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प्राकृतिक और वैदिक रंगों से महकाएं इस बार होली !

गेस्ट राइटर
/
February 25, 2023

सुनील कुमार महला
रंगों का त्योहार होली इस बार 8 मार्च बुधवार को मनाया जाएगा। होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। 07 मार्च 2023, मंगलवार को होलिका दहन किया जाएगा। फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का पर्व आता है और होली के त्योहार के आगमन से बहुत पहले से ही चहुंओर खुशियां और उल्लास से संपूर्ण वातावरण सरोबार हो जाता है। कहीं चंग बजते हैं तो कहीं धमाल की धुन गुंजायमान होती है। उल्लास, हंसी-ठिठौली व रंगों का चटकपन होली के त्योहार के दौरान् सहज ही दिखता है। होलिका दहन में किसी पेड़ की एक मोटी शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपलों से ढक दिया जाता है। होलिका दहन के समय सुराख वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां, हरे चने जिन्हें सिंकने के बाद ‘होला’ कहा जाता है, उबटन आदि भी डाले जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है और सारी बुरी बलाएं, नकारात्मक ऊर्जा इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं। होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है। होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं। होलिका दहन के दूसरे दिन रंगों से खेलने का दिन होता है, जिसे धुलंडी भी कहा जाता है। धुलंडी के दिन लोग रंगों, गुलाल-अबीर से खूब होली खेलते हैं लेकिन आजकल बाजार में प्राकृतिक रंगों के स्थान पर सिंथेटिक, रासायनिक पदार्थ मिले रंग आने लगे हैं, जिससे हमारे स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचता है, हमें ऐसे सिंथेटिक व रासायनिक रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए। ये रंग हमारी आंखों, हमारी त्वचा को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। हम अपने घरों में ही प्राकृतिक रंग बना सकते हैं।प्राचीन समय में लोग अपनी रसोई से सामग्री, वनों आदि से फल-फूल,पत्तियाँ इत्यादि का उपयोग करके ही प्राकृतिक और जैविक रंग तैयार करते थे। वो रंग बिल्कुल केमिकल फ्री थे और मजा भी बढ़ा देते थे। होली के त्योहार पर हमें यह चाहिए कि हम सिंथेटिक व रासायनिक रंगों के स्थान पर ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक रंगों को इस्तेमाल में लाएं। नीचे दिए गए तरीकों से हम विभिन्न प्राकृतिक व वैदिक रंगों को अपने घर में बना सकते हैं। घर पर ही रंगों का निर्माण निश्चित ही हमारे मन और आत्मा में एक अलग ही अहसास, खुशी, उमंग, उल्लास व उत्साह की भावनाएं प्रदान करेगा।

प्राकृतिक व वैदिक रंग ऐसे बनाएं-
हरा रंग- हरा रंग बनाने के लिए हम मेंहदी का इस्तेमाल कर सकते हैं। मेंहदी में आटा मिलाकर बहुत अच्छा हरा रंग तैयार हो सकता है। पालक, धनिया या पुदीने के पत्तों के पेस्ट को पानी में मिलाकर हरा रंग तैयार किया जा सकता है। गुलमोहर के पत्तों को अच्छी तरह सुखा कर पीसकर प्राकृतिक हरा गुलाल तैयार किया जा सकता है। यहाँ तक कि गेहूँ की हरी बालियों, चने के हरे पत्तों को अच्छी तरह पीसकर हरा गुलाल तैयार कर सकते हैं।
पीला रंग- हल्दी और बेसन को मिलाकर हम शुद्ध पीला रंग तैयार कर सकते हैं। आमतौर पर इसे बतौर उबटन शादी-ब्याह व अन्य अवसरों पर भी हमारे घरों में हम इस्तेमाल करते हैं। हल्दी के पीले रंग से त्वचा भी निखरती है। यदि हम चाहें तो हल्दी में बेसन के स्थान पर मुल्तानी मिट्टी या टेल्कम पाउडर भी मिला सकते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होता है। गीले रंग के लिए हम एक बड़ा चम्मच हल्दी को दो लीटर पानी में मिलाकर उबाल सकते हैं। इस घोल को थोड़ा गाढ़ा कर लेने पर यह बिल्कुल पक्का रंग हो जाएगा। चाहें तो हम गेंदे या अमलताश के फूलों को भी पानी में उबालकर रात भर छोड़ सकते हैं और सुबह उससे होली खेल सकते हैं।
लाल रंग- सूखे लाल चन्दन को हम लाल गुलाल की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। लाल चन्दन पॉउडर में पानी मिलाकर गीला रंग तैयार किया जा सकता है। वैसे जासवंती के फूलों को सुखाकर और सिंदूरिया के बीजों की सहायता से भी लाल रंग बनाया जा सकता है। कुछ लोग लाल गुलाब के फूलों, बुरांश के फूलों तथा अनार के छिलकों से भी लाल रंग बनाते हैं। चुकंदर से गुलाबी रंग बनाया जा सकता है। वैसे, टमाटर और गाजर के रस को भी पानी में मिला कर लाल रंग तैयार किया जा सकता है।
गुलाबी, केसरिया व नारंगी रंग- कचनार के फूलों को रात भर भिगोकर भी प्राकृतिक गुलाबी और केसरिया रंग तैयार किया जा सकता है। चटकीला गीला नारंगी टेसू (पलाश) के फूलों को रातभर पानी में भिगो कर तैयार किया जा सकता है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण भी टेसू के फूलों से होली खेलते थे। वास्तव में, टेसू के फूलों के रंग को होली का पारम्परिक रंग माना जाता है। हरसिंगार के फूलों को पानी में भिगो कर भी नारंगी रंग बनाया जा सकता है।
नीला रंग- नीले रंग के लिए नील के पौधों पर निकलने वाली फलियों को पीस लें और पानी में उबालकर गीला नीला रंग बना सकते हैं। नीले गुड़हल के फूलों को सुखाकर उन्हें पीसकर भी हम प्राकृतिक नीला रंग तैयार कर सकते हैं।
हमारी प्रकृति, हमारे संपूर्ण वातावरण में हर प्रकार के प्राकृतिक रंग मौजूद होते हैं। जरूरत है तो बस हमें थोड़े से ज्ञान और मेहनत की, क्योंकि प्राकृतिक रंगों को तैयार करने के लिए पहले से ही फूलों, पत्तियों आदि को इकट्ठा करना होता है, उन्हें पीसना-कूटना होता है। याद रखिए कि होली आपसी सौहार्द, भाईचारे का त्योहार है और सिंथेटिक रंग,रासायनिक रंगों का प्रयोग हमारे में आपसी कटुता, वैमनस्य, ईर्ष्या की भावनाएं पैदा कर सकते हैं लेकिन प्राकृतिक रंगों से हमें कोई नुकसान नहीं होता है। ये हमारी त्वचा, हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के बजाय त्‍वचा को अधिक कोमल बनाते हैं। सिंथेटिक और रासायनिक रंगों से जहां हमें विभिन्न प्रकार की एलर्जी हो सकती है या फिर हमारी त्वचा पर जलन और रैशेज पड़ सकते हैं वहीं प्राकृतिक कलर्स से इस तरह का कोई नुकसान नहीं होता है।होली खेलते वक्त इस हमें इस बात का ख्याल जरूर रखना चाहिए कि हम ऐसे रंगों का प्रयोग बिल्कुल भी न करें, जिनसे हमारी सेहत को नुकसान पहुंचता हो। इसके साथ ही हमें ये भी देखने की जरूरत है कि हम खुद होली के त्यौहार पर कैसे रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्राकृतिक रंगों या नेचुरल कलर्स के साथ होली खेलने का अपना अलग ही मजा होता है। यह बहुत गलत है कि आज लोग बाजार से जिस काले रंग का प्रयोग करते हैं, उसमें लेड ऑक्साइड का इस्तेमाल होता है जो कि किडनी के लिए बहुत नुकसानदायक साबित होता है।वहीं हरा रंग भी कॉपर सल्फेट जैसे पदार्थों से बनता है जो कि आंखों के लिए अच्छा नहीं है। इससे आंखों में एलर्जी, सूजन इत्यादि होने का खतरा रहता है। इसी प्रकार से लाल रंग को मरक्यूरी सल्फाइट से बनाया जाता है जिससे त्वचा कैंसर होने का खतरा रहता है। आज सिंथेटिक व रासायनिक कलर्स बहुत सस्ते मिलते हैं, इसलिए अधिकतर लोग इन्हीं रंगों का प्रयोग करते हैं, जबकि प्राकृतिक रंग महंगे जरूर हैं लेकिन इनके फायदे हैं। रासायनिक कलर्स के प्रयोग से जहाँ बालों के गिरने की समस्या हो जाती है वहीं डैंड्रफ की समस्या भी जन्म लेती है जबकि हर्बल और जैविक रंगों से बालों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। वैसे भी प्राकृतिक रंग औषधीय पौधों से बनाये जाते हैं। प्राकृतिक रंग गैर-विषैले और गैर-खतरनाक होते हैं। हल्दी, पलाश, गेंदा,आंवला,हीना, चंदन, फलों-फूलों से बने प्राकृतिक रंगो से होली खेलने पर हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में जहां एक ओर बढ़ोतरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर इससे ग्रीष्म ताप सहन शक्ति व सप्तधातुओं के संतुलन में भी अभूतपूर्व वृद्धि होती है। वास्तव में होली मनाने का असली सार वैदिक और प्राकृतिक रंगों में ही समाया हुआ है। वैसे भी होली सादगी का ही त्योहार है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार है। होली का त्यौहार हमें हिल-मिलकर सादगीपूर्ण जीवन जीने का संदेश देता है। इसमें जो रंग उड़ते दिखाई देते हैं वे प्यार के रंग हैं, तकरार और वैमनस्यता के नहीं। होली दुश्मन को भी दोस्त बनाने वाला त्यौहार है। हम होली के वास्तविक स्वरूप को समझेंगे तभी स्वाभाविक रूप से हमें होली का संदेश भी समझ में आएगा। इसलिए आइए इस होली हम वैदिक और प्राकृतिक रंगों से होली खेलें और इस त्योहार की गरिमा,सौहार्द, आपसी मेल-मिलाप व भाईचारे की भावनाओं को हमेशा हमेशा के लिए बनाये रखें।

सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब
मोबाइल 09828108858

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