हास्य-व्यंग्य

जिस रोज कुछ अखबारों में यह खबर निकली कि दिल्ली के एक उपनगर की एक दुकान पर एक बोर्ड टंगा है जिस पर लिखा है ‘यहां पर खोया भी मिलता है’
उसी रोज सुबह सुबह ही कई लोगों को हडबडी में उसी मार्केट की तरफ भागते देखा गया. पहले तो लोगों के कुछ समझ ही नही आया कि माजरा क्या है, लोग क्यों उधर भागे जा रहे है ? क्या कुछ मुफ्त में मिल रहा है ? इसी बीच वहां भागते देख एक सज्जन से किसी ने पूछा भी कि क्या बात है, आप कहां भागे जा रहे है ? तो वह बोला कि क्या आपको नही पता कि सामनेवालें मार्केट में जो किरयाने की दुकान है वहां एक बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा है ‘यहां पर खोया भी मिलता है’ मैं वही जा रहा हूं ताकि मेरा खोया हुआ बच्चा मिल जाय. इसके लिए मैंने पुलीस कोतवाली दरिया गंज दिल्ली में रिपोर्ट भी लिखवाई थी और अखबारों में ‘खोया-पाया’ के अंतर्गत विज्ञापन भी दिया था परन्तु अभी तक कुछ भी नही हुआ. आज जैसे ही किसीने मुझे बताया मैं चल पडा. शायद खोया बच्चा वही मिल जाय.
कुछ और लोग भी उधर ही जा रहे थे जिन्होंने पूछने पर बताया कि वह वर-वधु दोनों पक्ष के लोग हैं. उन्होंने जबसे एक समाचारपत्र में ‘दूल्हा वही जो होश में आएं’ का विज्ञापन देखा है वह लोग चितिंत है. उनका कहना था कि दूल्हा ही होश खो देगा तो बाकी बारात का क्या होगा ? इसलिए वह खोये हुए होश को पाने की आशा में उस दुकान की तरफ जारहे हैं. जिस भाव मिलेगा ले लेंगे.
इधर चीजों के खोने की घटनाओं में भी अचानक काफी वृद्धि हुई हैं. जबसे बाजार से असली घी-दूध गायब हुआ था जो आज तक नही मिला. अब तो पुलीस उस पर F R तक लगा चुकी हैं. राष्ट्रीय खेल हाकी का वैभव खो गया है. क्रिकेट ने उसे कही पीछे कर दिया है. धीरे धीरे राष्ट्रीय पशु (बाघ) खोते जा रहे हैं. देश का अतीत, प्रेम और भाईचारा कही खोगया हैं. इतना ही नही जब एक फिल्म में प्रेमी ने यह गाकर बताया ‘खोया खोया चांद, सूना आसमान, आंखों में सारी रात जायेगी, हमको भी कैसे नींद आयेगी’ तो सबको गहरी चिंता हुई कि जब चांद ही कही खोगया है तो अब क्या होगा ?
एक बार वैस्टइंडीज के तेज गेंदबाज स्व: सोनी रामादीन अपने पुरखों के देश(भारत) आए थे. वह बिहार भी गए. उन्होंने बताया कि ‘मेरा गांव कही खो गया है’, बहुत ढूंढने पर भी नही मिला’. बात करने पर पता लगा कि वर्षों पूर्व उनके पूर्वज पूर्वी उत्तर प्रदेश या बिहार के किसी गांव से वैस्टइंडीज चले गए थे. अगले बार जब उनके कोई साथी भारत आयेंगे तो उन्हें उस दुकान का पता दे देंगे जहां खोया मिलता है. क्या पता उनके गांव का पता भी वही मिल जाय.
खोई हुई चीजों को लोग अन्य तरीकों से भी ढूंढते रहते हैं. एक बार सांयकालीन सैर में मुझे काफी देर होगई. लौटते में अंधेरा छा गया था और स्ट्रीट लाइटें जल चुकी थी. रास्तें में एक व्यक्ति बैचेनी से लाईट के नीचे कुछ ढूंढ रहा था. मैंने उससे पूछा कि भाई साहब क्या ढूंढ रहे है ? तो वह बोला मेरा सौ रू. का नोट खो गया है वही ढूंढ रहा हूं. मैंने उससे पूछा कि कहां खोया था तो वह बोला कि सामने पार्क की बैंच पर खोया था. मैंने उससे कहा कि नोट वहां खोया और आप ढूंढ यहां रहे हो तो वह बोला जहां खोया था वहां तो अंधेरा है इसलिए यहां रोशनी में ढूंढ रहा हूं. देखा आपने ?
खोया को लेकर संत कबीर को भी काफी अफसोस हुआ होगा तभी तो वह कहते है ‘रंगी को नारंगी कहे, बने दूध को खोया, चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोया’. देखते है उस दुकान पर क्या क्या मिलता है ?