Skip to content
  • होम
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • जनरल न्यूज
  • दखल
  • गेस्ट राइटर

‘आषाढ़ का एक दिन ‘नाटक साहित्य और सिनेमा का अविस्मरणीय दस्तावेज है

राष्ट्रीय
/
September 22, 2025
कोलकाता। पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने प्रसिद्ध कथाकार, नाटककार और’ सारिका ‘के पूर्व संपादक मोहन राकेश की जन्मशती पर उनके कालजयी नाटक  ‘आषाढ़ का एक दिन:नाटक और सिनेमा’ (निर्देशक मणि कौल)पर संगोष्ठी आयोजित की। रविवार को मुंशी प्रेमचंद लाइब्रेरी कोलकाता में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता नाट्य निर्देशक केशव भट्टड़ ने की।
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के महासचिव अशोक सिंह ने कहा कि स्कूल में पढ़ते समय कमलेश्वर के संपादन में प्रकाशित ‘सारिका’ पत्रिका ने मोहन राकेश से परिचय करा दिया था। ‘आषाढ़ का एक दिन’ हिंदी का पहला नाटक है जो मंचन के साथ सिनेमा और दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ है। ऋत्विक घटक के पूना फिल्म इंस्टीट्यूट में छात्र रहे मणि कौल ने पहले मोहन राकेश की कहानी’ उसकी रोटी’ (1969) और ‘आषाढ का एक दिन ‘(1971)पर  फिल्में बनायीं। मणि कौल की फिल्म देखते समय ऋत्विक घटक की फिल्म ‘मेघे ढाका तारा’ और’ बाड़ी थेके पालिए ‘ की याद आती है। जिसमें घर और स्मृति सबसे महत्वपूर्ण है। ऋत्विक घटक की फिल्मों में घर की तलाश जारी रहती है।नाटक और सिनेमा के तीन अंकों में मल्लिका घर की स्मृति से जुड़ी रहती है। फिल्म देखते समय कोई भी चरित्र खलनायक प्रतीत नहीं होता है। मल्लिका सामंती समाज में एक पितृहीन युवती है,जो अपने प्रेम में सब कुछ न्यौछावर करने के बाद भी कहीं पर भी कमजोर नहीं मालूम होती है। मल्लिका आधुनिक हिंदी साहित्य का सबसे शक्तिशाली चरित्र है जो टालस्टाय के ‘अन्ना कारेनिना’ और गोर्की की ‘माँ ‘की याद दिलाती है। मोहन राकेश की दूरदर्शिता है कि वे काश्मीर के राजनीतिक संकट को चित्रित करते हैं।
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज की संयुक्त सचिव श्रेया जायसवाल ने कहा कि कालिदास के चरित्र पर सोचते हुए मुक्तिबोध का वाक्य “साहित्य के प्रश्न जीवन के प्रश्न होते हैं”की याद आती है। कालिदास का द्वंद्व आज के लेखक का द्वंद्व और पीड़ा है। सत्ता के साथ समझौता करने पर लेखक अपने व्यक्तित्व की स्वतंत्रता खो देता है।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए केशव भट्टड़ ने कहा कि ‘आषाढ़ का एक दिन’ हिंदी का पहला पूर्ण नाटक है जिसमें आधुनिक रंगमंच के सारे तत्व हैं। नाटक में कोई भी चरित्र नकारात्मक नहीं है। नाटक के तीन अंक समय –भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानवीय पात्रों के गठन को अद्भुत बताते हुए भट्टड़ ने कहा कि नाटक और फ़िल्म में ध्वनि भी एक महत्वपूर्ण पात्र की तरह है:_ बादलों का गर्जन,वर्षा की आवाज और घोड़ों की टापों की गूँज। फिल्म देखते समय लगता है नाटक का मंचन हो रहा है। नाटक मल्लिका की बेटी -जिसे अपने संवाद में मल्लिका अपने ‘अभाव की संतान’ कहती है- के रुदन से समाप्त होता है जबकि फिल्म का आरंभ बच्ची के रोने से होता है। फिल्म में पात्रों का प्रवेश और बाहर जाना नाटक की तरह है जो फ़िल्म को कहीं भी बाधित नहीं करता बल्कि फ़िल्म नाटक के मूल भाव को ज्यादा गहराई से उभारती है। उन्होंने मोहन राकेश के लेखन, नाटक और फ़िल्म का विस्तार से विश्लेषण करते हुए कहा कि नाटक के पात्रों के द्वंद समसामयिक हैं। उन्होंने कहा कि मोहन राकेश अपने दौर के महानायक हैं।
श्रीप्रकाश जायसवाल ने संचालन किया।
पिछला आज का राशिफल व पंचांग : 23 सितम्बर, 2025, मंगलवार अगला असूचंड पर सिन्धी युवा संगठन ने किया रक्तदान

Leave a Comment Cancel reply

Recent Posts

  • जीएसटी में सुधार का आमजन को मिले लाभ – जिला कलक्टर
  • अवैध खनन की रोकथाम को लेकर जिला कलक्टर लोक बन्धु ने ली बैठक
  • शहरी सेवा शिविर
  • जर्जर भवन का उपयोग तुरंत बंद करें, सफाई सुधारें, वर्कशॉप को स्थानांतरित करें- देवनानी
  • *श्री अग्रसेन जयन्ती महोत्सव कार्यक्रमों के तहत सांस्कृतिक संध्या सम्पन*

संपादक की पसंद

Loading...
गेस्ट राइटर

गांव, गरीब और किसान की सुुध लेता बजट

February 2, 2018
Loading...
दखल

पिज्जा खाने से रुकी किरपा आ जाती है

December 14, 2024
दखल

पाकिस्तान सम्भले अन्यथा आत्मविस्फोट निश्चित है

February 20, 2023
दखल

श्रद्धा जैसे एक और कांड से रूह कांप गयी

February 16, 2023
दखल

अमृत की राह में बड़ा रोड़ा है भ्रष्टाचार

February 8, 2023
दखल

सामाजिक ताने- बाने को कमजोर करती जातिगत कट्टरता

February 4, 2023

जरूर पढ़े

Loading...
गेस्ट राइटर

गांव, गरीब और किसान की सुुध लेता बजट

February 2, 2018
© 2025 • Built with GeneratePress