नवरात्रि : शक्ति, साधना और आत्ममंथन

जयपुर। नवरात्रि का आगमन हर वर्ष हमें स्मरण कराता है कि सृष्टि का आधार केवल पुरुषार्थ नहीं, अपितु स्त्री-शक्ति भी है। नौ रातों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना हमें यह सिखाती है कि जीवन के हर अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना संभव है, यदि भीतर जाग्रत शक्ति का संधान किया जाए। … Read more

आदर्श शासन-व्यवस्था और समाजवाद के प्रणेता थे अग्रसेन

अग्रसेन जयन्ती- 22 सितम्बर, 2025 महाराजा अग्रसेन भारतीय संस्कृति और इतिहास के उन दिव्य शासकों में गिने जाते हैं जिनकी शासन-कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रही। उनका लोकहितकारी चिन्तन कालजयी हो गया। उन्होंने न केवल जनता बल्कि सभ्यता और संस्कृति को भी समृद्ध और शक्तिशाली बनाया। उनकी विलक्षण एवं आदर्श शासक-प्रणाली और उसकी दृष्टि … Read more

समाजवाद के प्रणेता अहिंसावादी प्रथम वैश्य सम्राट महाराजा अग्रसेन

निर्विवाद रूप से किसी भी राष्ट्र या समाज एवं परिवार को उन्नत विकसित और कल्याणकारी बनाने के लिये उसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तम्भों का मजबूत होना अति आवश्यक है | इन चारों स्तंभों को दृढ़ करके ही राष्ट्र को प्रगतिशील एवं विकसित देश बनाया जा सकता है |लगभग 5146 वर्ष पूर्व महाराजा अग्रसेनजी इन्हीं चार स्तंभों को मजबूत कर समर्द्धशाली, कल्याणकारी समाजवादी … Read more

*हम लेकर चलेंगे पैगाम बंधुता का*

21 सितंबर अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस *बाबूलाल नागा*    हर साल वर्ष 21 सितंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस/विश्व शांति दिवस मनाया जाता है। इस दिन यूनाइटेड नेशनल जनरल असेंबली (यूएनआई) राष्ट्रों और लोगों के बीच अहिंसा, शांति और युद्धविराम के आदर्शों को बढ़ावा देने के प्रयास करती है। आपसी बंधुता तथा सौहार्द को … Read more

युद्ध-आतंक के दौर में शांति के लिये भारत की पुकार

अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस- 21 सितम्बर, 2025 अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, जिसे प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है, आज के समय की सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता की याद दिलाता है। जब पूरी दुनिया युद्ध, हिंसा, आतंकवाद, जलवायु संकट और असमानताओं के दौर से गुजर रही हो, तब शांति का महत्व केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व … Read more

लाखों भारतीय ट्रंप के एच1बी वीजा बम से सीधे प्रभावित होंगे

टैरिफ को लेकर मची खलबली के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। उन्होंने एच-1बी वीजा पर वार्षिक 1,00,000 डॉलर की नई फीस लगाने की घोषणा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में जिस एग्जिक्यूटिव ऑर्डर पर साइन किया है, उससे एच-1बी वीजा व्यवस्था में बड़े बदलाव आए हैं। अब से कोई भी व्यक्ति अमेरिका जाने के लिए एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करेगा, तो उसके नियोक्ता को प्रोसेसिंग शुल्क के रूप में 1 लाख डॉलर (करीब ₹83 लाख) का भुगतान करना होगा। व्हाइट हाउस का कहना है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है और केवल अत्यंत कुशल विदेशी कामगार ही अमेरिका आ पाएंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारतीयों पर पड़ेगा, क्योंकि एच-1बी वीजा धारकों में भारत की हिस्सेदारी 70 प्रतिषत से अधिक है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा व्यवस्था में एक ऐतिहासिक बदलाव की मुहर लगा दी है। अब 21 सितंबर 2025 से, कोई भी विदेशी कार्यकर्ता अमेरिका की भूमि पर कदम रख सकेगा तभी, जब उसके स्पॉन्सरिंग नियोक्ता ने भारी शुल्क एक लाख डॉलर अदा किया हो। यह नियम मुख्यतः नए आवेदकों पर लागू होगा, परंतु जो पहले से वीजा धारक हैं और विदेश जाकर पुनः स्टैंपिंग करवाएंगे, उन्हें भी इसका सामना करना पड़ेगा। अब तक यह शुल्क मामूली-लगभग 1,500 डॉलर-रहता था, किंतु अब इसकी वृद्धि अभूतपूर्व है। यदि हर पुनः प्रवेश पर यह शुल्क लागू हुआ, तो तीन वर्षों में इसकी लागत अनेक लाखों डॉलर तक पहुँच सकती है। इस निर्णय की गूँज भारतीय प्रतिभाओं के लिए सबसे अधिक सुनाई देगी, क्योंकि एच-1बी वीजा धारकों में भारत की हिस्सेदारी सर्वाधिक है। हाल के वर्षों में एच-1बी वीजा का लाभ सबसे अधिक भारतीयों को मिला-करीब 71-73 प्रतिषत वीजा भारत को मिले, जबकि चीन का हिस्सा मात्र 11-12 प्रतिषत तक सीमित रहा। केवल 2024 में ही भारतवासियों को 2 लाख से अधिक एच-1बी वीजा प्रदान किए गए। अब विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि केवल 60,000 भारतीयों पर इसका तत्काल असर पड़े, तो सालाना वित्तीय बोझ 6 बिलियन डॉलर यानी लगभग ₹53,000 करोड़ तक पहुंच जाएगा। मध्यम स्तर के इंजीनियर, जो अमेरिका में सालाना 1.2 लाख डॉलर अर्जित करते हैं, उनके लिए यह भारी शुल्क उनकी आय का लगभग 80 प्रतिषत निगल जाएगा। छात्र, शोधकर्ता और युवा प्रतिभाएँ-जो अपने सपनों और ज्ञान के साथ अमेरिका की ओर बढ़ रहे थे-उनके लिए यह रास्ता लगभग बंद सा हो जाएगा। इस फैसले की छाया केवल आर्थिक नहीं, बल्कि वैश्विक प्रतिभा और भविष्य के करियर पर भी गहरी और स्थायी छाप छोड़ती है। ट्रंप का कहना है कि यह कदम वीजा प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने और अमेरिकी कंपनियों को अपने ही स्नातकों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रेरित करने की दिशा में उठाया गया है। व्हाइट हाउस के अधिकारी इसे घरेलू नौकरियों की सुरक्षा की ओर एक साहसिक और निर्णायक प्रयास के रूप में देख रहे हैं। अब बड़ी कंपनियाँ विदेशी कर्मचारियों को सस्ते दामों पर काम पर नहीं रख पाएंगी, क्योंकि उन्हें पहले सरकार को भारी शुल्क एक लाख डॉलर अदा करना होगा, और फिर कर्मचारी को उसका वेतन देना होगा। इस नए आर्थिक बोझ ने विदेशी कर्मचारियों के रास्ते को कठिन और चुनौतीपूर्ण बना दिया है। नियमों के अनुसार, एच-1बी वीजा अब अधिकतम छह वर्षों के लिए ही मान्य रहेगा, चाहे वह नया आवेदन हो या नवीनीकरण। आदेश में साफ कहा गया है कि इस वीजा का पहले दुरुपयोग हो रहा था, जिससे अमेरिकी कामगारों और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता था। अब यह व्यवस्था कड़े और न्यायसंगत रूप में लागू होगी, ताकि केवल योग्य, सक्षम और वास्तविक प्रतिभा ही अमेरिका की भूमि पर कदम रख सके। टैरिफ को लेकर पहले से ही बना तनाव भारत-अमेरिका के राजनीतिक रिश्तों पर भी अपनी गहरी छाया डाल सकता है। भारत सरकार इस मसले को कूटनीतिक मंच पर उठाएगी, क्योंकि लाखों भारतीय इस फैसले से सीधे प्रभावित होंगे। ट्रंप अपने मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि वह अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के लिए कटिबद्ध हैं, किंतु इसके पीछे छिपा असर भारत के साथ साझेदारी और तकनीकी सहयोग पर नकारात्मक पड़ सकता है। इस निर्णय की गूँज केवल आर्थिक मोर्चे तक सीमित नहीं है, यह द्विपक्षीय संबंधों और वैश्विक तकनीकी संगठनों के भविष्य पर भी अपनी छाप छोड़ती प्रतीत होती है। अब 85,000 वार्षिक एच-1बी कोटे-65,000 सामान्य आवेदकों और 20,000 उच्च डिग्री धारकों के लिए-पर यह भारी शुल्क लागू होगा। छोटी कंपनियाँ और नए स्नातक पीछे हट सकते हैं, और नियोक्ता केवल उच्च वेतन वाले विशेषज्ञों को ही स्पॉन्सर करेंगे, जिससे अवसर और भी संकरे, और दुर्लभ हो जाएंगे। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम अमेरिका की नवाचार शक्ति पर कर लगाने जैसा है, इससे वैश्विक प्रतिभाएँ अमेरिका आने से कतराएँगी। परिणामस्वरूप, कंपनियाँ नौकरियों को विदेश ले जा सकती हैं, जिससे न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था बल्कि भारतीय पेशेवर भी गहराई से प्रभावित होंगे। कहा जाता है कि भारत अमेरिका को केवल सामान नहीं, बल्कि अपनी प्रतिभाशाली मानव संसाधन-इंजीनियर, कोडर और छात्र भी “निर्यात” करता है। अब जब यह शुल्क भारी और असहनीय हो गया है, तो भारतीय प्रतिभाएँ अपना रुख यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और मिडिल ईस्ट की ओर कर सकती हैं, जहाँ उनके सपनों और कौशल को खुले आसमान के नीचे उड़ान भरने का अवसर मिलेगा। लेखक – ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा (Brahmanand Rajput), Agra On twitter @33908rajput On facebook – facebook.com/rajputbrahmanand E-Mail :– brhama_rajput@rediffmail.com

अल्ज़ाइमर: स्मृति हृास की वैश्विक चुनौती

विश्व अल्ज़ाइमर दिवस- 21 सितम्बर, 2025 मस्तिष्क और स्मृति की उपेक्षा से बढ़ रहा स्मृति लोप का रोग दुनिया की एक बड़ी गंभीर समस्या हैं। याददाश्त हर उम्र के व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी पूंजी है। तेज़-तर्रार और तनावग्रस्त जीवन ने शरीर और आत्मा दोनों को उपेक्षित कर दिया है। अल्ज़ाइमर की चुनौती हमें याद … Read more

एक ग़ज़ल हालात पर

भरभरा कर गिर पड़ीं इमारतें सभी इतिहास की करनी निज़ाम की देखिए बायस है उपहास की फूंक कर करोड़ों की दौलत शाह-ए-आलम खुश हैं सारे व्यवस्था ही करवा दी होती कुछ बेघरों के आवास की हैं फ़क़त बयानबाजियां और इल्ज़ामों पर इल्ज़ाम हैं झेल रही आवाम नतीजे सियासती बकवास की सड़ रहे हैं सभा सदन, … Read more

लोकतंत्र का ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ मीडिया को संवैधानिक दर्जा क्यों नहीं?

–बाबूलाल नागा    भारत में मीडिया को लोकतंत्र का ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ कहा जाता है। पर क्या लोकतंत्र के इस ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ को वो संवैधानिक दर्जा है जो बाकी तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को है। आमतौर पर मीडिया को लोकतंत्र का ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ चलन-प्रचलन के तौर पर कहा जाता है। लेकिन संवैधानिक रूप से मीडिया कहीं भी ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ के रूप में उल्लेखित … Read more

आतिशबाजी रहित उत्सवों की परम्परा का सूत्रपात हो

पर्यावरण संकट हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों की लगातार हो रही क्षति ने जीवन को असहज और असुरक्षित बना दिया है। यह संकट किसी दूर के भविष्य की चिंता नहीं है, बल्कि हमारे रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रहा है। राजधानी दिल्ली इसका … Read more