हाल ही में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बुधवार (3 मई 2023 को) को वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (आर.एस.एफ.) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है।इस रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2023 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 11 पायदान गिरकर 161वें स्थान पर पहुंच गया, कुल 180 देशों में 161 वां स्थान प्राप्त करना शर्मनाक होने के साथ ही बहुत ही चिंतनीय है। यह बहुत ही गंभीर है कि आज के समय में प्रेस बहुत पीछे छूटती चली जा रही है। यदि प्रेस के अस्तित्व को खतरा हुआ तो निश्चित ही इसके परिणाम भी अच्छे नहीं होंगे, समाज व्यवस्था पर इससे प्रभाव पड़ेगा, लोकतंत्र पर इसका प्रभाव कहीं न कहीं नजर आएगा ही। आज डिजीटल युग है, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का युग आ गया है। डिजीटल व आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के युग में पत्र-पत्रिकाओं के समक्ष बहुत सी चुनौतियां हैं। डिजीटल युग के साथ आमूल चूल परिवर्तन आए हैं, बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन आज बंद हो गया है, सोशल नेटवर्किंग साइट्स का दौर है, प्रिंट मीडिया पर काफी असर इनका(इन डिजीटल प्लेटफॉर्म) पड़ा है। आज अखबारों या यूं कहें कि प्रिंट मीडिया की कीमत बहुत कम रह गई है, वे लगातार अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं, हर तरफ़ दबाव सा नजर आता है। सच तो यह है कि आज के इस युग में प्रेस का भविष्य किसी दोराहे पर ही खड़ा नजर आता है, जहाँ चुनौतियों की संख्या बहुत ही ज्यादा है। लोकतंत्र के तीनों पाये विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका आज मूकदर्शक हैं। आज सरकार के विरुद्ध लिखकर कोई खड़ा नहीं रह सकता है। वास्तव में, पत्रकारिता को समाज का दर्पण कहा जाता है और पत्रकारिता’ समाज का ऐसा दर्पण है जिसमें देश, विदेश सहित समाज या आस -पास घटने वाली समस्त सत्य घटनाओं को देखा जा सकता है। यदि यह दर्पण मैला हो जाए या टूटने लगे तो समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ खतरे में है। हमें यह बात हमेशा जेहन में रखनी चाहिए कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में मानवाधिकारों की सुरक्षा करने में तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचारों को उजागर करने में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका है। हाल फिलहाल, यह जरूर है कि पिछले कुछ सालों में भारत की पत्रकारिता में काफी गिरावट आई है और आज पत्रकारिता का उद्देश्य देश व समाज सेवा न होकर सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना हो गया है। आज पत्रकारिता का उद्देश्य नेम-फेम, पैसा कमाना हो गया है, जो कि पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता है। कुछेक लोगों के स्वार्थों के कारण पत्रकारिता के मूल्य आज लगातार गिरते चले जा रहे हैं। पत्रकारिता में आदर्श मूल्यों का आज अभाव हो गया है। आज की पत्रकारिता स्वार्थों के चलते पहले के जमाने की तरह निष्पक्ष, निडर व सच्ची नहीं रही। ऐसा भी नहीं है कि आज पत्रकार सच्चाई को निडरता व निष्पक्षता से समाज के सामने नहीं लाते हैं। वे आवश्यक रूप से सच्चाई को निडरता व निष्पक्षता से उजागर करते हैं लेकिन कई बार कुछ स्वार्थी लोग, तुच्छ राजनीति पत्रकारिता में दाग लगा देती है जो कि सही नहीं ठहराया जा सकता है। बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि फ्रांस आधारित यह एनजीओ(गैर-सरकारी संस्था) दुनियाभर के देशों में प्रेस की स्वतंत्रता पर हर वर्ष रिपोर्ट प्रकाशित करती है।रिपोर्ट में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति पर चिंता जताई जा रही है। वास्तव में, इस रिपोर्ट पर चिंता जताया जाना जायज इसलिए भी तर्कसंगत नजर आता है है, क्यों कि आरएसएफ ने पिछले साल 180 देशों के एक सर्वेक्षण में भारत को 150वां स्थान दिया था और भारत वर्तमान में ग्यारह पायदान गिरकर पहले से और अधिक नीचे पहुंच गया है। रिपोर्ट में भारत से नीचे मात्र उन्नीस देश ही हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह वाकई घोर चिंता का विषय है, क्यों कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा पाया होता है और इसकी स्थिति अगर अच्छी नहीं है तो यह चिंताजनक ही कहा जा सकता है। वर्तमान में आई आरएसएफ की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘तीन देशों- ताजिकिस्तान (एक स्थान गिरकर 153वें स्थान पर), भारत (11 स्थान गिरकर 161वें स्थान पर) और तुर्किये (16 स्थान गिरकर 165वें स्थान पर) में स्थिति ‘समस्याग्रस्त’ से ‘बहुत खराब’ हो गई है।’’ रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अन्य स्थिति जो सूचना के मुक्त प्रवाह को खतरनाक रूप से प्रतिबंधित करती है, वह नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने वाले कुलीन वर्गों की ओर से मीडिया संस्थानों का अधिग्रहण है।’ वास्तव में, आज सूचनाओं का प्रवाह मुक्त नहीं पाने के पीछे जो कारण हैं वह यह है कि आज कुलीन वर्गों द्वारा विभिन्न मीडिया संस्थानों का अधिग्रहण कर लिया गया है और वे उनके अनुसार ही काम करते हैं। कुल मिलाकर आज मालिक की चलती है और पेड न्यूज़ को स्थान मिलने लगा है। पत्रकारिता के मूल्यों में निरंतर गिरावट आती चली जा रही है और आज सच को कहीं न कहीं दबाया जा रहा है, निष्पक्षता और निडरता का भी जैसे आज की पत्रकारिता में एक अभाव सा हो गया है। भारत ही नहीं अपितु आरएसएफ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत सहित विश्व के कई देशों में प्रेस स्वतंत्रता के सूचकांक खराब हुए हैं, यह वाकई चिंतनीय ही कहा जा सकता है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज विकासशील लोकतंत्रों में असमानता की गहरी खाई मौजूद है, और प्रेस की स्वतंत्रता के समक्ष अनेक प्रकार की चुनौतियां मौजूद हैं। वास्तव में, स्वतंत्र मीडिया जनता की आवाज़ होता है। वह जनता को अपनी आवाज़ को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। दूसरे शब्दों में कहें तो स्वतंत्र मीडिया जनता की आवाज होने के नाते उन्हें अपनी राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त व मजबूत बनाता है। इस तरह लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया की भूमिका बहुत ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण व अहम् हो जाती है। यदि मीडिया स्वतंत्र व निष्पक्ष नहीं होगा तो विभिन्न सूचनाओं, विचारों, डिबेट व दृष्टिकोणों आदि का निर्बाध गति से आदान प्रदान कैसे संभव हो पाएगा ? यदि मीडिया स्वतंत्र है तो लोग गर्वनमेंट के विभिन्न निर्णयों पर प्रश्न करने के अपने अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं। मीडिया विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के साथ ही लोकतंत्र का चौथा पाया है। यह वॉच डॉग है जो लोकतंत्र के अन्य पायों को भी जगाये रखने का काम करता है। कुल मिलाकर स्वतंत्र मीडिया के बारे में यह बात कही जा सकती है कि यह भारत जैसे बड़े लोकतंत्र(समाज) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है। यह बहुत ही गंभीर है कि आज राजनीतिक रसूख वाले लोग मीडिया के प्रति शत्रुता/विद्वेष की भावना को खुले तौर पर प्रोत्साहित करते नजर आते हैं। यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा व गंभीर खतरा कहा जा सकता है। पेड न्यूज,पेड विज्ञापन, फेक न्यूज़ आज देश व समाज के लिए एक बड़ा खतरा है और इससे मीडिया की स्वतंत्रता, निष्पक्षता प्रभावित होती है। आज के समय में पत्रकारों की सुरक्षा भी सबसे अहम् एवं एक बड़ा मुद्दा है, संवेदनशील मुद्दों को कवर करने वाले पत्रकारों पर हमले या उनकी हत्या बहुत आम बात है। विभिन्न व्यावसायिक समूहों और राजनीतिक शक्तियों का आज मीडिया के एक बड़े हिस्से (प्रिंट और विज़ुअल दोनों) पर मज़बूत हस्तक्षेप है, जिससे निहित स्वार्थ में वृद्धि और मीडिया की स्वतंत्रता को क्षति पहुँचती है। यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, परंतु यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित (उपलक्षित रूप में) है, जिसमें कहा गया है – ‘सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।’ हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं है। अनुच्छेद-19(2) के तहत कुछ विशेष मामलों में इस पर प्रतिबंध लागू किये जा सकते हैं। भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के जुड़े मामलों आदि में ये प्रतिबंध लागू किए जा सकते हैं लेकिन बावजूद इसके प्रेस को स्वतंत्र होना ही चाहिए,क्यों कि यह लोकतंत्र के अन्य तीनों पायों का कहीं न कहीं रक्षक है।
भारत हो या कोई भी देश आज के समय में विशेषकर सभी लोकतांत्रिक देशों में मीडिया की स्वतंत्रता बहुत ही जरूरी है। यदि किसी देश में मीडिया सत्तापक्ष के साथ बंधकर चलती है तो इसे ठीक नहीं कहा जा सकता है। मीडिया को सत्तापक्ष से भी खुलकर सवाल करने चाहिए व विभिन्न मुद्दों को खुलकर उठाना चाहिए। यह बहुत ही दुखद है कि आज विभिन्न मीडिया घराने सत्ता मात्र का मीडिया बन चुके हैं। सभी कमाने की चाहत में लगे हैं। विज्ञापन आने चाहिए, सही खबर, सही बात,सही सूचनाओं से किसी का लेना देना आज नहीं रहा। यह बहुत ही दुखद है कि आज के समय में मीडिया इस बात से प्रभावित हो रहा है कि कौनसी सरकार, कौनसा राजनेता, कौनसा रसूखदार उनके हितों को पूरा करते हैं। प्रेस को हमेशा जनता के साथ, सच के साथ खड़ा होना चाहिए। प्रेस का कर्तव्य बनता है कि वह छिपाये जा रहे तथ्यों को जनता के सामने लाए,भले ही वह सत्ता पक्ष,सरकार ही क्यों न हो। जो भी गलत हो,वह आम जनता के सामने हर हाल और परिस्थितियों में आना ही चाहिए। मीडिया की शक्ति हमेशा जनता में ही निहित होती है। मीडिया का उद्देश्य पैसा कमाना या अर्थाजन कभी भी नहीं होना चाहिए, बल्कि मीडिया सामाजिक सरोकारों को तव्वजो देने वाला होना चाहिए। मीडिया सच को बाहर लाने के लिए काम करें, न कि सच को दबाने के लिए। वह सच को सामने लाने के लिए सत्ता के सामने भी डटे,झुके कतई नहीं,निष्पक्षता, निडरता से काम करे। मीडिया हमेशा पत्रकारिता के मूल्यों, आदर्शों, प्रतिमानों के लिए काम करें। अभिव्यक्ति को बाधित करने के लिए सरकारें विज्ञापन रोकतीं हैं तो यह कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार ही तो है। क्या यह नहीं है ? ऐसा क्यों हो कि मीडिया को न्यायालय तक की शरण लेनी पड़े ? अंत में यही कहूंगा कि मीडिया को दायित्यबोध होना चाहिए कि सही क्या है, गलत क्या है, अनैतिक क्या है, नैतिक क्या है, अच्छा क्या है, बुरा क्या है ? संक्षेप में यह बात कही जा सकती है कि दायित्यबोध ही प्रेस की स्वतंत्रता है। कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि एक स्वतंत्र मीडिया एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है जो सरकार के गलत कामों की जांच और रिपोर्ट कर सकता है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब