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*वर्तमान परिपेक्ष में अपनी भूमिका तय करें मीडिया*

गेस्ट राइटर
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December 19, 2022

देश की आजादी से पहले मीडिया का एक प्रमुख लक्ष्य था ।समाचार पत्र पत्रिकाऐ देश की आजादी का आंदोलन था। देश की आजादी के लिए लोगों में जन जागृति पैदा करना पत्रकारिता का मकसद था। सन्1947 से पहले यानी गुलामी के दौर में अनेक देशभक्त पत्रकारों को अंग्रेज सरकार ने जेल में ठूंस दिया था। देश को आजादी मिलने के बाद पत्रकारिता का मकसद व्यवसायिक हो गया।

*व्यवसायिकता के चलते वर्तमान में मीडिया का कोई विशेष जनहित उद्देश्य नहीं रह गया है। सनसनीखेज तथा चटपटी खबरों की मे होड़ में समाज में अपराध तथा विकृतियां पैदा हो रही है*।
दिल्ली में श्रद्धा मर्डर जैसा ही 18 दिसम्बर 22 को समाचार पत्रों में खबर आई कि जयपुर में भतीजे अनुज शर्मा ने अपनी ही ताई की हत्या कर मार्बल कटर से 10 टुकड़े कर जंगल में फेंक दिए। अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी। आरोपी ने बताया कि शव को ठिकाने लगाने के लिए दिल्ली में श्रद्धा मर्डर केस की तरह उसने शव को ठिकाने लगाने के लिए शव टुकड़े करने के लिए मार्बल कटर का उपयोग किया है। दूसरे दिन 19 दिसम्बर को अखबारों में खबर छपी कि झारखंड में युवक ने अपनी पत्नी की हत्या कर श्रद्धा कांड की तरह ही कटर मशीन से शव के टुकड़े कर दिए।
जोधपुर में दर्जी की गला काटने की घटना के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी गला काटने की घटनाएं हुई।

पूर्व की कुछ घटनाओं के बारे में विचार करते है – दिल्ली में निर्भया बलात्कार कांड मीडिया में खूब चर्चित रहा इसके बाद बाद पूरे देश में बलात्कार की घटनाएं बढ़ गई थी।
अजमेर जिले में भी करीब 3 वर्ष पूर्व क्रमवार आत्महत्याओ का दौर चला था। करीब 2 महीने तक प्रतिदिन आत्महत्या की खबरें छपती थी। उस समय मैंने मेरे कुछ संपादक मित्रों से समाज व देश हित में आत्महत्याओ की खबरों को अधिक स्थान तथा महत्व न देने का अनुरोध किया था। इसके बाद आत्महत्या की खबरें संक्षिप्त तथा एक कालम में छपने लगी। और बाद में आत्महत्या की घटनाओं में भी भारी कमी हुई।
*मनुष्य का स्वभाव भावुक होता है। अपने आसपास जैसा माहौल वातावरण देखता है उसी के अनुसार उसकी भावनाएं बनती है*।
1970 के दशक में जय संतोषी माता के नाम से फिल्म आई थी तब देश में घर घर संतोषी माता की पूजा होने लगी।
80 और 90 के दशक में टीवी पर रामायण और महाभारत सीरियल चलें। उस दौर में देश में छोटे-छोटे बच्चे भी धनुष तीर से खेलते दिखाई देने लगे।
फिल्म बार्डर, ग़दर जैसी देशभक्ति फिल्मों ने देश की जनता में देशभक्ति की भावनाएं भर्ती भर दी थी।
मुकेश खन्ना अभिनीत टी वी सीरियल शक्तिमान से प्रभावित बच्चे शक्तिमान पुकारते हुए छतों तथा ऊंचाई वाले स्थानों से कूदने लगें थे । तथा कई घायल या मौत को प्राप्त हुए थे।
कहने का मतलब यह है कि *आसपास के माहौल तथा वातावरण से मनुष्य की भावनाओं और विचारों पर प्रभाव पड़ता है। देश विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। ऐसे में जनहित राष्ट्रीय हित को सामने रखकर समाचार पत्रों तथा टीवी को वर्तमान परिपेक्ष मैं अपनी भूमिका तय करनी चाहिए*। क्योंकि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। वह जैसा देश की जनता और समाज के सामने पेश करेंगे वैसे ही देश का वातावरण बनेगा ।
*सृजन और ध्वंस में सृजन को चुनना होगा। देश की जनता के चरित्र निर्माण में मीडिया को भूमिका निभाने की आवश्यकता है।*
*नकारात्मकता फैलाने वाली सनसनीखेज की बजाय सकारात्मकता सृजन और का संदेश देने वाली खबरों को महत्व दिया जाना चाहिए*।
देश के प्रमुख अख़बार दैनिक भास्कर ने इस दिशा में पहल की है प्रति सोमवार दैनिक भास्कर में सकारात्मक खबरें ही छपती है सोमवार के दिन भास्कर में नकारात्मक सोच वाली खबरों को स्थान नहीं दिया जाता यह एक अच्छी पहल है।
*देश के मीडिया को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अपनी सकारात्मक व सृजनात्मक भूमिका के बारे में तय करना चाहिए*।

*हीरालाल नाहर पत्रकार*
*9929686902*

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