हाल ही में राजस्थान के कोचिंग हब कहलाने वाले कोटा जिले में नीट के एक और स्टूडेंट ने परेशान होकर बिल्डिंग से छलांग लगा दी और इससे उसकी मौत हो गई। मीडिया के हवाले से सामने आया है कि बच्चे का नीट का पेपर अच्छा नहीं हुआ था और आशंका जताई गई है कि तनाव में बच्चे ने सुसाइड कर लिया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2018 से हर साल 10 हजार से ज्यादा छात्रों ने किसी न किसी कारण जान दी है। 2021 में आत्महत्या के कुल 164033 मामलों में छात्रों की संख्या 13089 थी। खतरनाक बात यह है कि कुल आत्महत्या में छात्रों का प्रतिशत बढ़ रहा है। वर्ष
2011 और 2021 के आंकड़ों की तुलना करें तो इस दौरान कुल आत्महत्याएं 21% बढ़ीं, लेकिन छात्र आत्महत्या में 70% वृद्धि हुई। 2011 में हर दिन 21 छात्रों ने खुदकुशी की तो 2021 में यह संख्या 36 हो गई, यानी हर दो घंटे में तीन। 2021 में 18-30 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा 56,543 सुसाइड के मामले सामने आए। यह बहुत ही संवेदनशील है कि भारत में आत्महत्या दर (प्रति एक लाख आबादी में) विश्व औसत से ज्यादा है। यह पहली बार नहीं है कि जब ऐसी घटना सामने आई है। इससे पहले भी ऐसी घटनाएं कोटा में हो चुकी है। बहुत ही गंभीर बात तो यह है कि मात्र पांच महीनों में ही सुसाइड की यह चौथी घटना है। जानकारी देना चाहूंगा कि इससे पहले कोटा के विज्ञान नगर इलाके में 29 जनवरी 2023 को एक कोचिंग स्टूडेंट ने सुसाइड का प्रयास किया था। स्टूडेंट हॉस्टल की चौथी मंजिल की बालकनी से नीचे कूद गया था। बाद में उसे गंभीर हालत में एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। बताता चलूं कि स्टूडेंट के बालकनी से गिरते हुए का सीसीटीवी फुटेज भी उस वक्त सामने आया था। इसी प्रकार से इसी वर्ष 3 फरवरी 2023 की रात को जवाहर नगर इलाके के हॉस्टल की छठी मंजिल से गिरने से एक कोचिंग स्टूडेंट की मौत हो गई थी। मृतक जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) का रहना वाला था और वह भी नीट की ही तैयारी कर रहा था। इस घटना के बाद 8 फरवरी 2023 को कुन्हाड़ी थाना क्षेत्र में एक छात्रा ने मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के 10 वें माले से कूदकर सुसाइड कर लिया था और पुलिस को छात्रा के कमरे से एक डायरी भी मिली थी, जिसमें एक नोट में लिखा था- ‘गुडबॉय मम्मी पापा, मुझे माफ़ करना’। उक्त बच्ची भी ऑन लाइन नीट की तैयारी कर रही थी। बहरहाल, सोचनीय यह है कि आखिर इन स्टूडेंट्स की मौत का जिम्मेदार कौन है ? क्या इसके लिए हमारा एजुकेशनल सिस्टम जिम्मेदार है ? कोचिंग संस्थान या अन्य कोई ? सच तो यह है कि आज कहीं न कहीं हमारा एजुकेशनल सिस्टम भी इसके लिए जिम्मेदार है, क्योंकि आज बच्चों पर पढ़ाई का अनावश्यक बोझ है। आज के समय में एलकेजी, यूकेजी व नर्सरी जैसी छोटी कक्षाओं से ही बच्चों के अनाप शनाप बुक्स, सिलेबस लगा दिया जाता है। बच्चों से हम सभी(अभिभावक, माता पिता, यहाँ तक कि शिक्षकों की) की एक्सपेक्टेशनस(अपेक्षाएं) भी बहुत ज्यादा होतीं हैं, इसलिए हम भी कहीं न कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इसके लिए जिम्मेदार ही हैं। आज हर कोई अभिभावक, माता पिता, शिक्षक अपने बच्चों को आगे देखना चाहते हैं, बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद करते हैं, जीवन में जो कुछ वे स्वयं नहीं बन सके,उन सबकी उम्मीद वे अपने बच्चों में पूरी होते देखना चाहते हैं लेकिन यह सही नहीं ठहराया जा सकता है। बच्चों की भी अपनी सीमाएं हैं, लिमिटेशनस् हैं, उनकी भी अपनी विषयों को लेकर पसंद नापसंद होती हैं। आज एक बच्चे का इंटरेस्ट आर्ट्स में होता है लेकिन अभिभावक चाहते हैं कि वह साइंस स्ट्रीम में जाए और डॉक्टर, इंजीनियर बने। आज अभिभावक, माता पिता अपने बच्चों की पड़ौसियों या अन्य दूसरे के बच्चों के साथ तुलना करते हैं जो कि किसी भी हाल व परिस्थितियों में ठीक नहीं है। सभी में व्यक्तिगत भिन्नताएँ होतीं हैं, रूचियाँ होतीं हैं। प्रत्येक बच्चा अपने आप में खास व विशेष है, किसी में कोई क्वालिटी होती है तो किसी में कोई, लेकिन आज अभिभावक, माता पिता अपने बच्चों को पढ़ाई को लेकर उसकी क्वालिटी, उसके गुणों को नहीं पहचान पाते, वे दूसरों के साथ होड़ में लगे रहते हैं, क्या यह ठीक ठहराया जा सकता है ? बिल्कुल नहीं। क्यों कि आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ हर क्षेत्र में एक कॉम्पटिशन(प्रतियोगिता) है। चाहे वो पढ़ाई का क्षेत्र हो या और कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, आज एक बच्चे से लेकर बड़ों तक हर कोई इस दौड़ में शामिल हैं। एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा अच्छी भी है जिसकी वजह से हम आगे भी बढ़ते हैं लेकिन आजकल ये एक तरह से विशेषकर हमारे बच्चों पर लगातार हावी होती जा रही है और हम अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तत्पर हैं। वास्तव में, इस तरह की मानसिकता विशेषकर एक-दूसरे से तुलना करना ठीक नहीं है। आज आगे बढ़ने की लालसा में हमारे बच्चे कुंठा ग्रस्त होते जा रहे हैं, बच्चों से कुछ हद तक अपेक्षाएं रखना ठीक है लेकिन हद से ज्यादा अपेक्षाएं रखना ठीक नहीं है। हमारी अपेक्षाओं के चक्कर में आज सबसे ज्यादा हमारे बच्चे ही पिस रहे हैं। कई बार माँ- बाप, अभिभावक, रिश्तेदार अपनी इच्छायें, अपनी आकांक्षाओं को बच्चे पर लाद देते हैं जो कि किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता है। यदि हम अपने बच्चों को उनकी प्रतिभा और उनकी रूचि के अनुसार प्रशिक्षित करें, उनके साथ बैठकर उनकी रूचियों को जानें, उनकी समस्याओं को ठीक तरह से सुनें और उनमें सकारात्मकता का वातावरण तैयार करें तो ये उनके लिए अच्छा होगा और वो प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकेगें। वास्तव में आज हमारी शिक्षा व्यवस्था में बहुत सुधार की जरूरत है, क्यों कि आज की शिक्षा में क्रेमिंग या रटने पर जोर दिया जाता है। आज हर कहीं अंकों की होड़ मची है। क्या दिखावे के कारण बच्चों पर पढ़ाई का दवाब बनाने को तर्कसंगत व ठीक ठहराया जा सकता है ? सच तो यह है कि आज की शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कि हमारे बच्चों की नींव मजबूत करे, जहाँ अंकों की होड़ नहीं हो, जहाँ क्रेमिंग पर बल नहीं दिया जाए बल्कि समझने पर बल दिया जाए। वास्तव में, आज जरूरत इस बात की है कि बच्चों में तनाव, अवसाद कम हो इस ओर अभिभावक, माता पिता और शिक्षक ध्यान दें, उनमें किसी भी तरह की नेगेटिविटी न आने पाए और सकारात्मकता का निर्माण हो। इसके अलावा बच्चों से पेरेंट्स को लगातार बातचीत करना चाहिए, उन्हें मोटिवेट करना चाहिए। हम अभिभावकों, माता पिता, शिक्षकों को बच्चों की क्षमताएं, उसकी काबिलियत पहचानने की आज जरूरत है। वास्तव में अभिभावकों को इस बात की चिंता छोड़ देनी चाहिए कि किसी का बच्चा यदि अमूक विषय में अच्छा है तो उनका बच्चा भी अमूक विषय में अच्छा ही होगा।तुलना ठीक नहीं है। प्रत्येक बच्चे की मानसिक क्षमता, विभिन्न विषयों की प्रकृति और रूचियां अलग अलग होतीं हैं। वास्तव में बच्चों के बुनियादी ज्ञान की ओर आज अभिभावकों को अपना ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। सीखने के लिए सौहार्दपूर्ण माहौल बहुत जरूरी है। दंड और भय किसी भी तरह सिखाने में बच्चों की मदद नहीं करते। आज जीवन मूल्यों को अहमियत देने की जरूरत है। इसके अलावा अभिभावकों को यह चाहिए कि वे बच्चों को अकेला न छोड़ें। अगर बच्चा उदास या बेचैन नजर आए, तो उसकी मदद करें। बच्चे से अधिकाधिक बात करें। उसे समझाएं और स्कूल व दोस्तों की मदद लें। यदि बच्चों के व्यवहार में बहुत ज्यादा बदलाव नजर आए, तो उसे कभी भी नजरअंदाज न करें। बच्चों को काउंसलिंग के अलावा परिवार के साथ और प्यार की बहुत ही जरूरत होती है। अभिभावकों को यह चाहिए कि वे अपने बच्चों पर पढ़ने या किसी खास एक्टिविटी को करने का कभी भी अनावश्यक प्रेशर नहीं डालें। कोई आदत या काम बच्चों की मर्जी के बिना करवाना भी ठीक नहीं है, इससे बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा, गलती करने पर बच्चों को कभी भी अधिक डांटना या मारना नहीं चाहिए, इससे बच्चे जिद्दी बन जाते हैं और डिप्रेशन(तनाव) में जा सकते हैं। बच्चों की बातें सुननी चाहिए, उन्हें इग्नोर नहीं किया जाना चाहिए। भावनात्मक मदद के साथ बच्चे की काउंसलिंग की भी जरूरत होती है। माता-पिता को यह देखना चाहिए कि बच्चे की उम्मीदें न खत्म हों।सकारात्मकता बहुत ही जरूरी है। उम्मीद ही कुंजी है, इसके बिना जीवन का कोई मतलब नहीं।मां-बाप,अभिभावकों, शिक्षकों के साथ बच्चों को भी यह समझना चाहिए हर कोई आइंस्टाइन या अब्दुल कलाम नहीं बन सकता।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब