
और कुछ के ख्वाब अधूरे होंगे
यही दस्तूर है कुदरत का हमेशा से
किस्सा हरेक का अलग- अलग होता है
जहां में मुक्कमल कुछ नहीं होता है
इस साल भी कुछ के ख्वाब पूरे होंगे
न मालूम कितनों के ख्वाब अधूरे रहेंगे
यही दस्तूर रहा है कुदरत का हमेशा से
कुछ पीयेंगे छक कर कुछ प्यासे रह जाएंगे
भुजा में भरकर
शक्ति अपार
कसकर कमर जो कर्म करेंगे
एक दिन
मनचाहा पा लेंगे
और
जिनके बाजूओं में न दम होगा न मेहनत करने का जज्बा होगा
वो ही इस बार भी
बड़ी-बड़ी हांकेगे
हर बार की तरह इस बार भी पुराने साल को जाते और नए साल को आते हुए
देखते भर रह जाएंगे।
फिर भी …
इस नूतन वर्ष में
थरती का जर्रा जर्रा फले-फूले
हर कोई महके-चहके अलापे राग खुशियों के
यही हार्दिक मंगल कामना करता हूं वर्ष २०२५ के आगमन पर …..
– श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’