।। जो है जो छुड़ाना मत और ज्यादा मत देना।।
का भाव ज्यादा प्रभावकारी हो सकता है। जो है छुड़ाना मत का अभिप्राय ईष्ट से यह निवेदन करना व उनके प्रति कृतज्ञता देना है कि आपने जो भी मुझे अब तक दिया है पूर्ण दिया है लेकिन भविष्य में वर्तमान में जो मुझे मिल रहा है उसे मुझसे अलग मत करना चाहे वह अर्थ हो, परिवार हो, परिजन हो। भाव दिखने में सूक्ष्म सा प्रतीत होता है लेकिन इसके माध्यम से हमारी प्रार्थना यह है कि मुझे किसी भी अवस्था में कर्ज का अतिरिक्त भार मत देना, माता पिता का सानिध्य मिलता रहे, समाज सेवा का जो कार्य कर रहा हूं वह सदैव करता रहा हूं। यहां अतिरिक्त मत देने का भाव मात्र इतना सा है कि जितना मेरे उपयोग व जरूरत है उतना देना क्योंकि अतिरिक्त मिलने पर अंह का साथ आना स्वाभाविक है, साथ ही जिदंगी में अनेक बुरी आदतो का प्रवेश होने लगेगा। मैं जहां हूं, जैसा भी हूं, जितना भी है, उसमे पहले संतुष्ट होने का प्रयास करूंगा। जैसे ही हमारा अतिरेक से मोह हटता है जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है जो स्वयं में, व्यपार में, पेशे में उपलब्ध्यिां प्रदान कर सकता है। तात्पर्य यह है कि ईष्ट के समक्ष भौतिक संसाधनो के लिए किया गया निवेदन सशक्त इसलिए नहीं बन पाता क्योंकि हमारे अर्थ प्राप्ति में हमारे प्रयास ज्यादा महत्व रखते है, ईष्ट तो हमें उन्हें प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है। मांगने के स्थान पर कृतज्ञता का भाव जैसे ही प्रार्थना का अंग बन जाएगा सारे मनारेथ स्वत: ही पूर्ण होने लगेगे।
DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
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