ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की चालों, नक्षत्रों की स्थिति और इनसे बनने वाले विशेष योगों का बहुत महत्व है। ये योग मनुष्य के जीवन की दिशा तय करते हैं। इसके साथ ही इन्हीं योगों के आधार पर किसी भी कार्य का फल भी निश्चित होता है। दरअसल, तय मुहूर्त और नक्षत्र में किए जाने वाले कार्य अपना मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। इन सभी योगों में सबसे महत्वपूर्ण योग सर्वार्थ सिद्ध योग है। ज्योतिष के अनुसार यह योग किसी भी कार्य की सिद्धि कराने में समर्थ होता है।
क्या है सर्वार्थ सिद्ध योग
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सर्वार्थ सिद्धि योग एक अत्यंत शुभ योग है जो निश्चित वार और निश्चित नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह योग एक बहुत ही शुभ समय है जो कि नक्षत्र वार की स्थिति के आधार पर गणना किया जाता है। यह योग सभी इच्छाओं तथा मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। भूमि या मकान खरीदना हो, प्रतिष्ठान का उद्घाटन, वाहन खरीदना, सगाई-रोका, टीका करना हो तो इन सभी कार्यों को करने के लिए अक्सर सर्वार्थ सिद्ध योग खोजा जाता है। इस मुहूर्त में किया गया हर कार्य अपना सिद्ध फल प्रदान करता है। यदि किसी शुभ कार्य को करने के लिए आवश्यक और सही मुहूर्त नहीं मिल पा रहा है तो आप सर्वार्थ सिद्धि योगों में अपना शुभ कार्य कर सकते हैं, इन मुहूर्तों में शुक्र अस्त, पंचक, भद्रा आदि पर विचार करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे बनता है सर्वार्थ सिद्ध योग
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रविवार को हस्त, मूल, तीनों उत्तरा- उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, पुष्य और अश्विनी ये 7 नक्षत्र हों तो ये शुभ योग बनता है। इसके साथ ही सोमवार को श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य और अनुराधा ये 5 नक्षत्र हों तो ये शुभ योग बनता है। मंगलवार को अश्विनी, उत्तराभाद्रपद, कृतिका और आश्लेषा ये 4 नक्षत्र हों तो ये शुभ योग बनता है।
बुधवार को रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका, पुनर्वसु, मृगशिरा ये 6 नक्षत्र हों तो ये शुभ योग बनता है। गुरुवार को रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य ये 5 नक्षत्र हों तो ये शुभ योग बनता है। शुक्रवार को रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु और श्रवण ये 5 नक्षत्र हों तो ये शुभ योग बनता है। शनिवार को श्रवण, रोहिणी, स्वाति ये 3 नक्षत्र हों तो सर्वार्थसिद्धि योग बनता है। इसमें किया गया कार्य सफल होता है।
जानिए कौन-कौन से योग होते हैं शुभ
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ज्योतिष शास्त्र में पंचांग से तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के आधार पर मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है। जिन मुहूर्तों में शुभ कार्य किए जाते हैं उन्हें शुभ मुहूर्त कहते हैं। इनमें सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, रवि पुष्य योग, पुष्कर योग, अमृत सिद्धि योग, राज योग, द्विपुष्कर एवं त्रिपुष्कर यह कुछ शुभ योगों के नाम हैं।
अमृत सिद्धि योग :- अमृत सिद्धि योग अपने नामानुसार बहुत ही शुभ योग है। इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। यह योग वार और नक्षत्र के तालमेल से बनता है। इस योग के बीच अगर तिथियों का अशुभ मेल हो जाता है तो अमृत योग नष्ट होकर विष योग में परिवर्तित हो जाता है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर जहां शुभ योग से शुभ मुहूर्त बनता है लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विष योग बनता है।
सिद्धि योग :- वार, नक्षत्र और तिथि के बीच आपसी तालमेल होने पर सिद्धि योग का निर्माण होता है। उदाहरण स्वरूप सोमवार के दिन अगर नवमी अथवा दशमी तिथि हो एवं रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, श्रवण और शतभिषा में से कोई नक्षत्र हो तो सिद्धि योग बनता है।
सर्वार्थ सिद्धि योग :- यह अत्यंत शुभ योग है। यह वार और नक्षत्र के मेल से बनने वाला योग है। गुरुवार और शुक्रवार के दिन अगर यह योग बनता है तो तिथि कोई भी यह योग नष्ट नहीं होता है अन्यथा कुछ विशेष तिथियों में यह योग निर्मित होने पर यह योग नष्ट भी हो जाता है। सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, अथवा श्रवण नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है जबकि द्वितीया और एकादशी तिथि होने पर यह शुभ योग अशुभ मुहूर्त में बदल जाता है।
पुष्कर योग :- इस योग का निर्माण उस स्थिति में होता है जबकि सूर्य विशाखा नक्षत्र में होता है और चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में होता है। सूर्य और चन्द्र की यह अवस्था एक साथ होना अत्यंत दुर्लभ होने से इसे शुभ योगों में विशेष महत्व दिया गया है। यह योग सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम मुहूर्त होता है।
गुरु पुष्य योग :- गुरुवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से निर्मित होने के कारण इस योग को गुरु पुष्य योग के नाम से सम्बोधित किया गया है। यह योग गृह प्रवेश, ग्रह शांति, शिक्षा सम्बन्धी मामलों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। यह योग अन्य शुभ कार्यों के लिए भी शुभ मुहूर्त के रूप में जाना जाता है।
रवि पुष्य योग :- इस योग का निर्माण तब होता है जब रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह योग शुभ मुहूर्त का निर्माण करता है जिसमें सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस योग को मुहूर्त में गुरु पुष्य योग के समान ही महत्व दिया गया है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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