यह बात किसी से ढकी छिपी नहीं हैं कि जिन समुदायों के लोग अपना वोट देकर राज बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं,बाद में उनकी कोई भागीदारी नहीं रहती है.मान्यवर काशीराम ने एक नारा दिया था- “वोट हमारा राज तुम्हारा- नहीं चलेगा, नहीं चलेगा”.वे बिल्कुल सही थे.सवाल है कि जिन्होंने राज बनाया वे कहाँ है ? अगर शासन और प्रशासन का निष्पक्ष सामाजिक अंकेक्षण किया जाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि दलित,आदिवासी,घुमंतू और अल्पसंख्यक तबके सिर्फ़ वोट लेने के काम आते हैं,राज काज में उनकी भागीदारी शून्य रखी जाती है.आज़ादी के बाद से आज तक किसी भी दल की सरकार आये,एक नियोजित षड्यंत्र के तहत यही किया जाता है.
इन वर्गों की समस्याओं के समाधान के लिए जो प्रक्रियाएँ और इदारे बनाए गए हैं, वे भी अपनी भूमिका का निर्वहन करते नज़र नहीं आते हैं. मैं देख रहा हूँ कि सरकारी अधिकारी कर्मचारी जन सुनवाई के नाम पर केवल तमाशा करते दिखाई दे रहे हैं,मुख्यमंत्री जी की भावना के अनुरूप आम जन को राहत देने का काम तो नहीं हो रहा है.निस्तारित प्रकरणों में वास्तविक समस्या समाधान के बजाय महज़ आँकड़ों की बाज़ीगरी ज़्यादा दिखाई पड़ रही है.ऐसी स्थिति में सिर्फ़ आलोचना करने के बजाय सीधे आम जनता के मध्य जा कर उनकी शिकायतों को सुनकर मुख्यमंत्री जी और सम्बंधित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को स्पष्टत: सार्वजनिक रूप से अवगत करवाया जाना मुझे उचित प्रतीत होता है.
मैं यह पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ और इस बात का ज़िक्र विगत दिनों भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मैने राहुल जी के साथ वॉक एंड टॉक के दौरान भी किया कि दलित व आदिवासी और अल्पसंख्यक तबके की कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है,न कोई कार्यवाही होती है,न समाधान निकलता है,लोग निराश है. सरकारी अमला और प्रचार तंत्र जिस तरह के आँकड़े पेश कर रहा है, ग्राउंड पर हालात वैसे नज़र नहीं आते हैं.जैसे बताए जाते हैं.
हर गुरुवार को की जाने वाली जन सुनवाइयों की स्थिति भी बड़ी विचित्र है,राज्य जन अभियोग निराकरण समिति के सदस्य के नाते मुझे एक दिन पहले चिट्ठियाँ मिलती है अथवा उसी दिन,शायद अधिकारी चाहते ही नहीं है कि आम जन की आवाज़ बुलंद करने वाले लोग मीटिंगों में मौजूद रहे, कयोंकि तब उनको वास्तविक राहत देनी होगी,आँकड़ेबाज़ी से काम नहीं चल पायेगा.
मैने तय किया है कि सरकारी मीटिंगों में केवल आँकड़े जानने के लिए नहीं बल्कि दलित आदिवासी घुमंतू एवं अल्पसंख्यक समुदाय की वास्तविक समस्याओं को जानने समझने और उनका निराकरण करने हेतु मैं सीधे इन तबकों की बस्तियों में जाऊँ और उनके बीच बैठकर उनकी समस्याएँ सुनूँ तथा उनसे सीधे मुख्यमंत्री जी को अवगत करवाऊँ.
मैने कल रात्रि से इसकी शुरुआत कर दी है,अब मैं सार्वजनिक मंचों,मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए प्रदेश भर के दलित,आदिवासी, घुमंतू और अल्पसंख्यक समुदाय की पीड़ाओं को उजागर करुंगा और मौक़े से विभिन्न विभागों और मुख्यमंत्री कार्यालय को हस्तलिखित पत्र लिखूंगा.देखते हैं, समाधान होता है,राहत मिलती है अथवा सिर्फ़ निस्तारण के नाम पर सिर्फ़ तमाशा होता है ?
बीती रात्रि को मैं माण्डल विधानसभा क्षेत्र की बावड़ी पंचायत के वार्ड नम्बर 13 की भील बस्ती पहुँचा,यहाँ पर अनुसूचित जाति व जनजाति के 126 मतदाताओं के परिवार निवास करते हैं, यहाँ रात्रि चौपाल में आये दलित आदिवासी लोगों ने मुझे बताया कि आज़ादी के बाद आज तक विकास के नाम पर एक ईंट तक नहीं वहाँ नहीं लगी, न नाली है और न सीसी रोड, यहाँ तक कि इन वर्गों के बैठने के लिए कोई सामुदायिक भवन तक नहीं है.वहाँ की हालात को देखकर इस बात में मुझे सच्चाई लगी.यहाँ के दलित आदिवासी ग्रामीण विगत छह महीनों से सार्वजनिक उपयोग हेतु सामुदायिक भवन के लिए भूमि आवंटित करने की माँग कर रहे हैं. कईं बार सक्षम स्तर तक मिल चुके हैं,लेकिन यहाँ का जातिवादी मानसिकता का सरपंच पुत्र नहीं चाहता है कि भील व बलाई समाज के लोगों को ज़मीन मिले और उनके लिए सामुदायिक भवन बने.इस सम्बंध में मौक़े से ही मैने राजस्व मंत्री रामलाल जी जाट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी को समस्या का समाधान करने का आग्रह करते हुये पत्र लिखा.
मैं प्रदेश के दलित,आदिवासी,घुमंतू और अल्पसंख्यक समुदायों की परिवेदनाओं से सरकार को मौक़े से अवगत कराने का अपना यह अभियान जारी रखूँगा और यह देखूँगा कि अभियोग निराकरण होते हैं या सिर्फ़ जन सुनवाइयों और प्रकरण निस्तारण का तमाशा ? देखते हैं क्या होता है ?
– भंवर मेघवंशी
( सदस्य- जन अभियोग निराकरण समिति, राजस्थान सरकार )
Bhanwar Meghwanshi
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