जीवन में बहुत बार स्थिति ऐसे बनती है कि समय व्यतीत हो जाने व घटना के घटित हो जाने पर हमारा चिंतन हो आता है कि आखिर मेरे साथ ऐसा क्यूं हुआ? विशेषत: जब हम शारीरिक कष्टो को पा रहे होते है या फिर हमारे संबंधो में बिखराव आ रहा होता है। इस विषय पर मेरा अनुभव कुछ बिंदुओं पर आधारित होकर यह कहता है कि हम हमारी तमाम जिदंगी लोग क्या सोचेगे सोचकर अपने विकास के रास्तो को अवरूद्ध कर लेते है। हम जो जिदंगी में करना या पाना चाहते है उस अभिलाषा को लोग क्या कहेगे के कारण टालते रहते है और एक समय बाद यह हमारे लिए पछतावा बन जाता है। एक अन्य कारण होता है कि हम समय पर परिवार के साथ समय ना देने पा की भूल करते है। अपने व्यवसायिक व पेशे की व्यस्तता के चलते अर्थ तो कमा लेते है लेकिन परिवार को भूल जाते है यह जानते हुए कि परिवार में मिली खुशी ही हमेशा बनी रहती है। एक सत्य यह भी है कि हम जीवन में अपने रूचिकर कार्य ना करने की भूल करते है। पारिवारिक मजबूरी कारण हो सकती है उसके बाबजूद भी समय निकालकर अपने रूचि के किसी भी कार्य को अवश्य ही करना चाहिए वरना जिदंगी के एक मोड़ पर हमें हमेशा पछतावे के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होगा। यह स्थिति और विकट हो जाती है जब हम वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे होते है और चाहकर भी बीते दिनों को नहीं बदल सकते केवल ना कर पाने की हसरत लिए रोगग्रस्त हो जाते है। समय अभी भी शेष है, उम्र के किसी भी ढ़लान परअपने ऊर्जावान समय को रूचिकर कार्यो के साथ परिवार पहले की भावना को नजर में रखकर निर्धारित करे।
DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
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