छूरी पकड़ाई, तुमने धार को अपनी तरफ़ रखा ताकि मुझे चोट न पहुंचे और तुमने हत्थे को मेरी ओर किया, यह तुम्हारी दयालुता और कृपालुता का प्रमाण है।
वर्ष 1921 में महात्मा गाँधी बेलूर मठ की यात्रा पर आये थे और उन्होंने स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि के उपलक्ष में कहा था: “मैंने काफ़ी गंभीरता से स्वामीजी के काम को देखा है और वो देख कर मेरे मन में मेरे देश के लिये मेरा प्रेम पहले से हज़ार गुणा अधिक बढ़ गया है। मैं यहाँ आये नौजवानों से निवेदन करता हूँ कि वे स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से कुछ हासिल किये बिना न जाएँ |
एक बार अंग्रेजों ने भारतीय परिधान पर व्यंग्य करते हुए कहा था की आपकी वेशभूषा बहुत “असभ्य” हैं। इस पर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा, “आपकी संस्कृति में, कपड़ों से आदमी की पहचान होती है लेकिन हमारी संस्कृति में कपड़ों से नहीं वरन चरित्र से व्यक्ति की पहचान होती है”। स्वामीजी ने बतलाया कि “जब हम पृथ्वी में एक बीज को बोते हैं तो उसके चारों ओर हवा और पानी की व्यवस्था भी करते हैं। लेकिन क्या वो बीज पृथ्वी, हवा या जल बन जाता है? नहीं। बीज हवा, पानी और पृथ्वी को आत्मसात करता है और इनके सहयोग से स्वयं का विकास करता है और पौधे के रूप में विकसीत होकर बढ़ता है। ठीक ऐसा धर्म के मामले में भी है | एक हिंदू को मुसलमान नहीं बनना चाहियें और ना ही मुसलमान को हिन्दू | एक इसाई को हिंदू या बोद्ध नहीं बनना चहिए और न ही किसी हिंदू या बौद्ध को इसाई बनना चाहिए। लेकिन प्रत्येक को दुसरे धर्म का सम्मान अवश्य करना चाहिए | हर आदमी को अपनी आस्था के मुताबिक अपने धर्म का पालन करना चाहिये |
स्वामी जी के मुताबिक़ मुस्कुराहट हंसी मजाक में हर संघर्ष और प्रतिकूल स्थिति को बदलने की क्षमता है। मुस्कुराहट हंसी मजाक विवेकवान आदमी का लक्षण है। यदि आप हास्यवान व्यक्ति हैं तो आप हर स्थिति में ख़ुद को ढाल सक सकते हैं और अपने विरोधियों के मन को भी आप जीत सकते हैं।
किसी ने ठीक ही कहा है यदि आप स्वामीजी की पुस्तक को लेटकर पढ़ोगे तो सहज ही उठकर बैठ जाओगे। बैठकर पढ़ोगे तो उठ खड़े हो जाओगे और जो खड़े होकर पढ़ेगा वो व्यक्ति सहज ही सात्विक कर्म में लग कर अपने लक्ष्य पूर्ति हेतु ध्येय मार्ग पर चल पड़ेगा। स्वामीजी की शिष्या अमेरीका की लेखक लिसा मिलर “ वी आर आल हिन्दूज नाऊ” शीर्षक के लेख में बताती है वैदऋग“ सबसे प्राचीन ग्रंथ कहता है कि सत्य एक ही है |
जहाँ विवेकानंद जी की धर्म संसद विश्व धर्म संसद थी वहीं दुसरी तरफ हाल में हरिद्वार और रायपुर में आयोजित धर्म संसद वैश्विक नहीं थी। यहां तथाकथित संतों और धर्मान्धता से ग्रसित लोगों ने जहर उगला और केवल हत्या घृणा और नरसंहार की बातें कीं। महात्मा गांधी की निंदा करते हुए उनके हत्यारे की प्रशंसा की गई। एक वक्ता ने कहा कि उन्होंने देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह के सीने में रिवॉल्वर खाली कर उनको मार डालने की लज्जाजनक बात की क्योंकि उन्होंने 2006 में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। हरिद्वार और रायपुर के भाषणों की निंदा केवल इसलिए ही नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वे वैमनस्य पैदा करते हैं। वे वैमनस्य तो पैदा करते ही हैं, लेकिन साथ ही मौलिक तौर पर विवेकानंद द्वारा स्थापित हिंदुत्व का विरोध करते हैं। इन तथाकथित संतों का हिंदुत्व स्वामी विवेकानंद के हिन्दुत्त्व से बिलकुल भिन्न है | अब तो ऐसा मालूम होता है कि वास्तव के अंदर हिंदू और और हिन्दुत्व अलग अलग ही है | विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास वैमनस्यता के बजाय उनके बीच प्रेम विश्वास को मजबूत बना कर ही हम देश को मजबूत बना सकते हैं | अनुसार विभिन्न स्वामी जी कहते थे कि आर्थिक समृद्धि की नींव सामाजिक पूंजी है जो विश्वास और सामाजिक सद्भाव पर बनती है। वर्तमान मान के शासक कटेगे तो मरोगे और एक रहोगे तो नेक बनोगे का नारा देकर भारतियों को बाटने का घ्रणित काम करके खुद को हिदुत्व का ठेकेदार बतलाने की कोशिस करके लोगो को विश्व गुरु बनाने का झूठा सपना दिखा कर बेवकूफ बनाने का प्रयास करते हैं |
इतिहास साक्षी है कि युग प्रवर्तक और मनुष्य का जीवन काल साधारणतः अल्पकालीन ही होता हे, ऐसे ही युग प्रवर्तकों में स्वामी विवेकानंद जी भी थे | उन्होंने अपने उन्तालीस वर्ष की अल्पायु (12 जनवरी 1863से 4 जुलाई 1902) में जो काम किये उसके लिये मानव मात्र हजारों साल तक उन्हें याद करेगा । स्वामी विवेकानंद जी के अंतिम शब्द थे हो सकता है मै अपने फटे हुए वस्त्र की तरह शरीर को उतार फेंकू और मेरा शरीर छोड़ दु परंतु मेरा काम नही रुकेगा। विवेकानन्द जी के शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन यानि 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला था उन्होंने उस दिन घंटों तक ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेद कर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चंदन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अंतिम संस्कार हुआ था। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की। समय के साथ यह बात सही साबित हो गई है कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक के राष्ट्र निर्माण के समस्त प्रयत्नों में स्वामी जी के कार्यों और शिक्षाओं का अमूल्य योगदान रहा है और आगे भी रहेगा रहेगा | भारत के अध्यात्म, धर्म, दर्शन और सांस्कृतिक गौरव को विश्व मे प्रतिष्ठित करते हुए मानवता के कल्याण और राष्ट्र पुनरुत्थान के प्रति जीवन समर्पित कर देने वाले प्रेरक स्वामी जी का जीवन और ओजस्वी संदेश आज भी हमे जीवन का सही दिशा में मार्ग प्रशस्त कर रहे है। स्वामी जी कहते थे कि आर्थिक समृद्धि की नींव सामाजिक पूंजी है जो विश्वास और सामाजिक सद्भाव पर बनती है।
विडम्बना है की जहाँ विवेकानंद जी की धर्म संसद विश्व धर्म संसद थी वहीं दुसरी तरफ हाल में हरिद्वार और रायपुर में आयोजित धर्म संसद वैश्विक नहीं थी। यहां तथाकथित संतों और धर्मान्धता से ग्रसित लोगों ने जहर उगला और केवल हत्या घृणा और नरसंहार की बातें कीं। महात्मा गांधी की निंदा करते हुए उनके हत्यारे की प्रशंसा की गई। एक वक्ता ने कहा कि उन्होंने देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह के सीने में रिवॉल्वर खाली कर उनको मार डालने की लज्जाजनक बात की क्योंकि उन्होंने 2006 में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। हरिद्वार और रायपुर के भाषणों की निंदा केवल इसलिए ही नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वे वैमनस्य पैदा करते हैं। वे वैमनस्य तो पैदा करते ही हैं, लेकिन साथ ही मौलिक तौर पर विवेकानंद द्वारा स्थापित हिंदुत्व का विरोध करते हैं। इन तथाकथित संतों का हिंदुत्व स्वामी विवेकानंद के हिन्दुत्त्व से बिलकुल भिन्न है | अब तो ऐसा मालूम होता है कि वास्तव के अंदर हिंदू और और हिन्दुत्व अलग अलग ही है | विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास वैमनस्यता के बजाय उनके बीच प्रेम विश्वास को मजबूत बना कर ही हम देश को मजबूत बना सकते हैं |
परम पूज्य स्वामी जी के 162 वें जन्म दिन के पावन अवसर पर हम सभी को उनके द्वारा बताये गये मार्ग का अनुसरण करने का संकल्प लेना चाहिये | स्वामी विवेकानंद जी की जन्मतिथि को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हमारे देश में मनाया जाता है। स्वामीजी सेकड़ो सालो से हमारे लिये लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहे हैं और आगे भी रहेंगे।
डा जे के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा, जयपुर