जितेंद्र बालोत*
*रविवार की रात अजमेर जिले के नसीराबाद कस्बे में एक सनसनीखेज घटना ने पूरे पत्रकार समाज को हिला कर रख दिया। सिटी थाना क्षेत्र अंतर्गत नृसिंह मंदिर स्थित कोटा रोड पर स्थानीय पत्रकार पियूष जिंदल पर कार सवार अज्ञात बदमाशों ने अचानक हमला कर दिया। घटना के वक्त जिंदल अपनी कार से लौट रहे थे, तभी हमलावरों ने उनकी गाड़ी पर डंडों से हमला बोल दिया। यह हमला न केवल एक पत्रकार पर बल्कि सीधे-सीधे लोकतंत्र की उस चौथी शक्ति पर है, जिसकी ज़िम्मेदारी है सत्ता और समाज के सच को उजागर करना।*
*पत्रकार पियूष जिंदल ने साहस दिखाते हुए हमले की सूचना तुरंत सिटी थाने में दी और लिखित शिकायत दर्ज कराई। फिलहाल पुलिस ने अज्ञात हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। मगर यह सवाल बड़ा और गूंजता हुआ है कि आखिर पत्रकार की सुरक्षा का क्या?*
*पत्रकारिता पर बढ़ते हमले – खतरनाक संकेत*
*यह घटना कोई साधारण वारदात नहीं है। यह लोकतंत्र में बढ़ते असहिष्णु माहौल की ओर इशारा करती है। पत्रकार, जो आम नागरिकों की आवाज़ बनकर अन्याय और अपराध को उजागर करते हैं, आज खुद अपराधियों के निशाने पर हैं। जब पत्रकार पर हमला होता है, तो असल में पूरे समाज की आवाज़ दबाने की कोशिश होती है।*
*नसीराबाद में हुई यह घटना हमें झकझोरती है। क्या अब सच लिखना और सच दिखाना खतरे से खाली नहीं रहा? जब कलम और कैमरा बदमाशों की धमकियों के आगे कांपने लगेंगे, तब समाज किस ओर जाएगा? यह सवाल हर उस व्यक्ति के सामने है जो लोकतंत्र में विश्वास करता है।*
*पुलिस की भूमिका और जिम्मेदारी*
*घटना के बाद पुलिस हरकत में जरूर आई है, मगर यह भी सच है कि अक्सर ऐसे मामलों में जांच लंबी खिंच जाती है और नतीजा सिफर रहता है। पत्रकारों पर हमले के मामलों में अपराधी अक्सर बच निकलते हैं। ऐसे में जरूरी है कि नसीराबाद पुलिस इस घटना को गंभीरता से ले और जल्द से जल्द आरोपियों को गिरफ्तार कर पत्रकार और समाज को न्याय दिलाए।*
*समाज और पत्रकार एकजुट हों*
*आज जरूरत है कि समाज और पत्रकार दोनों इस हमले के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें। यह केवल पियूष जिंदल पर हमला नहीं, बल्कि हर उस पत्रकार पर हमला है जो सच को सामने लाने की हिम्मत करता है। जब तक समाज पत्रकारों के साथ खड़ा नहीं होगा, तब तक अपराधियों के हौसले बुलंद रहेंगे।*
*पत्रकार संगठनों को चाहिए कि वे एकजुट होकर इस घटना की निंदा करें और सरकार से मांग करें कि पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाए। बिना सुरक्षा के पत्रकारिता करना अब आत्महत्या जैसा बन चुका है।*
*लोकतंत्र का आईना और उसका टूटना*
*पत्रकार समाज का आईना होते हैं। जब आईना तोड़ा जाता है, तो असल में सच्चाई छिपाने की कोशिश होती है। मगर यह याद रखना होगा कि सच कभी दबाया नहीं जा सकता। जितना दबाने की कोशिश होगी, उतना ही उभर कर सामने आएगा।*
*आज के हालात में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में है। अगर पत्रकार पर हमला करना अपराधियों के लिए आसान हो गया है, तो यह हम सबके लिए खतरे की घंटी है।*
*आखिर में*
*नसीराबाद की यह घटना केवल स्थानीय मसला नहीं है, यह पूरे देश के लिए चेतावनी है। पत्रकार पियूष जिंदल पर हमला उस सोच का परिणाम है जो सच्चाई को सहन नहीं कर पाती। इस सोच को तोड़ना होगा, इसके खिलाफ आवाज़ उठानी होगी।*
*हम सबको मिलकर कहना होगा—*
*“हमले से डरकर कलम रुकने वाली नहीं। सच की आवाज़ को कोई दबा नहीं सकता।”*
यह ब्लॉग पत्रकारिता पर हुए हमले का विरोध ही नहीं, बल्कि समाज से जागरूकता की अपील भी है।*