पिछले कुछ महीनों से अधिकांश लोग खांसी के शिकार होते हुए देखे गये हैं। देश में फ्लू के मामले भी बढ़ रहे हैं। अधिकांश संक्रमण एच3एन2 वायरस के कारण होते हैं, जिसे ‘हांगकांग फ्लू’ के रूप में भी जाना जाता है। यह वायरस देश में अन्य इन्फ्लुएंजा उपप्रकारों की तुलना में अधिक खतरनाक है जो अस्पताल में भर्ती होने का कारण बनता है। भारत में अब तक केवल एच3एन2 और एच1एन1 संक्रमण का पता चला है। दोनों वायरस में कोविड जैसे लक्षण हैं। जैसाकि सर्वविदित है कि कोविड ने दुनिया भर में लाखों लोगों को संक्रमित किया और 68 लाख लोगों की मौत हुई। महामारी के दो साल बाद बढ़ते फ्लू के मामलों ने लोगों में चिंता पैदा कर दी है। लक्षणों में लगातार खांसी, बुखार, ठंड लगना, सांस फूलना और घरघराहट शामिल हैं। मरीजों ने मतली, गले में खराश, शरीर में दर्द और दस्त की भी सूचना दी है। ये लक्षण लगभग एक सप्ताह तक बने रह सकते हैं।
भारत की संस्कृति एवं जीवनशैली ने पूर्व कोरोना कहर को परास्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्योंकि योग, अहिंसा, शाकाहार, संयम आदि जीवन के आधारभूत जीवनमूल्य इसी देश की माटी में रचे-बसे हैं। विशेषतः भारत में जैनधर्म एवं उसका जीवन-दर्शन कोरोना संकट के दौर में समाधान के रूप में सामने आया है, जैनमुनि मुंह पर पट्टी (मुंहपत्ती) बांधते हैं, जिसे मॉस्क के रूप में समूची दुनिया ने अंगीकार किया था। सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग), आइसोलेशन, व क्वारंटीन (एकांत) जैन मुनि एवं साधक के जीवन के अभिन्न अंग दुनिया के लिये कोरोना मुक्ति के सशक्त आधार बने थे। शाकाहार एवं मद्यपान का निषेध भी जैन जीवनशैली का आधार है, जिनका बढ़ता प्रचलन कोरोना महासंकट से मुक्ति का बुनियादी सच बना था। लगता है कोरोना जाते-जाते दुनिया में शाकाहार का सशक्त वातावरण बना कर गया, लेकिन नये एच3एन2 और एच1एन1 के संक्रमण भी ऐसे भारतीय प्रयोगों एवं उपक्रमों को बडे़ पैमाने पर अपनाने की अपेक्षा को जाहिर कर रहे हैं।
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के अलावा बड़े वयस्कों और छोटे बच्चों जैसे उच्च जोखिम वाले समूहों के लिए संक्रमण गंभीर हो सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने हाल ही में डॉक्टरों से आग्रह किया है कि संक्रमण जीवाणु है या नहीं, इसकी पुष्टि करने से पहले मरीजों को एंटीबायोटिक्स न दें, क्योंकि वे एक प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं। एक बार फिर नए विषाणु का संक्रमण तेजी से फैलना शुरू हो गया है। इन्फ्लूएंजा का यह विषाणु भी कोविड विषाणु की तरह ही लोगों को प्रभावित कर रहा है, हालांकि इससे उस तरह भयभीत होने की जरूरत नहीं है, मगर इसका लंबे समय तक लोगों पर असर बना रह रहा है। इस विषाणु के पैदा होने की एक खाज वजह मौसम के अचानक सर्द से गर्म होने को बताया जा रहा है। अब यह विषाणु इतनी तेजी से संक्रमण फैला रहा है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ देखी जाने लगी है, कई अस्पतालों ने इसके लिए अलग से वार्ड बना दिया है। इसी विषाणु के प्रभाव में कोरोना के मामले भी बढ़े हुए दर्ज हो रहे हैं।
स्वाभाविक ही स्वास्थ्य विभाग लोगों से सावधान रहने और बचाव के उपाय आजमाने की अपील कर रहा है। मगर इसमें राहत की बात यह है कि भारत की अधिकतर आबादी को कोरोना के टीके लगाए जा चुके हैं, बहुत सारे लोग एहतियाती खुराक भी ले चुके हैं, इस तरह ज्यादातर लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। मगर जब भी कोई विषाणु अपने पांव पसारता है, तो स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां बरतने की अपेक्षा सदा बनी रहती है, क्योंकि विषाणु न सिर्फ तेजी से संक्रमण फैलाते, बल्कि अपने रूप भी बदलते रहते हैं, जन हानि का कारण भी बनते हैं। कोरोना के समय भी यही हुआ, जब विषाणु ने दूसरे दौर में अपना रूप बदल कर खुद को इतना ताकतवर बना लिया था कि बहुत सारे लोगों को उसका प्रकोप झेलना मुश्किल हो गया था। इसलिए इन्फ्लुएंजा के विषाणु का प्रभाव बेशक सामान्य मौसमी खांसी, जुकाम, बुखार जैसा लग रहा हो, पर उसे नजरअंदाज करना एक महासंकट को आमंत्रित कर सकता है। विषाणुओं के प्रभाव से बचने का सबसे बेहतर उपाय साफ-सफाई रखना, भीड़भाड़ से बचना, हाथ धोते रहना, मास्क पहनना बताया जाता है।
आमतौर पर देखा जाता है कि कोई भी नया विषाणु इसलिए अधिक ताकतवर होकर फैलता है कि लोग उससे बचाव के उचित उपाय नहीं आजमाते, लापरवाही बरतते हैं। भारत जैसे देश में, जहां आबादी का दबाव अधिक है और प्रायः बड़ी आबादी साफ-सफाई को लेकर सतर्क नहीं देखी जाती, विषाणुओं के संक्रमण का खतरा अधिक बना रहता है। इसलिए इससे बचाव को लेकर सतर्कता ही पहला और प्रभावी उपाय है। वायरस से होने वाली खांसी के बढ़ने का बड़ा कारण चीकनी चीजों एवं मांसाहार-मद्यपान का अधिक मात्रा में प्रयोग करना भी है। विश्वभर के डॉक्टरों ने कोरोना के दौर में शाकाहारी भोजन को ही उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ माना है। फल-फूल, सब्जी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता एवं नये आक्रमण कर रहे वायरस से लड़ने में सक्षम बना सकता है। इन्फ्लूएंजा के विषाणु एवं वायरस से वे लोग अधिक भयग्रस्त हो सकते हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। हमारा शरीर गलत खानपान एवं जीवनशैली से उत्पन्न जहरीले तत्वों को शरीर से पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए एच3एन2 और एच1एन1 के संक्रमण पर नियंत्रण पाने के लिये यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी एवं संयमित रहें।
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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