जयपुर। नवरात्रि का आगमन हर वर्ष हमें स्मरण कराता है कि सृष्टि का आधार केवल पुरुषार्थ नहीं, अपितु स्त्री-शक्ति भी है। नौ रातों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना हमें यह सिखाती है कि जीवन के हर अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना संभव है, यदि भीतर जाग्रत शक्ति का संधान किया जाए।
यह पर्व केवल उपवास, व्रत और आराधना का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी अवसर है। शास्त्र कहते हैं-‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।’
यदि नारी का सम्मान है, तो वही स्थान देवभूमि है। किंतु आज जब समाज में आए दिन स्त्रियों पर अत्याचार की घटनाएँ हमें विचलित करती हैं, तब नवरात्रि का संदेश और भी गहन हो जाता है।
शमशान की निस्तब्धता हमें याद दिलाती है कि जीवन अस्थायी है। न धन साथ जाता है, न अहंकार, न ही सत्ता साथ जाता है तो केवल कर्म और संस्कार। इस दृष्टि से नवरात्रि हमें आत्मा की शक्ति पहचानने और भीतर के ‘महिषासुर’ अहंकार, क्रोध, लोभ और अन्याय का संहार करने का अवसर देती है।
मंदिरों में घंटियाँ बजाना तभी सार्थक है जब घर-परिवार में बेटियाँ सुरक्षित हों, कार्यस्थलों पर स्त्रियाँ सम्मान पाएँ और समाज नारी को देवी नहीं, बल्कि इंसान मानकर उसका आदर करे। यही नवरात्रि की सच्ची साधना है।
आज आवश्यकता है कि हम देवी की प्रतिमा के सामने दीपक जलाने के साथ-साथ अपने भीतर भी एक दीप प्रज्वलित करें-
•जो अज्ञान को दूर करे,
•जो विवेक को जाग्रत करे, • और जो हमें स्मरण कराए कि शक्ति केवल पूजने की नहीं, अपनाने की वस्तु है।
•नवरात्रि केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि भीतर सोई शक्ति को जगाने और नारी-सम्मान का संकल्प लेने का अवसर है।
रेनू शब्दमुखर
2 thoughts on “नवरात्रि : शक्ति, साधना और आत्ममंथन”
आभार संपादकीय टीम 🙏
रेनू शब्द मुखर
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