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कम नियमों से ही होगा ‘विश्वास-आधारित शासन’

गेस्ट राइटर
/
August 19, 2023

बिल का उद्देश्य है कि कुछ अपराधों में मिलने वाली जेल की सजा को या तो पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए या फिर जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाए। सरकार देश के लोगों और विभिन्न संस्थानों पर भरोसा करें, यही लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला है। पुराने नियमों का अभी भी लागू रहना विश्वास की कमी का कारण बनता है।।। नियमों के पालन के बोझ को कम करने से व्यवसाय प्रक्रिया को गति मिलती है और लोगों के जीवनयापन में सुधार होता है। इस बिल का उद्देश्य है कि भारत में चल रहे व्यापार सहजता हो सके। व्यापार करने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है। नियमों का उल्लंघन होने पर भारी जुर्माना और जेल का प्रावधान है। बिल के अनुसार अगर ऐसा होगा तो देश में बिजनेस को कैसे प्रोत्साहन मिलेगा।
जन विश्वास विधेयक का उद्देश्य पर्यावरण, कृषि, मीडिया, उद्योग और व्यापार, प्रकाशन और अन्य डोमेन को नियंत्रित करने वाले 42 कानूनों में से लगभग 180 अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना है, जो देश में व्यापार करने में आसानी में बाधाएं पैदा करते हैं। इसका उद्देश्य व्यावसायिक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने और जनता की भलाई में सुधार करने के लिए कारावास की धाराओं को पूरी तरह से हटाने या मौद्रिक जुर्माने से बदलने का है। जन विश्वास बिल का लक्ष्य है कि, 42 कानूनों के 180 अपराधों को गैर-अपराधिक घोषित करना। यानी 180 ऐसे अपराध हैं जिन्हें अब अपराध नहीं माना जाएगा और इसलिए इसमें मिलने वाली सजा को कम कर दिया जाएगा। ये कानून पर्यावरण, कृषि, मीडिया, उद्योग, व्यापार, प्रकाशन और कई अन्य क्षेत्र के हैं जिनमें होने वाले अपराध को या तो कम किया गया है या खत्म किया है ताकी देश में व्यापार करने में आसानी हो।बिल का उद्देश्य है कि कुछ अपराधों में मिलने वाली जेल की सजा को या तो पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए या फिर जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाए।
भारत ‘रेगुलेटरी कोलेस्ट्रॉल’ से ग्रस्त है, जो व्यापार करने के रास्ते में बाधा बन रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित कानून, नियम और विनियमों ने समय के साथ विचारों, संगठन, धन, उद्यमिता के सुचारू प्रवाह और उनके माध्यम से नौकरियों, धन और सकल घरेलू उत्पाद के निर्माण में बाधाएं पैदा की हैं। कुछ व्यावसायिक कानूनों में, अनुपालन रिपोर्ट को देरी से या गलत तरीके से दाखिल करना एक अपराध है, जिसकी सजा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 के तहत राजद्रोह के बराबर है। व्यावसायिक कानूनों का अपराधीकरण, भारतीय व्यावसायिक परंपराओं और लोकाचार और भारत में उद्यमिता की गरिमा का उल्लंघन करता है। भारत में व्यापार करने को नियंत्रित करने वाले 1,536 कानूनों में से आधे से अधिक में कारावास की धाराएं हैं। पांच राज्यों – गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में उनके कानूनों में 1000 से अधिक कारावास की धाराएं हैं। भारत में व्यवसायों के सामने आने वाली प्राथमिक समस्याओं में से एक नियमों की जटिलता और ओवरलैपिंग है। केंद्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर कई नियामक संस्थाएं अक्सर व्यवसायों के लिए भ्रम और अनुपालन बोझ का कारण बनती हैं। भारत में, विनिर्माण क्षेत्र में 150 से अधिक कर्मचारियों वाला एक औसत उद्यम एक वर्ष में 500-900 अनुपालन करता है, जिसकी लागत लगभग 12-18 लाख रुपये होती है। कानून में बार-बार होने वाले बदलाव जैसे, जीएसटी कर-दरों में संशोधन, निर्यात प्रतिबंध आदि देश में व्यापार करने में आसानी को प्रभावित करते हैं।
कई अपराधों में जेल के प्रावधान को खत्म किया जाएगा। इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898 के तहत आने वाले सभी अपराधों और जुर्माने को हटाया जाएगा। शिकायत निवारण व्यवस्था में बदलाव होंगे, एक या एक से अधिक अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा ताकी वे जुर्माना तय कर सकें। किसी कानून का उल्लंघन होने पर अधिकारी जांच बिठा पाएंगे, पूछताछ कर सकेंगे और सबूत के लिए समन भी जारी कर सकेंगे। अपराधों के लिए लगाए जाने वाले जुर्माने को संशोधित किया जाएगा। बिल के अनुसार जुर्माने की कम से कम राशि का 10 फीसदी हर तीन साल के बाद बढ़ाया जाएगा। यानी जुर्माने की राशि हर तीन साल में बढ़ाई जाएगी। विधेयक आपराधिक कानूनों को युक्तिसंगत बनाने में सहायता करेगा, जिससे लोग, व्यवसाय और सरकारी एजेंसियां छोटे या तकनीकी रूप से गलत उल्लंघनों के लिए जेल जाने की चिंता के बिना काम कर सकें। प्रस्तावित कानून किए गए कार्य या उल्लंघन की गंभीरता और निर्दिष्ट दंड की गंभीरता के बीच संतुलन बनाता है। न्याय प्रदान करने की प्रणाली तकनीकी और प्रक्रियात्मक त्रुटियों, छोटी गलतियों और महत्वपूर्ण अपराधों के निर्धारण में देरी के कारण बोझिल हो गई है। परिणामस्वरूप, यह कानून कानूनी व्यवस्था पर बोझ को कम करेगा और मामलों के लंबित रहने के समय को कम करेगा। लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला सरकार द्वारा अपने लोगों और संस्थानों पर भरोसा करने में निहित है। इस संदर्भ में, जन विश्वास विधेयक प्रणाली को अव्यवस्थित करने और पुराने और अप्रचलित कानूनों के बोझ को दूर करने की परिकल्पना करता है। अनुपालन बोझ कम होने से व्यापार करने में आसानी में सुधार होगा।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम पैमाने के व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और ये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन उद्यमों को औपचारिक क्षेत्र में स्थानांतरित करने और नौकरियां और आय उत्पन्न करने के लिए, प्रभावी और कुशल व्यावसायिक नियम होने चाहिए, जो अनावश्यक लालफीताशाही को खत्म करें। विधेयक में इन मुद्दों का समाधान करने का प्रयास किया गया है। विनियामक बोझ निवेशकों के लिए पर्याप्त बाधाएँ पैदा करता है। इसके अलावा, आवश्यक अनुमोदनों के लिए लंबी प्रक्रिया लागत को बढ़ा सकती है और उद्यमशीलता की भावना को कमजोर कर सकती है। जन विश्वास विधेयक के माध्यम से प्रस्तावित संशोधनों से प्रक्रियाओं को आसान बनाने के कारण निवेश निर्णयों में तेजी आएगी और अधिक निवेश आकर्षित होगा। विधेयक अनुपालन को कम करने और छोटे अपराधों के लिए कारावास के डर को दूर करने में मदद करेगा, जिससे व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और ‘विश्वास-आधारित शासन’ को बढ़ावा मिलेगा।
सरकार देश के लोगों और विभिन्न संस्थानों पर भरोसा करें, यही लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला है। पुराने नियमों का अभी भी लागू रहना विश्वास की कमी का कारण बनता है।।। नियमों के पालन के बोझ को कम करने से व्यवसाय प्रक्रिया को गति मिलती है और लोगों के जीवनयापन में सुधार होता है। इस बिल का उद्देश्य है कि भारत में चल रहे व्यापार सहजता हो सके। व्यापार करने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है। नियमों का उल्लंघन होने पर भारी जुर्माना और जेल का प्रावधान है। बिल के अनुसार अगर ऐसा होगा तो देश में बिजनेस को कैसे प्रोत्साहन मिलेगा।

– डॉo सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148,01255281381

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