भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में क्राउडफंडिंग का प्रयोग अधिक देखने में आ रहा है। अभावग्रस्त एवं गरीब लोगों के लिये यह एक रोशनी बन कर प्रस्तुत हुआ है। असाध्य बीमारियों एवं कोरोना महामारी के पीडितों के महंगे इलाज के कारण गरीब, अभावग्रस्त एवं जरूरतमंद रोगियों की क्राउडफंडिंग के माध्यम से चिकित्सा-सहायता के अनेक उदाहरण सामने आये हैं। निःशुल्क धन उगाहने वाले यानी बिना किसी शुल्क के भारत के मरीजों के लिए क्राउडफडिंग एक प्रभावी प्लेटफॉर्म बनकर प्रस्तुत हुआ है जहां विभिन्न असाध्य बीमारियों से जुड़े मरीजों के इलाज के लिए क्राउडफडिंग के माध्यम से सभी प्रकार की धनराशि उपलब्ध करायी जा रही है- चाहे वह कोविड-19 हो या कैंसर, अंग प्रत्यारोपण हो या असाध्य बीमारियों में आपात चिकित्सा की स्थितियों का सामना कर रहे रोगी। विशेषतः गरीब एवं जरूरतमंद बच्चों के इलाज के लिये, उनकी आर्थिक अपेक्षा की पूर्ति में क्राउडफंडिंग एक रोशनी बना है और ऐसे बीमार बच्चों के अभिभावकों को बड़ी राहत मिली है।
डिजिटल क्राउडफंडिंग की प्रौद्योगिकी के कारण दाताओं तक पारदर्शी रूप से धन उगाहने के कारण की जानकारी प्रदान करना और स्वैच्छिक दान मांगना आसान हुआ है। वर्तमान में, निजी संस्थाओं द्वारा डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से डिजिटल धन उगाहने-क्राउडफंडिंग को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने के लिए भारत सरकार द्वारा कोई कानून या शासनादेश नहीं बना है। डिजिटल क्राउडफंडिंग की प्रभावशीलता और जरूरतमंदों के लिए स्वैच्छिक दान इकट्ठा करने की इसकी क्षमता को स्वीकार करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने खुद भारत सरकार को क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म तैयार करने का निर्देश दिया था, जो दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए धन जुटाने में मदद का सके, जिससे राष्ट्रीय दुर्लभ रोगों के इलाज में आर्थिक मदद मिल सके। जिसमें माननीय न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने डिजिटल क्राउडफंडिंग की क्षमता और महत्व को पहचाना और दुर्लभ बीमारियों के क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म ‘दुर्लभ रोगों के रोगियों के लिए क्राउडफंडिंग और स्वैच्छिक दान के लिए डिजिटल पोर्टल’ के प्रचार के लिए एक योजना तैयार करने का आह्वान किया। आवश्यकता इस बात की है कि क्राउडफंडिंग के लिये और उसके प्रौद्योगिक मंचों के लिये कानून बनाने की आवश्यकता है। एक स्वतंत्र सरकारी तंत्र बनाया जाकर इन प्रौद्योगिक मंचों के लिये पंजीकरण की व्यवस्था बनाकर उन्हें कानून सम्मत तरीके से काम करने की व्यवस्था बनना देश के लिये उपयोगी एवं प्रासंगिक है। ताकि कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत अपना योगदान प्राप्त करने के लिए शीर्ष निजी कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के बीच दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति बनाकर परोपकार के इस कार्य को सुगमता से किया जा सके।
न्यायालय के इस निर्देश की अनुपालना में भारत सरकार एवं राज्यों की सरकारें, विशेषतः राजस्थान सरकार ने दुर्लभ रोगों के रोगियों के लिए क्राउडफंडिंग और स्वैच्छिक दान के लिए डिजिटल पोर्टल बनाये हैं। जिन पर दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों/व्यक्तियों के लिए जनता से धन उगाहने के लिये बच्चों से संबंधित तस्वीरें और बीमारी की जानकारी प्रदर्शित की जा रही है। प्रश्न है कि जब सरकारें गंभीर बीमारियों से पीड़ित बच्चों की तस्वीरें लगाकर उनके इलाज के लिये धन उगाहने का काम कर रहे हैं तो निजी प्रौद्योगिक मंचों के लिये वहीं कार्य ‘भीख’ एवं ‘अपराध’ कैसे हो सकता है? जबकि नाबालिगों यानी 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के मामले में माता-पिता की स्वैच्छिक स्पष्ट सहमति ली जाती है। भारत में ऐसे बीमार बच्चों के चिकित्सा उपचार के लिए धन उगाहने वाले इस तरह के क्राउडफंडिंग अभियानों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, जो बड़ी राहत का सबब भी बन रहे हैं। इसके अलावा, क्राउडफंडिंग मंच उन दानदाताओं के साथ धन उगाहने के कारणों की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उक्त बच्चों के संबंध में तथ्यपरक एवं प्रासंगिक जानकारी भी प्रदर्शित करता है जो बच्चों की मदद के लिए स्वैच्छिक दान करने के इच्छुक लोगों को प्रेरणा का काम करती हैं, जो उक्त बच्चों के जीवन को बचाने के लिए वित्तीय सहायता यानी चंदा (दान) प्राप्त करने में सहायक होती है। इन सब स्थितियों के बावजूद पुलिस की दृष्टि में यह दान या चंदा भीख कैसे हो गया? विशेष पुलिस महानिरीक्षण ने अपने पूर्वाग्रहों के चलते जेजे अधिनियम की गलत व्याख्या करते हुए बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के माता-पिता के अधिकार को छीन लेने की कुचेष्ठा की है। इससे चिकित्सा के लिए वित्तीय सहायता की कमी के कारण बच्चों के जीवन का नुकसान हो सकता है। यह एक तरह से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन हुआ है।
जेजे अधिनियम के तहत भीख मांगने की परिभाषा का अर्थ समझना होगा, जिसमें बच्चों की विकृत एवं वीभत्स तस्वीरें सार्वजनिक रूप से उजागर करते हुए भीख प्राप्त करना या जबरन वसूली से संबंधित है। उक्त जेजे अधिनियम की धारा 2(8) के तहत भीख मांगना और सोशल मीडिया पर बीमार बच्चों की तस्वीरें प्रदर्शित करके क्राउडफंडिंग द्वारा धन प्राप्त करना दो अलग-अलग पहलू हैं और इन्हें एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। धारा 76 के तहत नाबालिग के मामले में वित्तीय मदद जुटाने के लिए क्राउडफंडिंग को ‘भीख’ कहना अनुच्छेद 21 के तहत इन बच्चों और उनके माता-पिता के जीवन और स्वास्थ्य के संवैधानिक अधिकार का अपमान है। जेजे अधिनियम की व्याख्याओं पर विचार किया जाए तो न केवल क्राउडफंडिंग के प्रौद्योगिक मंच बल्कि भारत सरकार और राजस्थान सरकार के साथ-साथ बीमार बच्चों के भोले-भाले माता-पिता/अभिभावक धारा 76 (2) के तहत अपराध करने के दोषी होंगे। इसलिए, माता-पिता/अभिभावक की स्वैच्छिक सहमति से बीमार बच्चों के इलाज के लिए डिजिटल क्राउडफंडिंग अभियान के तहत बच्चों की तस्वीरों को प्रदर्शित करने हुए सहायता प्राप्त करना भीख नहीं है और इसे जेजे अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन भी नहीं माना जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रभावी एवं सस्ती चिकित्सा व्यवस्था स्थापित करने के लिये आयुष्मान भारत योजना लागू की, जिसके अन्तर्गत हर व्यक्ति को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया गया है, लेकिन सरकार के साथ-साथ इसके लिये आम व्यक्ति को भी जागरूक एवं सहभागी होना होगा ताकि असाध्य बीमारियों से पीड़ित गरीब बच्चों एवं रोगियों को अर्थ के अभाव में जीवन से हाथ न धोना पड़े, इसके लिये क्राउडफंडिंग एक सशक्त माध्यम है, चंदा उगाहने एवं सहायता प्राप्त करने की इस नई विधा को अंधेरों में धकेलने की बजाय उसे न्यायसम्मत बनाने एवं उसकी समुचित वैधानिक प्रक्रिया को लागू करने की जरूरत है। ऐसा करना सरकार की जिम्मेदारी है और इसमें मोदी सरकार उचित कदम उठाकर महंगे इलाज में दम तोड रहे गरीब एवं अभावग्रस्त लोगों के लिये रोशनी बने, ऐसी अपेक्षा है।
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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