
समाचार है कि अब पुणे शहर में सार्वजनिक जगहों पर थूकने वालों पर महानगर पालिका 150 रू. की बजाय 500 रू. जुर्माना करेगी. इसके पहले खबर थी कि दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन पर सरकारी विज्ञापन लगा हुआ है जिस पर हिन्दी में लिखा है कि यहां थूकनेवाले पर 500 रू. जुर्माना लगेगा वही इसके पास ही इंगलिश में लिखा है “Rs 250.0 fine for spitting” यानि थूकनेवाले पर 250 रू.फाईन किया जायगा. आप देख रहे है कि हिन्दी में थूकने पर 500 रू और इंगलिश में 250 रू. ऐसा भेदभाव यह इंगलिश वाले करते है लेकिन हिन्दीभाषी तो ऐसा नही करते. वह लोग पिक्चरहॉल में जब भी इंगलिश पिक्चर देखने जाते है तो समझ में आए चाहे न आए, सबके साथ हंसते है, सबके साथ तालियां बजाते है. हां डा. राम मनोहर लोहिया की बात और थी. उनका हिन्दी में ही लिखने, पढने और बोलने का विशेष आग्रह रहता था.
सवाल यह है कि हिन्दी-अंग्रेजी में दंड देने का भेदभाव क्यों किया गया है ? आप अन्य स्थानों पर अपनों अपनों को रेवडियां बांट रहे है लेकिन अब आपने दंड देने में भी भाषायी भेदभाव शुरू कर दिया है. ऐसा तो प्राय: इंगलिश मीडियम स्कूलों में देखा जाता है जहां बच्चों को इंगलिश की बजाय हिन्दी में बोलने पर “पनिश” किया जाता है. अरे भाई ! यहां तो ऐसा मत करो.
इस खबर को देखकर कुछ ऊर्दू और पंजाबीभाषी लोगों को अलग ही ईर्षा होरही है कि हमारी भाषा में सूचना क्यों नही है क्योंकि दिल्ली के लुटियन्स जोन में तो सडकों तक के नाम चारों भाषाओं में है. इन लोगों का यह भी कहना है कि अगर किसी दूसरी भाषायी ने कही थूक दिया तो उससे कितना जुर्माना लिया जायेगा, यह स्पष्ट नही है.
इसके विपरीत कुछ लोगों का यह मानना है कि वह कही भी थूक सकते है, कही भी कूडा-कचरा फेंक सकते है गंदगी फैला सकते है क्योंकि हमारा देश आजाद है. जहां कुछ अन्य लोग उन पर थूकना चाहते है जो देश का साम्प्रदायिक भाईचारा बिगाडना चाहते है.