जीवन में सफल होना सभी चाहते है और अवसर मिलने पर अपना पूर्ण देने का प्रयास भी करते है,देना भी चाहिए लेकिन साथ ही असफल होने पर हम उन परिस्थितियों से कैसे बाहर आना जानते है यह भी महत्व रखता है। एक संस्मरण में किसी ने विदेश में प्रतिष्ठित एक कंपनी के सीईओ से पूछा कि आप इतने लोगों को भारी भरकम तनख्वाह देकर नियुक्त करते हो तो उस समय उनसे क्या पूछते हो? प्रश्र विस्मयकारी था। सीईओं का जबाब ही यहा मेरा लिखने का तात्पर्य है। सीईओं ने कहा हम उनसे उनकी उपलब्ध्यिों के बारे में कुछ नहीं पूछते क्योंकि हर व्यक्ति अपने तरीके से ऊचाईयॉ हासिल करने का प्रयास करता है और नित नए प्रयोग भी करता है लेकिन हम उनसे केवल यह पूछते है कि असफल होने पर उनसे बाहर निकलने के उनके पास उपाय क्या है और ठीक उसी समय उनके जबाब में यह जानने का प्रयास करते है कि उनका जबाब कितने आत्मविश्चास से भरा है। यही उनकी असली परीक्षा का समय होता है। कहीं वे असफलताओं पर केवल लंबी चौड़ी साम्रगी का बखान तो नहीं कर रहे है। कहने का तात्पर्य यह है आगे बढऩे के लिए सफलता के साथ साथ असफलता से बाहर आने का तरीका व स्थित व्यवहार बनाए रखना भी आना चाहिए। ठीक यही हमें हमारी व्यवहारिक जीवन में भी अपनाना चाहिए। बुरा वक्त हो, दु:ख दर्द आ खड़ा हुआ हो,व्यापार में निराशा मिल रही हो,रिश्ते नाते अलग हो रहे हो तो ऐसी विषम स्थितियों में हम अपना व्यवहार कितना शांत रख पाते है और उनका हल कैसे निकालते है यह महत्वपूर्ण है। व्यापार, पेशे, सामाजिक प्रतिष्ठा में हमने भले की सारे मुकाम हासिल कर लिए हो लेकिन स्थितियों के बदलाव को हम कैसे स्वीकार करते है यही हमारे व्यक्तित्व की पहचान होता है और दूसरो के स्मरण में बने रहने का यही एक मात्र उपाय है।
DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
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