बापू के भजन ईश्वर अल्लाह एक ही नाम ,सबको सन्मति दें भगवान को सुन कर के मन के अंदर कुछ सवाल उभरते हैं जैसे संसार में अनेकों प्रकार के धर्मालंबी क्यों है ? भगवान के रूप यथा शिव विष्णु ब्रह्मा राम क्रष्ण गणेश ईशु मसीह खुदा महावीर बुद्ध आदि ? हिन्दू मन्दिर में प्रवेश करने के पूर्व स्नान करते हैं ?मुसलमान वाजू क्यों करते हैं ? हिन्दू मृतक का अंतिम संस्कार करते हैं ? क्यों मुसलमान शव को दफनाते हैं ? अरब के मुल्कों में मांस खाया जाया है ? क्यों हिन्दू वेजिटेरियन हैं ? मुसलमान क्यों दफनाते हैं ? क्यों मुसलमान सूअर को खाने को जायज कहते हैं दूसरी तरफ हिन्दू गाय के वध को पाप मानते हैं ? एन सभी मुश्किल सवालों का उत्तर हमें विवेकानंद जी और उनके शिष्य मुंशी फैज अली के मध्य उपलब्ध वार्तालाप से मिल सकता है |
मुंशी फैज अली ने स्वामी विवेकानंद से पूछा हमें बताया गया है कि अल्लाह एक ही है। यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ? “स्वामी जी ने जवाब दिया , “सत्य” है। मुशी फेज अली फिर सवाल किया ,”तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये। जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था। सब एक होते तो न कोई लड़ाई और न कोई झगङा होता। “.स्वामी ने हँसते हुए उत्तर दिया, “मुंशी जी विचार करों “ वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते। केवल गुलाब होता, कमल या रजनीगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते !” फैज अली ने कहा सच कहा आपने | यदि एक ही दाल होती तो खाने का स्वाद भी एक ही होता। और तब दुनिया तो बड़ी फीकी सी हो जाती | स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिए तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए ताकि हम पिंजरे का भेद भूलकर जीव की एकता को पहचाने।
मुंशी फैज अली ने स्वामी विवेकानंद से पूछा , ” हिन्दु कहते हैं कि मंदिर में जाने से पहले या पूजा करने से पहले स्नान करो। मुसलमान नमाज पढ़ने से पहले वाजु करते हैं। क्या अल्लाह ने कहा है कि नहाओ मत, केवल लोटे भर पानी से हांथ-मुंह धो लो? स्वामी ने बताया कि नहीं, अल्लाह ने नही कहा अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए। जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है। यह तो भारत में ही संभव है, जहाँ नदियां बहती हैं, झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं। तिब्बत में यदि पानी हो तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा। यह सब प्रकृति ने सबको समझाने के लिये किया है।
“स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि,” मनुष्य की मृत्यु होती है। उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी। अतः वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ, जिसे आप दफनाना कहते हैं। भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे, लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी अतः भारत में अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। जिस देश में जो सुविधा थी वहाँ उसी का प्रचलन बढा। वहाँ जो मजहब पनपा उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया।फैज अलि विस्मित होते हुए बोला! “स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें शव का अंतिम संस्कार प्रदेश और देश की भोग्र्लिक अवस्था के मुताबिक़ करना चाहिए | मजहब के अनुसार नही। “स्वामी जी बोले , “हाँ ! यही उचित है। ” किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया।मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नहीं करना चाहता। हिंदू मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी इसलिए उसे मृत शरीर से एक क्षण भी मोह नहीं होता।तब”फैज अलि ने पूछा कि, “एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए तो क्या प्रभु नाराज नही होंगे?”स्वामी जी ने कहा,” प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं। वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते वे प्रेमसागर हैं, करुणा सागर है।
मुशी जी ने पूछा, “इतने मजहब क्यों” ? स्वामी जी ने कहा, ” मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है। मुशी जी ने कहा कि, ” ऐसा क्यों है कि एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ और दूसरे में कहा गया है कि गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ; इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।” स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,”क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?”मुंशी जी बोले नही,”मजहबी लोग यही कहते हैं।” स्वामी जी बोले, “मित्र! किसी भी देश या प्रदेश का भोजन वहाँ की जलवायु की देन है। सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह सागर से पकङ कर मछलियां ही खायेगा। उपजाऊ भूमि के प्रदेश में खेती हो सकती है। वहाँ अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है। उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। उन्होने गाय को अपनी माता धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना । क्योंकि ये सब उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।” “अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नही होगी तो वे गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नही तो खाद्य के रूप में पशु को ही खायेंगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नहीं है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।
डा.जे.के.गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर