दिल्ली। 1 अप्रैल। हाइपोथाइराइड एक तरह से वात का रोग है। तनाव और आहार – विहार इस बीमारी का प्रमुख कारण है। लेकिन आयुर्वेद के माध्यम से इसका उपचार संभव है और इसे पूरी तरह से ठीक भी किया जा सकता है। दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित होटल मधुबन में वैद्य सम्भाषा और सम्मान कार्यक्रम के अंतर्गत चल रहे ‘वैद्य संपर्क अभियान’ के दौरान हुई आयुर्वेद चिकित्सकों की बैठक में यह तथ्य उभर कर सामने आया।
उल्लेखनीय है कि देश के आयुर्वेद चिकित्सकों के सबसे बड़े मंच ‘निरोगस्ट्रीट’ द्वारा यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है और अबतक गाजियाबाद, नोयडा, हाथरस, आगरा व दिल्ली में सफलतापूर्वक इसका आयोजन हो चुका है। वैद्य संपर्क अभियान को भारत सरकार के आयुष मंत्रालय का भी समर्थन प्राप्त है जिसका उद्घाटन आयुष मंत्रालय के सचिव पद्मश्री वैद्य राजेश कोटेचा ने किया था।
हाइपोथाइराइड के आयुर्वेदिक समाधान पर हुई परिचर्चा में सभी आयुर्वेद चिकित्सक इस बात पर सहमत दिखे कि हेतु (कारण) का निवारण प्रथम चरण है। आहार को दिनचर्या का पालन करते हुए लेना और विहार का पालन करना रोग का समूल निवारण करता है। उसके बाद लेप, औषधि, आसान, प्राणायाम, पंचकर्म का उपयोग इसके समाधान में उपयोगी सिद्ध होता है।
वैद्य अर्पिता ने नैदानिक परिचर्चा के दौरान हाइपोथाइराइड पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कुटकी का लेप इसमें उपयोगी होता है। उनके अनुसार कफ प्रकृति के लोग जल्दी ठीक होते हैं लेकिन वात और पित्त प्रकृति के लोगों के उपचार में कठिनाई होती है और अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है।
नस्या के अध्यक्ष वैद्य प्रशांत तिवारी ने हाइपोथाइराइड के उपचार के लिए पंचकर्म को बेहद उपयोगी माना और कहा कि यदि उचित आहार – विहार के साथ प्रमाणित आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में पंचकर्म थेरेपी लिया जाए तो रोग को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
वैद्य अभिषेक गुप्ता ने हाइपोथाइराइड का एक प्रमुख कारण मोबाइल और टेक्नोलॉजी के अत्यधिक उपयोग से होने वाले तनाव को माना। उन्होंने कहा कि अत्याधुनिक युग की भाग-दौड़ में मोबाइल, सोशल मीडिया और दूसरी अन्य टेक्नोलॉजी पर हमारी निर्भरता बढ़ गयी है जिसका हमारे मन, मस्तिष्क और शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यह हमारी दिनचर्या और सोंच को प्रभावित कर रहा है। बेवजह के तनाव को बढ़ा रहा है। ऐसी स्थिति में हाइपोथाइराइड जैसी बीमारियों का बढ़ना स्वाभाविक ही है।
इस मौके पर प्रशस्ति पत्र देकर वैद्यों को सम्मानित भी किया गया। उसके पहले कार्यक्रम की शुरुआत धन्वंतरि वंदना से हुई।