मणिपाल, फरवरी 2023: बीते17 वर्षों से, कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल ने अपने सेंटर फॉर इमर्जिंग एंड ट्रॉपिकल डिजीज के माध्यम से मेलियोइडोसिस के बारे में जागरूकता फ़ैलाने और अत्याधुनिक नैदानिक सुविधाओं का उपयोग करके केस डिटेक्शन (विषय खोज) में सुधार करने में गहन रुचि दिखाई है। भारत में अपनी तरह के इस एक मात्र अनुसंधान और निदान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम विशेषज्ञता और सीखने का लाभ उठा रही है।
इस परियोजना में, सीईटीडी को रेफरल सेंटर (निर्देशपरक सेवा केंद्र) का दर्जा प्रदान किया गया है। यह आशा की जाती है कि इसका सुनियोजित एवं पर्यवेक्षित क्षमता-निर्माण कार्यक्रम, जिसमें व्यावहारिक प्रशिक्षण शामिल है, देश भर में अधिक मेलियोइडोसिस मामलों की पहचान करने में सहायता करेगा और जिससे नई पहल के रूप में उपभेदों के जीनोम अनुक्रमण उत्पन्न होंगे। मेलियोइडोसिस के अलावा, यह शोधकर्ताओं को कई ट्रॉपिकल इमर्जिंग डिजीज की पहचान करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, बर्कहोल्डरिया स्यूडोमेली जीनोम की एक क्यूरेटेड स्वदेशी डाटाबेस भी देश भर के शोधकर्ताओं के लिए नई दवाओं या टीकों के निर्माण पर शोध करने में सक्षम बनाएगी।इस प्रकार,यह न केवल इस “साइलेंट किलर” बीमारी के विरुद्ध लड़ाई में सहायता करेगा बल्कि सामान्य जनसमुदाय के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का निर्माण कर एक मजबूत आधार स्थापित करने में भी सहायता करेगा।भविष्य में ये केंद्र प्रशिक्षण और उचित निदान के माध्यम से जागरूकता फैलाते हुए अपने राज्यों के लिए नोडल केंद्र के रूप में सेवा देने के लिए पूर्ण रूपेण सुसज्जित होंगे।
डॉ. चिरंजय मुखोपाध्याय, जो कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल में इस राष्ट्रीय पहल का नेतृत्व कर रहे हैं, ने कहा, “हम 14 राज्यों में मुफ्त मेलियोइडोसिस निदान और उपचार के साथ कई चिकित्सा सुविधाओं का समर्थन करने के वर्ष भर के प्रयासों के लिए आईसीएमआर के आभारी हैं। मैं उडुपी से न्यूरो मेलियोइडोसिस से पीड़ित 18 वर्षीय लड़के की मृत्यु की जांच करते हुए पर्यावरण निगरानी करने के लिए एनसीडीसी टीम का समर्थन करता हूं।
इस शोध के बारे में बोलते हुए, वाइस चांसलर, लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) एम.डी. वेंकटेश ने कहा,“सीईटीडी टीम और माइक्रोबायोलॉजी विभाग को उनकी सफलता के लिए मेरी हार्दिक बधाई। मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के लिए मेलियोइडोसिस रेफरल सेंटर का मान्यता मिलना और देश की कार्यबल का नेतृत्व करना एक विरल सम्मान है। यह इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (उत्कृष्ट संस्थान) के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। एमएएचई का हमारे देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास और उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान देने का एक लंबा इतिहास रहा है। मुझे विश्वास है कि यह इस शोध एक बड़ी सफलता होगी और यह भविष्य में इन इमर्जिंग ट्रॉपिकल डिजीज के प्रकोप से निपटने के लिए नई नीतियां विकसित करने में भारत सरकार की सहायता करेगा।”
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, भारत का शीर्ष सबसे पुराना चिकित्सा अनुसंधान निकाय है जो देश में जैव चिकित्सा अनुसंधान का निर्माण, संवर्धन और समन्वय करता है, ने हाल ही में प्रशिक्षण से जुड़े केंद्रों का एक नेटवर्क बनाने के लिए एक बहुकेंद्रित क्षमता-निर्माण पहल ‘मिशन’ की शुरूआत की है। इस पहल का उद्देश्य देश के पूर्वोत्तर राज्यों पर विशेष ध्यान देने के साथ पूरे भारत में नैदानिक और प्रयोगशाला को मजबूत करना है। इस क्षेत्र में ज्ञान, प्रशिक्षण और पद्धतियों के आगे विकास के लिए क्षेत्रीय केंद्रों के रूप में सेवा करने के लिए, इसमें उत्तर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और मध्य भारत सहित देश के 5 रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों से अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों को भी शामिल किया गया है। डॉ. हरप्रीत कौर, वैज्ञानिक F और आईसीएमआर की परियोजना समन्वयक, ने यह अवलोकन किया है कि भारत, विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में बीमारी का प्रसार पूरी तरह से अनिर्धारित है। उनका मानना है कि यह चरणबद्ध पहल, जिसका उद्देश्य नैदानिक भिन्नताओं में मेलियोइडोसिस को शामिल करना है, प्रशिक्षण के माध्यम से जागरूकता बढ़ाएगा और गंभीर परिस्थितियों और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रोगियों के लिए व्यक्तिगत नैदानिक एल्गोरिदम के निर्माण में योगदान करेगा।