देश के अनेक राज्यों में एक बड़ा संकट बर्ड फ्लू के रूप में कहर बरपा रहा है। जिसके कारण सैकड़ों पक्षियों का मरना या मारा जाना दुखद तो है ही, मानवता पर प्रश्नचिह्न भी है। बेजुबान पक्षियों का बड़ी संख्या में मरना पर्यावरण संतुलन के लिये तो बड़ा खतरा है ही लेकिन इसका असर मानव जीवन पर भी होगा। यह धरती केवल इंसानों के लिये नहीं है, बल्कि वन्य जीवों के लिये भी है, इसलिये पक्षियों का मरना हमारे लिये चिन्ता का बड़ा कारण बनना चाहिए। मौजूदा समय में पशुओं एवं पक्षियों की संख्या का लगातार घटना एक अत्यन्त चिन्ताजनक स्थिति है। बर्ड फ्लू अत्यधिक गंभीर संक्रामक और श्वसन रोग है, जो पक्षियों के साथ-साथ मनुष्यों में फैला, तो बहुत घातक स्वरूप ले सकता है।
इस साल बर्ड फ्लू की ज्यादा चिंता इसलिये भी है क्योंकि कोरोना से तबाह अर्थव्यवस्था, अस्तव्यस्त जीवनशैली एवं रोगों के महाप्रकोप के बाद अब बर्ड फ्लू के झटके झेलने की स्थिति में हम नहीं है। शासन-प्रशासन को वाकई बहुत सतर्क रहना होगा। बर्ड फ्लू अर्थात एवियन इन्फ्लूएंजा के प्रकोप को रोकने के लिए सरकार को जागरूक होना होगा। अधिकारियों को प्रभावित क्षेत्रों के दो-तीन किलोमीटर के दायरे में बत्तखों, मुर्गियों, पक्षियों आदि पर निगाह रखनी पडे़गी। बर्ड फ्लू के नियंत्रण के लिये अभियान चलाना होगा, क्योंकि कोरोना महामारी जहां इंसानों के जीवन के लिये बड़ा खतरा था वही अब बर्ड फ्लू पशुओ एवं पक्षियों के लिये महासंकट है।
इस बार ज्यादा अनिष्ट की आशंका इसलिये भी है कि विदेशी पक्षियों के जरिए ही बर्ड फ्लू का देश में संक्रमण हुआ है। सर्दियों में बड़ी संख्या में विदेशी पक्षी भारत के ताल, तालाबों, नदियों, खेतों एवं सुरभ्य प्राकृतिक स्थलों में समय बिताने आते हैं। कुछ पक्षी तो यहां सर्दियों के समय चार से पांच महीने तक रहते हैं। ऐसे में, यह बहुत जरूरी है कि विदेशी पक्षियों की खास तौर पर निगरानी की जाए। ताल-तालाबों के आसपास नजर रखने के साथ ही साफ-सफाई के काम को मुस्तैदी से अंजाम देना होगा। यह वही मौसम है, जब किसी न किसी राज्य से बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत की खबर आती है, अतः संबंधित महकमों और विशेषज्ञों को सचेत हो जाना चाहिए।
देश में जहां से भी बर्ड फ्लू की सूचना मिले, वहां सावधानी से, संवेदनशीलता से उतने ही पक्षियों को मारना चाहिए, जितना बहुत जरूरी हो। जहां बर्ड फ्लू का संक्रमण नहीं हुआ है, वहां घबराने की जरूरत नहीं, पर सतर्क रहकर पक्षियों और उनकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। जहां कौए हैं, वहां उनके लिए दाना-पानी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि उन्हें अन्य पक्षियों-कीड़ों के शव के पीछे घात न लगाना पडे़। हमें पक्षियों के स्वास्थ्य के प्रति भी सजग होना चाहिए। सरकारों भी पक्षियों के इलाज एवं जीवन-सुरक्षा के पुख्ते प्रबंध करने चाहिए। भारत एक ऐसा देश है, जहां सदियों से मेहमान पक्षी आते रहे हैं, अतः भारत में प्रवासी पक्षियों के स्वास्थ्य के अलावा स्वदेशी पक्षियों की भी चिंता जरूरी है। भारत की संस्कृति में पक्षियों को दाना एवं पानी डालने की व्यवस्था जीवनशैली का अंग रहा है, इन वर्षों में हमारी यह संस्कृति लुुप्त हो रही है, जो बर्ड फ्लू के फेलने का बड़ा कारण है। विशेष रूप से मानव व मानव आबादी को पसंद करने वाले कौओं को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास जरूरी हैं। कौओं की बड़ी संख्या में मौत झकझोर रही है। शहरों में ही नहीं, गांवों में भी उनकी संख्या बहुत घट चुकी है, ऐसे में, उनकी मौत बाकी बचे हुए कौओं को मानव बस्तियों से बहुत दूर कर देगी। कौओं के साथ मानव बस्तियों का रिश्ता पुराना है। वे सदियों से सफाईकर्ता के रूप में हमारे आसपास से नाना प्रकार के जहरीले या अवांछित कीड़े-मकोड़ों को हटाते आए हैं। उनका हमारे पास न होना, हमारी सेहत के लिए भी खतरनाक है। कौओं में भी कुछ प्रजातियां विरल हो चली हैं, बर्ड फ्लू के बहाने ही सही, उनके लिए संवेदना बढे, तो हम मनुष्यों का ही भला होगा।
कौओं की मौत की सूचना राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश से विशेष रूप से आ रही है। विशेषज्ञ जांच में लगे हैं, लेकिन सामान्य रूप से कौओं में बर्ड फ्लू का संक्रमण दूसरे पक्षियों से ही फेला है, ऐसा माना जा रहा है। आमतौर पर कौओं को दूसरे पक्षियों, जंतुओं के शव खाते-उठाते देखा जाता है, इसी वजह से उनमें संक्रमण की गुंजाइश ज्यादा रहती है। देश के कई राज्यों से अचानक बड़ी संख्या में अन्य पक्षियों के मरने की खबरें आ रही हैं। हर साल सर्दियों के मौसम में पशु-पक्षियों की मुसीबत तो बढ़ ही जाती है, लेकिन उनकी लगातार हो रही मौतों से अलग तरह की चिंता पैदा हो रही है। यही कारण है कि संबंधित राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से उचित कदम उठा रही हैं और शासन-प्रशासन को अलर्ट कर दिया गया है।
पक्षी मानवीय लोभ की भेंट तो चढ़ ही रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण भी इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए पक्षियों का शिकार एवं अवैध व्यापार जारी है। पक्षी विभिन्न रसायनों और जहरीले पदार्थों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। ऐसे पदार्थ भोजन या फिर पक्षियों की त्वचा के माध्यम से शरीर में पहुंचकर उनकी मौत का कारण बनते हैं। कभी हमारे घर-आंगन में दिखने वाली गौरैया आजकल दिखाई नहीं देती। भोजन की कमी होने, घोंसलों के लिए उचित जगह न मिलने तथा माइक्रोवेव प्रदूषण जैसे कारण इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। जन्म के शुरुआती पंद्रह दिनों में गौरैया के बच्चों का भोजन कीट-पतंग होते हैं। पर आजकल हमारे बगीचों में विदेशी पौधे ज्यादा उगाते हैं, जो कीट-पतंगों को आकर्षित नहीं कर पाते। गौरैये के अलावा तोते पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दुनिया में तोते की लगभग 330 प्रजातियां ज्ञात हैं। पर अगले सौ वर्षों में इनमें से एक तिहाई प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका है। भारत में और जिन पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा है, वे हैं ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गुलाबी सिर वाली बतख, हिमालयन बटेर, साइबेरियाई सारस, बंगाल फ्लेरिकन, उल्लू आदि। जीवन के अनेकानेक सुख, संतोष एवं रोमांच में से एक यह भी है कि हम कुछ समय पक्षियों के साथ बिताने में लगाते रहे हैं, अब ऐसा क्यों नहीं कर पाते? क्यों हमारी सोच एवं जीवनशैली का प्रकृति-प्रेम विलुप्त हो रहा है? मनुष्य के हाथों से रचे कृत्रिम संसार की परिधि में प्रकृति, पर्यावरण, वन्यजीव-जंगल एवं पक्षियों का कलरव एवं जीवन-ऊर्जा का लगातार खत्म होते जाना जीवन से मृत्यु की ओर बढ़ने का संकेत है।
मनुष्य का लोभ एवं संवेदनहीनता भी त्रासदी की हद तक बढ़ी है, जो वन्यजीवों, पक्षियों, प्रकृति एवं पर्यावरण के असंतुलन एवं विनाश का बड़ा सबब बना है। मनुष्य के कार्य-व्यवहार से ऐसा मालूम होने लगा है, जैसे इस धरती पर जितना अधिकार उसका है, उतना किसी ओर का नहीं- न वृक्षों का, न पशुओं का, न पक्षियों का, न नदियों-पहाड़ों-तालाबों का। दरअसल हमारे यहां बड़े जीवों के संरक्षण पर तो ध्यान दिया जाता है, पर पक्षियों के संरक्षण पर उतना नहीं। वृक्षारोपण, जैविक खेती को बढ़ाकर तथा माइक्रोवेव प्रदूषण पर अंकुश लगाकर पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। अब भी यदि हम जैव विविधता को बचाने का सामूहिक प्रयास न करें, तो बहुत देर हो जाएगी। बर्ड फ्लू के संकट ने हमें चेताया है।
(ललित गर्ग)
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