विदिशा । आइएपी द्वारा होटल रिवर साइड इन में आयोजित संगोष्ठी में भोपाल के ख्यातिनाम रोशन हॉस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश सुखेजा ने बताया कि यह एक गंभीर और प्रगतिशील मांसपेशियों की बीमारी है और मुख्य रूप से लड़को में ही पाई जाती है ।
विदिशा आईएपी के अध्यक्ष डॉ एम के जैन ने बताया कि यह एक अनुवांशिक विकार है जो “एक्स “गुण सूत्र में विकृति के कारण होता है और माँ इस बीमारी की वाहक होती है और बीमारी सिर्फ लड़को में ही पाई जाती है । यह मांसपेशियों की कमजोरी की बीमारी है जो पैरों और कूल्हों में की मांसपेशी से प्रारंभ होती और बाद में बढ़ती जाती है इसमें बच्चों को चलने -फिरने , खेलने और दौड़ने , सीढ़ियाँ चढ़ने में कठिनाई होती है , बच्चे पंजों के बल चलते है , और अक्सर गिर जाते हैं।उम्र और समय के साथ मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं और उनका आकार घटता जाता है।बाद में श्वसन और हृदय की मांसपेशियों में भी समस्याये उत्पन्न हो जाती है, और जीवन जीना कठिन हो जाता है ।
प्रदेश की पूर्व अध्यक्ष एवं मेडिकल कॉलेज की शिशु रोग विभाग प्रमुख डॉ नीति अग्रवाल ने बताया कि यह बीमारी एक एक्स-लिंक्ड रिसेसिव अनुवांशिक विकार है। जिसका अर्थ है कि यह एक्स गुणसूत्र पर स्थित डिस्ट्रोफिन जीन में उत्परिवर्तन के कारण बीमारी होती है ।वास्तव में इसका कोई पक्का इलाज नहीं लक्षणों के आधार पर उपचार किया जाता है मुख्य रूप से फिजियो थेरेपी , तथा कॉर्टिकोस्टेरॉयड की कम मात्रा तथा मैकेनिकल वेंटिलेशन से पीड़ित मरीजों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास किए जाते हैं ।
आईएपी के शाखा सचिव डॉ सुरेंद्र सोनकर ने बताया कि ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की इस वर्ष की थीम “इस बीमारी के लिए आवाज बुलंद करते हुए जागरूकता बढ़ाना , और आवश्यक कार्यवाही करना “तथा इसके बारे में जल्दी जाने और एकजुट रहते हुए देखभाल करे के नारे के साथ आगे बढ़ना है । वरिष्ठ आईएपी सदस्य डॉ आकाश जैन ने बताया कि मांसपेशियों की कमजोरी के लक्षण दिखने पर रक्त परीक्षण , मांसपेशी की बायोप्सी और आनुवंशिक परीक्षण किया जाना चाहिए ।
वरिष्ठ आईएपी सदस्य डॉ सुमत जैन ने बताया कि ड्यूशेन मस्कुलर बीमारी में जीवन की अधिकतम प्रत्याशा 18-20 वर्ष ही होती है लेकिन मरीज के जीवन को सुगम बनाने के लिए फिजियोथेरेपी और व्यायाम से मांसपेशियों की ताकत और गतिशीलता बनाए रखना और कुछ दवाएं जैसे कि स्टेरॉयड मांसपेशियों की ताकत को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं। शिशु विभाग मेडिकल कॉलेज के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर जितेंद्र सिंह के द्वारा ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का एक केस भी प्रस्तुत किया ।
संगोष्ठी में वरिष्ठ सदस्य डॉ प्रियशा त्रिपाठी ने बताया कि समय पर निदान और उचित प्रबंधन से रोग की प्रगति को धीमा किया जा सकता है और मरीजों को बेहतर जीवन जीने में मदद मिल सकती है।वरिष्ठ सदस्य डॉ प्रमोद मिश्रा ने सफल संगोष्ठी का संचालन करते हुए सभी का आभार व्यक्त किया।