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खुद को दीजिए सुखी होने का हक

गेस्ट राइटर
/
July 7, 2023

ललित गर्ग
जीवन एक ऐसी यात्रा है, जहां हर दिन एक नया अनुभव लेकर आता है। आप यह पहले से तय कर ही नहीं सकते कि अगला दिन कैसा होगा। कभी-कभी कुछ दिन ऐसे भी होते हैं, जब आपको हर तरफ उल्लास, खुशी, सफलता और सकारात्मकता नजर आती है, लेकिन कुछ दिन ऐसे भी जरूर आते हैं, जब सिवाय घोर निराशा, तनाव, असफलता एवं दुःख के बादलों के आप कुछ और नहीं देख पाते। लेकिन यह प्रकृति का नियम है, जो मनुष्यों पर भी लागू होता है कि अगर उजाले के बाद अंधेरा आता है, तो निश्चित रूप से अंधेरे के बाद फिर से उजाला आता ही आता है। दरअसल, जब आप दुख और सुख, हार और जीत, विषाद एवं हर्ष को समान रूप से स्वीकार करने लगते हैं, तो आप निराशा और ईर्ष्या से कहीं ऊपर उठने लगते हैं। लक्ष्य पाने की यात्रा रोमांचक भी हो सकती है और डरावनी भी। पर इसका पता तभी चलता है, जब हम उसे पाने की कोशिश करते हैं। जो रुके रह जाते हैं, उनके हिस्से में मलाल ही आता है। लेखिका डॉली पार्टन कहती हैं, ‘अगर वह राह पसंद नहीं, जिस पर चल रहे हैं तो दूसरी राह बनाने की कोशिश करें।’
नाउम्मीदी में से उम्मीद को खोजने वाले ही सार्थक जीवन जीते हैं। क्योंकि उम्मीदें जिंदा रखती हैं। हमें भी और हमारे अपनों को भी। उम्मीदों का होना यानी ऊर्जा और उत्साह का होना। आसपास खुशियों और ठहाकों का बने रहना। यूं भी आस और विश्वास के सिवा है ही क्या! जितना दूसरों को देते हैं, कभी न कभी लौटकर हमारे पास ही आ जाता है। निराशा के क्षणों में कुछ लोग पीछे हट जाते हैं और कुछ व्यक्ति खुद को अकेला मानने लगते हैं। लेकिन अगर हम जीवन यात्रा में एक बार अपने मौजूदा हालात को बदलने की ठान लें तो फिर रास्ते में आने वाली बाधाएं भी डराना छोड़ देती हैं। एक-एक जोखिम को पार करते हुए बढ़ने के साथ यह विश्वास भी मजबूत होने लगता है कि सही दिशा में प्रयास करने से बड़ी से बड़ी मुश्किलों से पार पाया जा सकता है। कभी न कभी सबको इन मुश्किलों से लड़ना ही होता है। लेखिका हेलन केलर कहती हैं, ‘जिंदगी या तो खतरों का खेल है या फिर कुछ नहीं।’
जिन्दगी को एक नया अन्दाज देेने के लिये जीना भी नये अन्दाज से होता है। अच्छा संगीत सुनना, किसी की सहायता करना, मुस्कुराते रहना, सकारात्मक रहना- ये ऐसे जीने के अन्दाज है जो खुद को खुशी देने के साथ दूसरों को भी खुशी देते हैं। मुस्कान चेहरे की नहीं, आसपास के सुकून को भी बढ़ा देती है। एक बिंदास मुस्कान किसी को भी आशा से भर सकती है। भले ही मुस्कराने की वजह न हो, तो भी मुस्कराना मूड में सुधार करता है। निराशा के क्षणों में कुछ देर मुस्कराएं। दूसरों को देखकर मुस्कराते रहें। इसके लिये जरूरत है कि हमें जीवन को केवल मानना ही नहीं है, बल्कि जानना भी है। लेकिन जानने के लिये तीन चीजें मायनें रखती है-आप कितने प्रेम से जीते हैं, दूसरों को कितना प्रेम करते हैं औैर जीवन-प्रवाह को कितने साक्षी भाव से निहारते हो। ऐसा करते हुए ही आपका जीवन न केवल सरल और सुन्दर होगा, बल्कि गुणों से ओतप्रोत भी होगा। गुणों का जीवन जीने वालों के लिये गौतम बुद्ध ने कहा है कि पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सद्गुण की महक सब ओर फैल जाती है। निश्चित ही जीवन एक यात्रा है और हर आदमी यात्री है। पैदल चलने वाला भी यात्रा कर रहा है, वाहन का प्रयोग करनेवाला भी यात्रा कर रहा है और खाट पर जो लेटा हुआ है, वह भी यात्रा कर रहा है। यात्रा न होती तो यह अमरता की स्थिति होती। इसीलिये जनरल जार्ज एस. पैट्टोन ने कहा कि “चुनौतियों को स्वीकार करें, ताकि आप विजय के हर्ष का आनन्द महसूस कर सकें।”
जब आपके अंदर किसी काम को लेकर जुनून होता है तो कभी-कभी वह जुनून ही जीवन के उद्देश्य में तब्दील होने लगता है। जीवन कभी एक सा नहीं चलता। इसलिए यह जरूरी भी नहीं कि बेहद प्रारंभिक अवस्था में ही आपको अपने जीवन का उद्देश्य मिल जाए। जीवन में अनेक पड़ाव आते हैं, जो अलग-अलग अनुभव देते हैं। इसलिए कभी एक बेहद तनाव वाले पड़ाव में लगे कि किसी तरीके का बदलाव आपके जीवन को सरल और खुशनुमा बना सकता है तो उसे आप अपना उद्देश्य बना लीजिए। लेकिन यह कोई ऐसा कार्य नहीं है, जिसके बारे में आप बैठकर अलग से मंथन करें। यह हमारा मन तय करता है कि उसे किस कार्य को करने से खुशी मिलती है। पर दिमाग के साथ दिल का तालमेल बिठाना न भूलें और जहां लगे कि दिल और दिमाग मिल गए हैं तो समझ जाएं कि आपको अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया है।
बहुत सारी बातें हैं, जिन्हें लोग मानते तो हैं, किन्तु जानते नहीं। मानी हुई बात बिना जाने बहुत कार्यकारी नहीं होती। जब उसकी सचाई सामने आती है तो फिर मानने की जरूरत नहीं रह जाती। मानना बहुत जरूरी बात है। आप न मानें तो जीवन चलना कठिन हो जाए, किन्तु मानने तक ही स्थिर नहीं हो जाना है, उसके आगे की बात भी सोचनी है। केवल मानते ही रहे, जानने की कोशिश नहीं की तो प्रगति का द्वार बंद हो जाएगा। इसी सन्दर्भ में बेंजामिन स्पॉक ने कहा कि “अपने ऊपर विश्वास रखें। जितना आप करते हैं उससे कहीं अधिक आप जानते हैं।” हममें से ज्यादातर को तुरंत नतीजों पर पहंुचने की जल्दबाजी रहती है। मंजिल ढूंढ़ने में जरा देरी हुई नहीं कि हम रास्ते को ही गलत ठहरा देते हैं। अपना रास्ता बदल देते हैं। इससे उलझनें ही बढ़ती हैं। जरूरी है कि हम सिर्फ मंजिल नहीं, पूरी यात्रा पर ध्यान दें। यह समझें कि नाम, पैसा व कामयाबी एक दिन में नहीं मिलती। हमें लगातार खुद पर काम करना पड़ता है। अमेरिकी ईसाई नेता बिली ग्राहम कहते हैं, ‘जिंदगी इसी से बनी है-गलतियां करें व सीखें। इंतजार करें व आगे बढ़ें। धैर्य रखें और दृढ़ रहें।’
जीवन-यात्रा में कई बार कटु अनुभवों की फेहरिस्त काफी लंबी हो जाती है। ये भी है कि घर-दफ्तर, बच्चों-रिश्तों, कैरियर, शिक्षा को लेकर चली आ रही चिंताएं कदमों को रोकने की ताकत रखती हैं। पर उन्हीं क्षणों में खुद को संभालना भी होता है। याद रखना होता है कि हर उथल-पुथल हमेशा कुछ नए का सृजन करती है। हमारा विस्तार करती है। यह तभी संभव है, जब हम हर बदलाव को स्वीकार करते हुए खुद को तैयार करते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनका करीब होना हमें ऊर्जा से भर देता है। जिनके पास होने से जिंदगी आसान लगती है। उनके कहे शब्द, सोई हुई इच्छाओं को फिर से जगा देते हैं। वे ये हौसला दे पाते हैं कि अभी भी कुछ नहीं हुआ, सब ठीक है। और उम्मीदों के ये दूत, किसी आसमान से नहीं टपकते। हम और आप जैसे ही होते हैं। हमारी बहुत छोटी-छोटी बातें और आदतें ही होती हैं, जो दूसरों के चेहरे की हंसी बन जाती हैं। प्रेषकः

(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

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