नया भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करने के संकल्प के साथ नए वर्ष का स्वागत करें। हम इस सोच और संकल्प के साथ नये वर्ष में प्रवेश करें कि हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं। बीते वर्ष की कमियों पर नजर रखते हुए उन्हें दोहराने की भूल न करने का संकल्प लेना है। दूसरे के अस्तित्त्व को स्वीकारना, सबके साथ रहने की योग्यता एवं दूसरे के विचार सुनना- यही शांतिप्रिय एवं सभ्य समाज रचना का आधारसूत्र है और इसी आधारसूत्र को नयेवर्ष का संकल्पसूत्र बनाना होगा। आज सब अपनी समझ को अंतिम सत्य मानते हैं। और बस यहीं से मान्यताओं की लड़ाई शुरू हो जाती है। कोई वेद, बाईबल, कुरान, ग्रंथ या सूत्र ये पाठ नहीं पढ़ाते। तीन हजार वर्षों में पांच हजार लड़ाइयां लड़ी जा चुकी हैं। एकसूत्र वाक्य है कि ”मैदान से ज्यादा युद्ध तो दिमागों से लड़े जाते हैं।“
नया वर्ष नया संदेश, नया संबोध, नया सवाल, नया लक्ष्य लेकर उपस्थित हो पर जीवन की भी कैसी विडम्बना! हर वर्ष एक दिन के लिए ही हम स्वयं को स्वयं के द्वारा जानने की कोशिश इस संकल्प के साथ करते हैं कि ऐसा हम तीन सौ पैंसठ दिन करेंगे, लेकिन वर्ष की दूसरी तारीख ही हमें अपने संकल्प, अपनी शपथ से भटका देती है। नए वर्ष को सचमुच सफल और सार्थक बनाने के लिए हमें कुछ जीवन-मंत्र धारण करने होंगे। यूं तो हमारे धर्म-ग्रंथ जीवन-मंत्रों से भरे पड़े हैं। प्रत्येक मंत्र दिशा-दर्शक है। उसे पढ़कर ऐसा अनुभव होता है, मानो जीवन का राज-मार्ग प्रशस्त हो गया। उस मार्ग पर चलना कठिन होता है, पर जो चलते हैं वे बड़े मधुर फल पाते हैं। आंखें खोल दो अर्थात अपने विवेक को जागृत करो। चलो और उन उत्तम कोटि के पुरुषों के पास जाओ, जो जीवन के चरम लक्ष्य का बोध करा सकें।
बस, वही क्षण जीवन का सार्थक है जिसे हम पूरी जागरूकता के साथ जीते हैं और वही जागती आंखांे का सच है जिसे पाना हमारा मकसद है। सच और संवेदना की यह संपत्ति ही नए वर्ष में हमारी सफलता को सुनिश्चित कर सकती है। दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत के लिये हर नागरिक इस विश्वास और संकल्प को सचेतन करें कि आज तक जो नहीं हुआ वह अब हो सकता है। आज हमारा देश जी-20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है। ऐसे ही बढ़े संकल्पों के लिये हम कोशिश करें कि ‘जो आज तक नहीं हुआ वह आगे कभी नहीं होगा’ इस बूढ़े तर्क से बचकर नया प्रण जगायें। बिना किसी को मिटाये निर्माण की नई रेखाएं खींचें। यही साहसी सफर शक्ति, समय और श्रम को सार्थकता देगा। संकल्पों का हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। संकल्पों का टूटना या जारी रहना बेशक दिमाग की तंत्रिकाओं का खेल है लेकिन दिल इसमें कहीं ज्यादा अहम भूमिका निभाता है। इसकी बदौलत हमारी वे इच्छाएं पूरी हो सकती हैं जो हमारे हृदय में हमेशा मौजूद रहती हैं, लेकिन कभी साकार नहीं हो पाती। इच्छाओं को साकार करने के लिए हृदय में संकल्प के बीज को अंकुरित करना जरूरी है।
नरेन्द्र मोदी जैसे राष्ट्रनायक एवं संकल्पपुरुष जिंदगी को बदलने की कोशिश करते हैं। वे एक नई शुरुआत के साथ-साथ जिंदगी में सार्थक और आंतरिक परिवर्तन लाते हैं। चाहे आप पुराना कुछ छोड़ना चाहते हों या आप फिर कुछ नया अपने भीतर विकसित करना चाहते हैं तो संकल्प ही वह माध्यम है जो ऐसा कुछ करने के लिए आप में ऊर्जा का संचार करता है। इस तरह से यदि आप सफल होते हैं तो परिणाम निश्चित तौर पर शुभ और श्रेयस्कर ही होता है। अक्सर हम अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कोई एक संकल्प या आदत विकसित करने का प्रण लेते हैं। यह कुछ भी हो सकता है, अपने व्यक्तित्व में बदलाव, काम करने की प्रक्रिया, कोई नई शुरुआत। आपके लक्ष्य या संकल्प चाहे जो भी हों, लेकिन ये आपको इस बात को समझने में मदद करते हैं कि क्यों आप कितनी ही मुश्किलें उठाकर उस आदत को बदलने की कोशिश करते हैं जो आपके जीवन का हिस्सा है और संभवतः आपकी गुणवत्ता या आपकी चारित्रिक विशेषता पर बड़ा असर डालती है।
संकल्पों के बल पर ऐसे न जाने कितने हैरतंगेज और चमत्कार सरीके कार्यों को होते हुए हम अक्सर जिंदगी के आस-पास देखते हैं। महान् दार्शनिक संत आचार्य श्री महाप्रज्ञ का मानना है कि संकल्प और कुछ नहीं होता वह मात्र मनुष्य के भीतर जागा हुआ एक निश्चय होता है, जागरूक प्रहरी होता है, जो परिस्थितियों, कठिनाइयों के थपेड़ों को झेलता-झेलता उन्हें चूर-चूर करता हुआ अपने ही सामने आकार लेता है, यही मनुष्य की सबसे बड़ी सफलता है।’’
ऐसे संकल्प जगे कि पर्यावरण एवं प्रकृति को बचाने की मुहिम का हिस्सा बन जाये या कि घर-घर में नलों से टपकने वाली बूंदों को बचाये। इस तरह के संकल्प गाहे-बगाहे हर इंसान के मन में जागते हैं। आज के व्यस्त दौर में उन संकल्पों को पूरा करने के लिए समय की कमी और समर्पण के अभाव के कारण वे आकार लेने से पहले ही टूट जाते हैं। हर संकल्प अपने-आप में अच्छा होता है क्योंकि इसके साथ सकारात्मक संभावनाएं ज्यादा होती हैं। संकल्प का ही बल होता है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए समय भी निकाल लेते हैं और समर्पण भी जुटा लेते हैं। अक्सर लोग धूम्रपान, मद्यपान को छोड़ने या वजन कम करने के लिए संकल्पित होते हैं और उसमें वे सफल भी हो जाते हैं। अगर सफलता नहीं मिलती तो निराश होने की बजाय पुनः नये जोश के साथ उस संकल्प को पूरा करने में जुट जाना चाहिए। क्योंकि संकल्प को आकार लेने में परेशानियां आती हैं, समय भी लगता है लेकिन वे अवश्य ही आकार लेती हैं।
यह सही है कि पुरानी आदतें आसानी से नई आदतों को नहीं पनपने देती। आपके अच्छे विचार और अच्छे कार्यक्रम मैदान छोड़ सकते हैं और ऐसा करने के लिए आपको हालात मजबूर भी कर सकते हैं। लेकिन संकल्प का पहला उसूल है कि उसकी शुरुआत खुरदरी होती है लेकिन जमीन समतल तैयार करती है। बदलाव और नई दिनचर्या विकसित होना आसान नहीं है लेकिन संकल्पों को पूरा कर पाना नामुमकिन भी नहीं है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आत्मविश्वास और वचनबद्धता किसी भी संकल्प को पूरा करने का मुख्य साधन है। आपको यह मानना होगा कि आप बदल सकते हैं और उस बदलाव के लिए आपके भीतर पर्याप्त आत्मशक्ति है। एक चीनी कहावत है कि महापुरुषों के संकल्प होते हैं और दुर्बलों की केवल इच्छाएं।’ महापुरुषों का जीवन संकल्प और आस्था की धुरी पर चलता है। वे अपने जीवन के प्रांगण में सद्संकल्पों की अल्पनाएं सजाते हैं और आस्था के नये-नये स्वस्तिक रचते रहते हैं। महात्मा गांधी हो या विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती हो या आचार्य तुलसी- इन सबकी सफलताओं का राज यही रहा है कि उनका हर प्रयत्न भीतरी संकल्प के साथ होता था।
छोटे संकल्प अक्सर बड़े बदलाव की नींव रखते हैं। हर महीने एक पौधा लगाना या हर रोज किसी अजनबी को मुस्कराहट देना संभवतया आपके जीवन में भारी बदलाव न ला पाये लेकिन वे आपकी उस जिंदगी को बरकरार रख पाने में सफल होते हैं, जिसकी चाह लगभग हर व्यक्ति के भीतर विद्यमान होती है। हम जब भी श्मशान भूमि पर किसी दिवंगत आत्मा की अंत्येष्टि में सम्मिलित होते होते हैं तो वहां लिखा वह वाक्य हमको झकझोरता है कि प्रतिदिन कोई नेक काम करें। हम संकल्पित भी होते हैं न केवल एक संकल्प बल्कि अनेकों संकल्प उस दो-चार घंटे की प्रक्रिया में आते-रहते हैं। जरूरत है मन में उत्पन्न होने वाले संकल्पों को आकार देने की। क्योंकि इससे जिंदगी को बदलने और उससे बेहतर बनाने की आधारभूमि तैयार होती है।
(ललित गर्ग)
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