अब्दुल रशीद।। आमचुनाव के कुछ महीने ही शेष बचे हैं। चनाव से पहले सरकार का आखिरी आम बजट 2018-2019 वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया। जिसमें एक बार फिर बड़े बड़े सपनों को दिखाते हुए घोषणा किया गया है।ये और बात है कि इन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए बजट कहाँ से आएगा इसका जिक्र नहीं। यक्ष प्रश्न यह है की, क्या यह सपना भी 15लाख रुपये के वायदों की तरह जुमला बन जाएगा?
होली और बजट दोनों मज़ाक है।
अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा से होली के अवसर पर जब एक पत्रकार ने पूछा था के होली और बजट में क्या अंतर है,तब उन्होंने जवाब दिया था होली और बजट दोनों मज़ाक है।
तो क्या देश कि जनता को भी यही मान लेना चाहिए,और ज्यादा दिमाग खपाने के बजाय यह देखना चाहिए के क्या सस्ता हुआ क्या महंगा हुआ। जो सस्ता हुआ उसे खरीद लेना चाहिए और जो मंहगा हो गया उसके लिए मन मशोस कर रह जाना चाहिए।
बेरोजगारी
दो करोड़ रोजगार का वायदा तो पूरा हुआ नही। नए 70लाख रोजगार का झुनझुना जरूर बजा दिया गया है। यानी,बेरोजगार युवा पकौड़ा तलिए,झुनझुना बजाइए,खुद भी खाइए औरों को भी खिलाइए। जब उत्साह कम हो जाए तो अंधभक्ति नारे लगाइए और सड़कों पर दौर लगाइए। इससे सेहत भी दुरुस्त रहेगा दिमाग़ भी चुस्त रहेगा।
किसान
रही बात किसानों की तो 2022 तक आए दुगना हो ही जाएगा,इस बात का सरकार ने वायदा कर ही दिया है। बस तब तक खेतों में भूखे प्यासे जी तोड़ मेहनत कीजिए। कुपोषण से होने वाली बीमारियों का चिंता मत कीजिए,सरकार आपके साथ हैं,5लाख तक मुफ़्त इलाज़ की योजना आपके लिए ख़ास है।
उम्मीद की नई रौशनी।
टीवी ग्रस्त विकास के लिए 500रुपये महीनें का इस बजट में विशेष प्रवधान है।जिससे पौष्टिक भोजन खाकर 2022तक विकास सरपट दौड़ सकेगा।