प्रकृति की अद्भुत और अनमोल देन है-‘जुगनू।’ हम सभी ने बचपन में कभी न कभी अपने गांव-देहात में, खेतों में
पेड़-पौधों के झुरमुट, घास के आसपास जुगनुओं को जगमगाते हुए जरूर देखा है। हम जुगनुओं के साथ खेलें हैं, उनकी जगमगाहट ने हमें हमेशा आनंदित, उल्लासित किया है।अपने शरीर से दीप्ति या प्रकाश उत्पन्न करने वाला प्रकृति का यह अद्भुत कीट बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं, जवानों सभी को अपनी तरफ जरूर आकर्षित करता है।वैसे,जुगनू शहर में भी दिखते हैं लेकिन इन्हें ज्यादातर गांव में ही देखा जाता है। ये अधिकतर रात के समय में ही चमकते हैं। हालांकि ये दिन में भी चमकते रहते हैं लेकिन हम उन्हें दिन के समय में देख नहीं पाते हैं। दरअसल, चमकने के हिसाब से नर और मादा दोनों जुगनू रात्रि के समय चमकते हैं, लेकिन नर जुगनू उड़ते हुए चमकता है। नर ऐसा इसलिए करता है ताकि वो मादा जुगनूओं को अपनी तरफ आकर्षित कर सके। आपको यह जानकर अत्यंत ही हैरानी होगी कि जुगनूओं के अंडे तक भी चमकते हैं।दिखने में यह एकदम पतले और दो पंख वाले होते हैं। ये जंगलों में पेड़ों की छाल में अपने अंडे देते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न लाल,पीला, हरा प्रकाश हमारी आंखों में जब चमकता है तो हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि प्रकृति का वास्तव में कोई भी जवाब नहीं है, वह अनोखी, अद्भुत, अकल्पनीय है और रहस्यों से भरी हुई है। वैसे, जुगनुओं द्वारा प्रकाश रासायनिक क्रिया द्वारा उत्पन्न किया जाता है। इसमें अवरक्त और पराबैंगनी आवृत्तियाँ नहीं होतीं हैं। इनका शरीर बहुत ही नरम, मुलायम होता है और इन्हें ‘बिजली के या चमक के कीड़े’ भी कहा जाता है। इन्हें ‘प्रकृति की टॉर्च’ भी कहा जा सकता है। जुगनू तो इनका नाम है ही। वैसे,नर और मादा जुगनू की शारीरिक बनावट में एक खास अंतर होता है। नर जुगनू जहां उड़ते हुए चमक सकता है, वहीं मादा जुगनूओं के पास पंख नहीं होते हैं। इसलिए वो एक ही जगह पर चमकती रहती है। वैसे तो भारत में देहाती क्षेत्रों में भी काफी संख्या में जुगनू पाए जाते हैं, लेकिन अधिक रोशनी से चमकने वाले जुगनू अधिकतर वेस्टइंडीज और दक्षिणी अमेरिका में ही पाए जाते हैं। जानकारी देना उचित होगा कि इस कीड़े की खोज 1667 में रॉबर्ट बायल नाम के एक वैज्ञानिक ने की थी। जुगनुओं के बारे में लोगों में यह गलत धारणा है कि ये फॉस्फोरस के कारण चमकते हैं।जुगनू फास्फोरस की वजह से नहीं बल्कि ल्युसिफेरेस नामक के प्रोटीनों के कारण चमकते हैं। जुगनू इस अपने द्वारा की गई रोशनी में अपने लिए खाना भी खोजते हैं और चमक पैदा कर अपने साथी को भी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जैसे ही हमारे मन-मस्तिष्क में जुगनू का नाम आता है तो ‘हमारे हृदय’ में ‘चमक’ या ‘दीप्ति’ कौंधने लगती है। अमूमन, जुगनू समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु में पाए जाते हैं। सभी ज्ञात जुगनू लार्वा के रूप में चमकते हैं, केवल कुछ वयस्क ही प्रकाश उत्पन्न करते हैं, और प्रकाश अंग का स्थान प्रजातियों के बीच और एक ही प्रजाति के लिंगों के बीच भिन्न होता है। जुगनुओं ने हमेशा हमेशा से मानवजाति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और लैम्पाइरिडे बीटल क्रम कोलोप्टेरा में कीड़ों का एक परिवार है, जिसमें 2,000 से अधिक वर्णित प्रजातियां हैं, जिनमें से कई प्रकाश उत्सर्जक हैं। जुगनू देखने में सुंदर होते हैं और विभिन्न संस्कृतियों में इनके सौंदर्य की सराहना की जाती है, विशेष रूप से जापान जैसे देश में इनके लिए अलग से पार्क तक बनाए गए हैं। हालांकि इस धरती पर जुगनू ही ऐसा प्राणी नहीं है जो चमकता है। बहुत सी मछलियां और केकड़े भी चमक पैदा करने वाले गुण रखते हैं लेकिन कीटों में जुगनू प्रमुख है जो रोशनी पैदा करते हैं। जुगनू पृथ्वी पर डायनासोर के युग से विद्यमान बताये जाते हैं। आज प्रकृति का यह अनमोल तोहफा तेजी से धरती से गायब हो रहा है। आज ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, जलवायु परिवर्तन हो रहा है, प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। इससे जुगनुओं के अस्तित्व पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। ताज्जुब करने वाली बात यह है कि दुनिया भर में जितने भी कीट पतंगे मौजूद हैं, उनमें जुगनुओं की हिस्सेदारी लगभग 40 फ़ीसदी है। आज शहरों में तो दूर की बात प्रकृति का यह अनमोल तोहफा(जुगनू) गांवों-देहातों में भी विरले ही नजर आता है। बढ़ते औधोगीकरण, जनसंख्या, कीटनाशकों के अनवरत प्रयोग, प्रदूषण से इस नन्हें से कीट की जान पर आज बन आई है। इनकी प्रजातियों में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। जुगनू किसानों के मित्र जीव हैं। धरती के पारिस्थितिकीय तंत्र में इन नन्हें कीटों का बहुत ज्यादा महत्व है, क्यों कि ये नन्हें कीट फसलों की रक्षा करते हैं। इन नन्हें, कोमल कीटों का अस्तित्व धरती पर बहुत आवश्यक है, क्यों कि इनके अस्तित्व पर कहीं न कहीं मानव अस्तित्व भी टिका हुआ है।
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब
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