हास्य-व्यंग्य
एक बार एक भैंस गांव के तालाब में खडी अपनी सहेलियों को दुखभरी दास्तान सुना रही थी. कह रही थी, बहना ! वैसे तो शैशवास्था से बाल्यवस्था तक आते-आते अधिकांश लोग अपने बच्चों को गाय की बजाय मेरा दूध पिलाने लगते हैं और खुद भी दूध-दही आदि के लिए मेरे दूध को ही पसंद करते हैं. लेकिन जब स्कूल में विद्यार्थियों से निबंध लिखवाने का मौका आता है तो गाय पर ही लिखवाते हैं. हर कोई गाय को मां का दर्जा देता हैं. मुझें कभी बडी मां यानि ताई भी नही कहते और तो और बिल्ली को तो मौसी कह लेंगे पर मुझें आज तक कोई इज्जत नही बख्शी. यह कहां का न्याय हैं ?
इतना ही नही अगर कोई पढ-लिख नही पाता तो उसकी तुलना भी मेरे से ही करते हुए कहते है काला अक्षर भैंस बराबर. मैं पूछती हूं क्या बाकी सब पशु, Computer Science में Post Graduate हैं ? अगर उन्होंने भी B.A से पहले M.A करली होतो और बात हैं, ऐसे में उनकी भी Degree, Check होनी चाहिए.
यदि कोई गलती करता है तो अकसर लोग कहेंगे गई भैंस पानी में. मैं पूछती हूं कि क्या बाकी पशु किसी Cold Drink में जाते हैं ? सिर्फ मेरे साथ ही इतना भेदभाव क्यों ? मैंने आदमी का ऐसा क्या बिगाडा हैं ?
आपको और क्या क्या बताऊं ? कोई किसी की ना सुने तो कह देंगे भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा ? देखा आपने ? यह भी कोई बात हुई. घरों में पति अपनी 2 पत्नियों के और जनता सरकार के आगे बोलकर तो देखें, वह कितना सुनती हैं ?

अक्ल बडी या भैस ? विषय को लेकर, कई स्कूल-कॉलेजों में हुई वादविवाद प्रतियोगिताओं में तय हो चुका है कि अक्ल बडी नही हैं. आदमी के भेजें में कितनीक तो जगह है ? कहां रखेगा अक्ल को ? इधर अपना डील-डौल कोई देखें, बिना नापे ही कह देगा. भैंस ही बडी हैं.
एक स्वयंसिध्द किस्से में, एक बार अकबर ने, एक पुर्जें पर एक लाईन खैंच कर बीरबल से कहा कि बिना कुछ करे ही छोटा करो तो बीरबल ने उसके पास ही उस लाईन से बडी लाईन खैंचकर अकबर से कहा कि जंहापनाह लो, बिना कुछ करे, बिना नापें आपकी लाईन छोटी होगई. कई बार बिना कहे, बिना छूएं भी छोटा-बडा होजाता हैं. सब मौकें की बात हैं.
कई नेता, अफसर आदि देश का बहुतसा रू.-पैसा खाकर न जाने कब से जुगाली कर रहे हैं और बदनाम मुझें करते है कहते है भैंस खडी पगुराय. आपने फिल्म गोपी में दिलीप कुमार को यह गाना गाते हुए सुना होगा …..जिसके हाथ में होगी लाठी, भैंस वही ले जायेगा. एजी ! रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आयेगा …..हर कोई मानता है कि भैंस तो लाठीवाले की ही है. इसीलिए रहीम भी लाठी का संग करने के लिए कहते है, रहिमन लाठी राखिये…..इन बातों से भी सिध्द होता है कि भैंस का महत्व अधिक हैं.
उधर आम किसान भी मुझें परिवार का ही हिस्सा मानता है तभी तो अपनी न्यूनतम आवश्यकता (Minimum Need Programme) में मुझें शामिल करते हुए कहता है –
“नई मूंजरी खाट कै नच्चू टापरी, भैसडल्यां दो-चार कै दूजै बापडी.
नाडा खेत नजीक जठै हल खोलना, इतरा दे करतार फेर नही बोलना.
किसान की घरआली को भी इस MNP में संतोष है, वह कहती है
उठै ही पीर उठै ही सासरो, आथूणै (पश्चिम) हो खेत, चुए नही आसरो.
बाजर-हल्दा बांट दही में ओलणा, इतरा दे करतार फेर नही बोलना.”
एक हरियाणवी एक काव्यगोष्ठी में, किसी संदर्भ में, मेरे लडके के लिए कहता पाया गया “कटरा वाज गोइंग डोली डोली” यानि भैंस का लडका दीवार के सहारे सहारे जा रहा था यानि मेरे सपूत को भी इज्जत बख्श रहा है.
हालांकि मेरे उनकी (पति की) यमराज जी का वाहन होने की वजह से इज्जत होनी चाहिए लेकिन ऐसा कुछ नही है उल्टे एक बार जब यम देवता यमलोक से मृत्युलोक आरहे थे तो कस्टम वालों ने सीमा पर यम देवता से कहा कि आपके वाहन के पीछे सिर्फ टेल-टेल है, लाईट नही है, जबकि पूरी टेललाईट (Tail Light) होनी चाहिए. आपका चालान कटेगा. देखा आपने ?
कुछ वर्षों पूर्व तक शहर के निवासियों का मैला या तो जाति विशेष के लोग सिर पर ढोते थे या जिस गाडी में ढोते थे उसका वाहन हमारे परिवार का ही सदस्य होता था जिसे वह मैलागाडी कहते थे और हीन दृष्टि से देखते थे.
मैं तो रात-दिन यह सब देख देखकर दुखी हो रही हूं. समझ नही आता अपना दुखडा किसे कहूं, किसे ना कहूं ?