Skip to content
  • होम
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • जनरल न्यूज
  • दखल
  • गेस्ट राइटर

गुरु गोविन्द सिंह : हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्षक एक महान योद्धा

गेस्ट राइटर
/
January 4, 2023

गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती- 5 जनवरी 2023

ललित गर्ग
भारत की रत्नगर्भा माटी में जन्मे संतपुरुषों, गुरुओं एवं महामनीषियों की शृृंखला में एक महापुरुष हैं गुरु गोविन्द सिंह। जिनकी दुनिया के महान् तपस्वी, महान् कवि, महान् योद्धा, महान् संत सिपाही साहिब आदि स्वरूपों में पहचान होती है। दुनिया में देश व धर्म की रक्षार्थ अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुष तो अनेक मिलेंगे किन्तु अपनी तीन पीढ़ियों, बल्कि यों कहें कि अपने पूरे वंश को इस पुनीत कार्य हेतु बलिदान करने वाले विश्व में शायद एकमेव महापुरुष गुरु गोविन्द सिंहजी ही है। जिन्होंने त्याग, बलिदान एवं कर्तृत्ववाद का संदेश दिया। भाग्य की रेखाएं स्वयं निर्मित की। स्वयं की अनन्त शक्तियों पर भरोसा और आस्था जागृत की। सभ्यता और संस्कृति के प्रतीकपुरुष के रूप में जिन्होंने एक नया जीवन-दर्शन दिया, जीने की कला सिखलाई। जिनको बहुत ही श्रद्धा व प्यार से कलगीयां, सरबंस दानी, नीले वाला, बाला प्रीतम, दशमेश पिता आदि नामों से पुकारा जाता है। भारत में फैली दहशत, डर और जनता का हारा हुआ मनोबल देखकर उन्होंने कहा ‘‘मैं एक ऐसे पंथ का सृजन करूँगा जो सारे विश्व में विलक्षण होगा। जिससे मेरे शिष्य संसार के असंख्य लोगों में पहली ही नजर में पहचाने जा सकेंगे। जैसे हिरनों के झुंड में शेर और बगुलों के झुंड में हंस। वह केवल बाहर से अलग न दिखे बल्कि आंतरिक रूप में भी ऊँचे, साहसी और सच्चे विचारों वाले हो।
सारे जगत में खालसा पंथ की गंूज करने वाले, हिन्दू धर्म के रक्षक-उद्धारक, मुगलों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने वाले श्री गुरु गोविन्द सिंहजी का जन्म संवत् 1723 विक्रम की पौष सुदी सप्तमी को हुआ। उनके पिता गुरु तेगबहादुर उस समय अपनी पत्नी गुजरी तथा कुछ शिष्यों के साथ पूर्वी भारत की यात्रा पर थे। अपनी गर्भवती पत्नी और कुछ शिष्यों को पटना छोड़कर वे असम रवाना हो गये थे। वहीं उन्हें पुत्र प्राप्ति का शुभ समाचार मिला। बालक गोविन्द सिंह के जीवन के प्रारंभिक 6 वर्ष पटना में ही बीते। अपने पिता के बलिदान के समय गुरु गोविन्द सिंह की आयु मात्र 9 वर्ष की थी। इतने कम उम्र में गुरु पद पर आसीन होकर उन्होंने गुरु पद को अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से और भी गौरवान्वित किया। अपने नाम के तीनों शब्द ‘गुरु’, ‘गोविन्द’ एवं ‘सिंह’ को शब्दशः चरितार्थ कर देश, धर्म, संस्कृति, इतिहास एवं स्वाभिमान की रक्षार्थ ज्ञान के भण्डार के रूप में एक श्रेष्ठ गुरु, ईश्वर की राह के पथ प्रदर्शक तथा सिंह गर्जना के साथ शत्रुओं के छक्के छुड़ा देने वाले गुरु गोविन्द सिंहजी यदि नहीं होते तो मुगलों के अत्याचार के विवश समस्त हिन्दू समाज इस्लाम धर्म स्वीकार कर अपनी संस्कृति, स्वधर्म, स्वराज एवं स्वाभिमान को सदा के लिये तिलांजलि दे चुका होता।
श्री गुरु गोविन्द सिंहजी शासक होकर भी उनकी नजर में सत्ता से ऊंचा स्वराष्ट्र, स्व-अस्तित्व, समाज एवं मानवता का हित सर्वोपरि था। यूं लगता है वे हिन्दू जीवन-दर्शन के पुरोधा बन कर आए थे। उनका अथ से इति तक का पुरा सफर हिन्दू धर्म की रक्षा, पुरुषार्थ एवं शौर्य की प्रेरणा है। वे सम्राट भी थे और संन्यासी भी। आज उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कर्तृत्व सिख इतिहास का एक अमिट आलेख बन चुका है। उन्हें हम तमस से ज्योति की ओर एक यात्रा एवं मानवता के अभ्युदय के सूर्योदय के रूप में देखते हैं।
गुरु गोविन्द सिंह बचपन से ही बहुत पराक्रमी व प्रसन्नचित व्यक्तित्व के धनी थे। उन्हें सिपाहियों का खेल खेलना बहुत पसंद था। बालक गोविन्द बचपन में ही जितने बुद्धिमान थे उतने ही अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी से भी लोहा लेने में पीछे नहीं हटते थे। वे एक कुशल संगठक थे। दूर-दूर तक फैले हुए सिख समुदाय को ‘हुक्मनामे’ भेजकर, उनसे धन और अस्त्र-शस्त्र का संग्रह उन्होंने किया था। एक छोटी-सी सेना एकत्र की और युद्ध नीति में उन्हें कुशल बनाया। उन्होंने सुदूर प्रदेशों से आये कवियों को अपने यहाँ आश्रय दिया। यद्यपि उन्हें बचपन में अपने पिता श्री गुरु तेगबहादुरजी से दूर ही रहना पड़ा था, तथापि तेगबहादुरजी ने उनकी शिक्षा का सुव्यवस्थित प्रबंध किया था। साहेबचंद खत्रीजी से उन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी भाषा सीखी और काजी पीर मुहम्मदजी से उन्होंने फारसी भाषा की शिक्षा ली। कश्मीरी पंडित कृपारामजी ने उन्हें संस्कृत भाषा तथा गुरुमुखी लिपि में लेखन, इतिहास आदि विषयों के ज्ञान के साथ उन्हें तलवार, बंदूक तथा अन्य शस्त्र चलाने व घुड़सवारी की भी शिक्षा दी थी। श्री गोविन्द सिंहजी के हस्ताक्षर अत्यंत सुन्दर थे। वे चित्रकला में पारंगत थे। सिराद-एक प्रकार का तंतुवाद्य, मृदंग और छोटा तबला बजाने में वे अत्यंत कुशल थे। उनके काव्य में ध्वनि नाद और ताल का सुंदर संगम हुआ है। इस तरह गुरु गोविन्द सिंह कला, संगीत, संस्कृति एवं साहित्यप्रेमी थे।
जैसाकि खुद गुरु गोबिंद सिंह ने कहा था, कि जब-जब अत्याचार बढ़ता है, तब-तब भगवान मानव देह का धारण कर पीड़ितों व शोषितों के दुख हरने के लिए आते हैं। औरंगजेब के अत्याचार चरम सीमा पर थे। दिल्ली का शासक हिन्दू धर्म तथा संस्कृति को समाप्त कर देना चाहता था। हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया साथ ही हिन्दुओं को शस्त्र धारण करने पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया था। ऐसे समय में कश्मीर प्रांत से पाँच सौ ब्राह्मणों का एक जत्था गुरु तेगबहादुरजी के पास पहुँचा। पंडित कृपाराम इस दल के मुखिया थे। कश्मीर में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हो रहे थे, उनसे मुक्ति पाने के लिए वे गुरुजी की सहानुभूति व मार्गदर्शन प्राप्ति के उद्देश्य से आये थे। गुरु तेगबहादुर उन दुःखीजनों की समस्या सुन चिंतित हुए। बालक गोविन्द ने सहज एवं साहस भाव से इस्लाम धर्म स्वीकार न करने की बात कही। बालक के इन निर्भीक व स्पष्ट वचनों को सुनकर गुरु तेगबहादुर का हृदय गद्गद् हो गया। उन्हें इस समस्या का समाधान मिल गया। उन्होंने कश्मीरी पंडितों से कहा-‘‘आप औरंगजेब को संदेश भिजवा दें कि यदि गुरु तेगबहादुर इस्लाम स्वीकार लेंगे, तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे” और फिर दिल्ली में गुरुजी का अमर बलिदान हुआ जो हिन्दू धर्म की रक्षा के महान अध्याय के रूप में भारतीय इतिहास में अंकित हो गया।
गुरु गोबिंद सिंहजी एक साहसी योद्धा के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी थे। इन्होंने बेअंत वाणी के नाम से एक काव्य ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ की रचना करने का गोविन्दजी का मुख्य उद्देश्य पंडितों, योगियों तथा संतों के मन को एकाग्र करना था। इनके पिता श्री गुरु तेग बहादुरजी ने तथा इन्हांेने मुगल शासकों के विरुद्ध काफी युद्ध लड़े थे। जिन युद्धों में इनके पिता जी शहीद हो गये थे। श्री तेगबहादुरजी के शहीद होने के बाद ही सन् 1699 में गुरु गोविन्द सिंहजी को दशवें गुरु का दर्जा दिया गया था। गुरु गोविन्द सिंहजी ने युद्ध लड़ने के लिए कुछ अनिवार्य ककार धारण करने की घोषणा भी की थी। सिख धर्म के ये पांच क-कार हैं- केश, कडा, कंघा, कच्छा और कटार। ये शौर्य, शुचिता तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के संकल्प के प्रतीक है।
इस प्रकार गुरु गोविन्द सिंहजी का जीवन एक कर्मवीर की तरह था। भगवान श्रीकृष्ण की तरह उन्होंने भी समय को अच्छी तरह परखा और तदनुसार कार्य आरम्भ किया। उनकी प्रमुख शिक्षाओं में ब्रह्मचर्य, नशामुक्त जीवन, युद्ध-विद्या, सदा शस्त्र पास रखने और हिम्मत न हारने की शिक्षाएँ मुख्य हैं। उनकी इच्छा थी कि प्रत्येक भारतवासी सिंह की तरह एक प्रबल प्रतापी जाति में परिणत हो जाये और भारत का उद्धार करें। गुरु गोविन्द सिंह जैसे महापुरुष इस धरती पर आये जिन्होंने सबको बदल देने का दंभ तो नहीं भरा पर अपने जीवन के साहस एवं शौर्य से डर एवं दहशत की जिन्दगी को विराम दिया। काश! आज हम ऐसे महापुरुषों के जीवन को अपने जीवन में जीवन्त बना पाते और जब अपने आपसे पूछते-‘अन्धेरे और आतंक की उम्र कितनी?’ तो शायद हमारा उत्तर होता-‘जागने में समय लगे उतनी।’

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

पिछला Reliance Consumer Products Limited forms Joint Venture with Sosyo Hajoori Beverages Private Limited अगला एसरी इंडिया ने कार्बन फुटप्रिंट अवेयरनेस ऐप लांच किया

Leave a Comment Cancel reply

Recent Posts

  • आईआईटी मंडी ने अपने एमबीए डेटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम के 2025-27 बैच के लिए आवेदन आमंत्रित किए
  • समाज सुधारक युग प्रवर्तक सच्चे हिंदुत्व के मसीहा कर्म योगी सभी वर्गो चहेते स्वामी विवेकानंद
  • टोयोटा किर्लोस्कर मोटर ने कर्नाटक में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकारी टूल रूम और प्रशिक्षण केंद्र के साथ समझौता किया
  • आज का राशिफल व पंचांग : 11 जनवरी, 2025, शनिवार
  • इंसानों की तस्करी की त्रासदी वाला समाज कब तक?

संपादक की पसंद

Loading...
गेस्ट राइटर

गांव, गरीब और किसान की सुुध लेता बजट

February 2, 2018
Loading...
दखल

पिज्जा खाने से रुकी किरपा आ जाती है

December 14, 2024
दखल

पाकिस्तान सम्भले अन्यथा आत्मविस्फोट निश्चित है

February 20, 2023
दखल

श्रद्धा जैसे एक और कांड से रूह कांप गयी

February 16, 2023
दखल

अमृत की राह में बड़ा रोड़ा है भ्रष्टाचार

February 8, 2023
दखल

सामाजिक ताने- बाने को कमजोर करती जातिगत कट्टरता

February 4, 2023

जरूर पढ़े

Loading...
गेस्ट राइटर

गांव, गरीब और किसान की सुुध लेता बजट

February 2, 2018
© 2025 • Built with GeneratePress