खिलाड़ी कोई भी हो, देश का मान-सम्मान होते हैं। कोई भी देश हो वह हमेशा अपने खिलाड़ियों पर गर्व करता है, क्योंकि खिलाड़ी तमाम मुश्किलें झेलते हुए अपनी अथक मेहनत और बहुत कुछ सहकर देश के लिए पदक जीतते हैं। वास्तव में खिलाड़ियों की जीत ही देश की जीत होती है लेकिन आज खिलाड़ी उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न को लेकर सड़क पर उतर आए हैं, यह बहुत ही गंभीर व संवेदनशील है कि आज खिलाड़ियों की आवाज़ को अनदेखा किया जा रहा है। वास्तव में, यौन उत्पीड़न के आरोप बड़े गंभीर आरोप होते हैं और इन आरोपों पर प्रारंभिक जांच की जरूरत है। हाल ही में दिल्ली पुलिस ने उच्चतम न्यायालय में कहा है कि भारतीय कुश्ती महासंघ(डब्ल्यू.एफ.आई.) के अध्यक्ष के खिलाफ सात महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत है। वास्तव यहाँ यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि सच्चाई को सामने लाने की जरूरत है। यह वास्तव में बहुत ही गंभीर व संवेदनशील है कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धाओं/प्रतियोगिताओं में विभिन्न पदक जीतने वाली खेल प्रतिभाओं/महिला खिलाड़ियों को आज अपनी मांगों को लेकर जंतर-मंतर पर धरने पर बैठना पड़ा है। भारतीय कुश्ती महासंघ का भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में नाम है और यह हमारे देश के खेल मंत्रालय और भारतीय कुश्ती महासंघ(डब्ल्यू, एफ.आई.) के लिये अच्छी बात नहीं कही जा सकती है कि एक जिम्मेदार पदाधिकारी के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगे हैं। वास्तव में इन आरोपों के पीछे आखिर सच्चाई क्या है, वह तो हर हाल में सामने आनी ही चाहिए ताकि दूध का दूध व पानी का पानी किया जा सके। महिला खिलाड़ियों के साथ यौन शोषण का मामला अब तूल पकड़ता चला जा रहा है और अब तो जंतर- मंतर पर महिला पहलवानों के धरने पर विभिन्न विपक्षी राजनीतिज्ञ, सरकार पर हमलावर नेता, खापों व अन्य संगठनों के पदाधिकारी तक जुटने लगे हैं। मीडिया में भी इस मामले को लेकर रह-रहकर खूब खबरें आ रही हैं। यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि कोर्ट में नाबालिग सहित लड़कियों की ओर से अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की गई थी। वैसे हाल फिलहाल खिलाड़ियों ने मामले को लेकर अब माननीय सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, तो इससे यथाशीघ्र समाधान की उम्मीद जगी है। जब महिला खिलाड़ी इतने गंभीर आरोप लगा रही हैं तो इसके पीछे कुछ न कुछ तो बात जरूर है। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को हाल ही में यह नोटिस दिया है कि महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा दायर यौन दुर्व्यवहार की शिकायत पर प्राथमिकी अब तक क्यों नहीं दर्ज की गई ? आखिर इसके पीछे कारण क्या रहे हैं ? वास्तव में इसकी भी जांच की जानी चाहिए। हाल फिलहाल, कोर्ट ने इसे गंभीर मसला बताया है। यह कोई सामान्य बात नहीं है। यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि यह पहली बार नहीं है जब महिला पहलवान इस प्रकार से आगे आईं हैं। इससे पहले भी इस मामले में उनके द्वारा आंदोलन किया गया था। यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि उस समय यानी कि माह जनवरी-2023 में खेल मंत्रालय द्वारा जांच के लिये मशहूर बॉक्सर मैरी कॉम की अगुआई में एक समिति का गठन किया गया था। गठित समिति द्वारा हालांकि रिपोर्ट सौंप दी गई है लेकिन इसके कोई अंतिम निहितार्थ/ निष्कर्ष की घोषणा न होने से महिला पहलवान क्षुब्ध होकर जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गयी हैं। यहां तक कि महिला पहलवानों ने देश के विभिन्न राजनीतिक दलों, किसान, खाप व महिला संगठनों से भी इस संदर्भ में समर्थन मांगा है। वर्तमान में पहलवान एक बार फिर अपनी पुरानी मांगों को लेकर सड़क पर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं, जो वर्तमान में भी जारी है। पहलवानों का यह कहना है कि उन्हें एक महीने में कार्रवाई का भरोसा दिया गया था लेकिन अब तीन महीने बाद भी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है और सरकार ने पहलवानों को जो आश्वासन दिया था वह झूठा निकला। हालांकि इसी बीच, महासंघ के प्रमुख इसे व्यक्तिगत रंजिश का मामला कहते हुए खुद को निर्दोष बता रहे हैं। यहाँ यह बात सोचनीय है कि आंदोलनकारी पहलवानों ने महासंघ के कामकाज में भी कुप्रबंधन के आरोप लगाये हैं और व्यवस्था में पूरी तरह बदलाव की मांग की है। प्रसिद्ध खिलाड़ी बजरंग पूनिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह आरोप तक लगाया है कि जिन सात महिला पहलवानों ने यौन शोषण की शिकायत की है, उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है। यहाँ तक कि पैसों का लालच भी दिया जा रहा है। यह हमारे देश की विडंबना ही है कि आज खेलों तक में राजनीति का प्रवेश हो गया है। वास्तव में खेल राजनीति से हमेशा परे होने चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो, खेलों में राजनीति का कोई भी स्थान नहीं होना चाहिए। खेलों में जब राजनीति का स्थान हो जाता है तो इससे खिलाड़ी, खेल तो प्रभावित होते ही हैं, विश्व पटल पर भी हम खेलों के क्षेत्र में पिछड़ते चले जाते हैं। आज भारत दुनिया का बहुत बड़ा देश है लेकिन विश्व पटल पर चीन,जापान,रूस अमेरिका जैसे देशों की तुलना में हमारे यहाँ विश्वस्तरीय खिलाड़ी तैयार नहीं हो पा रहे हैं तो उसका एकमात्र कारण है कि हमारे देश में खेलों में भी राजनीति का स्थान सर्वोपरि है। राजनीति के कारण, पक्षपात के कारण आज जो खिलाड़ी खेल के क्षेत्र में आगे आने चाहिए, वे वास्तव में आगे नहीं आ पाते हैं। आज खेलों में राजनीति का बड़ा खेल हो रहा है। वास्तव में कहना गलत नहीं होगा कि आज के समय में भारत में खेल और राजनीति का रिश्ता चोली दामन का है। यहां तक कि बहुत बार यह समझना तक मुश्किल हो जाता है कि खेलों में राजनीति है या फिर राजनीति में खेल। आज खेलों में वित्तीय अनियमितताएं देखने को मिलती हैं, खिलाड़ियों के चयन तक में घपला होता है, खिलाड़ियों पर अत्याचार तक होते हैं, तो यह बहुत ही संवेदनशील व गंभीर बात है।आज कहीं भी नजरे घुमाकर देख लीजिए राजनीति और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग ही देश के खेलों पर कुंडली मारकर बैठे हैं। आखिर ऐसा क्यों है ? इस पर चिंतन जरूरी है । दरअसल, आज राजनीतिक दल व उनके नेता हमेशा सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं, खेल संघों पर कब्जे की वजह से वे मीडिया, अखबारों की सुर्खियों में हमेशा बने रहते हैं। खेलों में अनाप शनाप पैसा, नेम एंड फेम भी कहीं न कहीं इन लोगों को खेलों से जोड़े रखता है। बहुत ही दुखद है कि आज खेल व राजनीति का घालमेल चल रहा है। यहाँ कहना चाहूंगा कि अधिकतर मामलों में खेल संघों से जुड़े राजनेताओं का संबंधित खेल से दूर-दूर तक कोई भी वास्ता तक नहीं होता है लेकिन ये खेल संघों के जरिए अपने रसूख, अपने कद को और बढ़ाने में कामयाब जरूर हो जाते हैं। राजनीति के खेल में आज खेल पीछे छूटते चले जा रहे हैं, इस पर चिंतन बहुत आवश्यक व जरूरी है। हाल फिलहाल, नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर पहलवानों के धरना-प्रदर्शन और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बीच खेल मंत्रालय ने महासंघ के 7 मई को होने वाले चुनाव पर रोक लगा दी है। अब तदर्थ समिति के जरिए तय अवधि में चुनाव कराने का फैसला किया गया है। बहरहाल, समूचे प्रकरण में कौन दोषी है, कौन नहीं, कौन सच्चा है और कौन झूठा, यह बात तो जांच में ही सामने आ पाएगी, लेकिन देश के लिए पदक जीतने वाले हमारे खिलाडिय़ों को अपनी मांगों को लेकर धरना देना पड़े, ऐसी स्थिति को चिंताजनक ही कहा जा सकता है। विश्व पटल पर आज खेलों में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है लेकिन ऐसे विवादों से हमारे देश में खेल, खिलाड़ियों व उनकी गरिमा को लगातार ठेस पहुंच रही है। आरोप प्रत्यारोप से छवि बिगड़ती ही है। खिलाड़ियों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा, अत्याचार, अनियमितताओं से खिलाड़ियों के हौंसले कहीं न कहीं पस्त ही होते हैं और वे खेलों में अपना ध्यान नहीं लगा पाते हैं। उनकी एकाग्रता, उनका ध्यान, उनकी ऊर्जा इससे भंग होती है। खेल का वातावरण तक इससे प्रभावित होता है। यहाँ तक कि इससे भारतीय खेल व्यवस्था की प्रतिष्ठा तक को भी आंच आती है। दरअसल, ऐसे मामलों में शिकायत निवारण को प्राथमिकता देने तथा पारदर्शी व्यवस्था बनाने की जरूरत है। बहरहाल, प्रकरण में जो भी सच हो, वह हर हाल और परिस्थितियों में सबके सामने आना ही चाहिए। खिलाड़ी यदि आरोप लगा रहे हैं तो उन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। ऐसी नौबत वास्तव में आनी ही नहीं चाहिए थी कि खिलाड़ियों को जंतर मंतर पर प्रदर्शन तक करना पड़े। यहां सवाल यह भी है कि जब प्रसिद्ध बॉक्सर मैरी कॉम की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट खेल मंत्रालय को सौंप दी है तो सार्वजनिक तौर पर लगाये आरोपों की जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये गये ? बहरहाल, खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए आरोपों की आवश्यक रूप से जल्द से जल्द जांच होनी चाहिए, सभी तथ्यों को खंगाला जाना चाहिए, निष्पक्ष व त्वरित जांच की जानी चाहिए और यदि कोई इसमें दोषी पाया जाता है तो उसे सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए। हमेशा हमेशा से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जब हमारा राष्ट्र कृतसंकल्पित रहा है तो क्या महिला खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच त्वरित रूप से नहीं की जानी चाहिए ? निश्चित रूप से, ऐसे प्रकरणों से खेल-संगठनों समेत पूरे खेल तंत्र के प्रति देश में अविश्वास ही पैदा होगा। इस बात की भी प्रबल संभावना है कि लोग अपनी बेटियों को खेलों के लिये भेजने तक में संकोच करने लगे। देश को मामले पर आत्ममंथन करने की जरूरत है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब