श्री वर्द्धमान शिक्षण समिति द्वारा संचालित वर्द्धमान इंटरनेशनल स्कूल ‘वर्द्धमान रूट्स’ में अभिभावकों से चर्चा रखी गई जिसमें विद्यालय की प्राचार्या श्वेता नाहर ने अभिभावकों से चर्चा की। यह विषय हम सबकी ज़िंदगी से जुड़ा है क्योंकि यह हमारे नन्हे–मुन्ने बच्चों के भविष्य को सँवारने वाला है।
कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले यह बताया गया कि बच्चों को गलत शब्द का प्रयोग करने से रोकना बहुत ज़रूरी है। छोटे बच्चे बहुत जल्दी हर बात पकड़ लेते हैं। अगर वे घर या बाहर कहीं भी गलत शब्द सुनेंगे, तो उसे तुरंत दोहराएंगे। इसलिए यह हम माता-पिता की जिम्मेदारी है कि हम बच्चों के सामने केवल शुद्ध, सकारात्मक और अच्छे शब्दों का प्रयोग करें।
दूसरी बात,आजकल मोबाइल का अत्यधिक उपयोग बच्चों के जीवन में सबसे बड़ी समस्या बन गया है। साथ ही ये समझाया कि बच्चों को कम से कम मोबाइल देना चाहिए, और कोशिश हो तो बिल्कुल भी न दें। खेल, कहानियाँ, चित्रकला और बातचीत—ये सब बच्चों की वास्तविक शिक्षा के साधन हैं, न कि मोबाइल स्क्रीन।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात—बच्चों की हर ज़िद पूरी करना सही नहीं है। यदि हर मांग तुरंत पूरी कर दी जाए, तो बच्चों में धैर्य, संतोष और कृतज्ञता जैसी अच्छी आदतें विकसित नहीं हो पातीं। कभी–कभी बच्चों को ‘ना’ कहना भी उनके व्यक्तित्व निर्माण के लिए ज़रूरी है। अभिभावकों को यह समझाया कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें घर और विद्यालय दोनों की समान भूमिका होती है। इस बात पर जोर दिया गया कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा उनकी नींव होती है, और यदि यह नींव मजबूत होगी, तो बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेंगे।
यह भी बताया गया कि बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए हम सबको मिलकर काम करना होगा—चाहे वह नैतिक मूल्यों का संचार हो, अनुशासन का पालन हो या फिर बच्चों के भीतर रचनात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना हो।
साथ ही बच्चों को एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय “हेल्दी-फूड” के बारे में समझाया।
स्वस्थ शरीर ही सफलता और खुशहाल जीवन की नींव है। यदि हमारा भोजन पौष्टिक होगा तो हमारा मन, मस्तिष्क और शरीर—तीनों स्वस्थ रहेंगे। उन्होंने बच्चों को समझाया कि हमें रोज़ाना अपने भोजन में हरी सब्ज़ियाँ, फल, दूध, दाल और अनाज अवश्य शामिल करना चाहिए। ये हमारे शरीर को ऊर्जा, शक्ति और रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं।
साथ ही यह भी समझाया कि जंक फूड जैसे चिप्स, कोल्ड-ड्रिंक और तैलीय भोजन स्वाद में भले ही अच्छे लगते हों, लेकिन ये हमारे शरीर के लिए हानिकारक हैं। ऐसे भोजन से बीमारियाँ जल्दी घेर लेती हैं और पढ़ाई तथा खेल-कूद पर भी असर पड़ता है।
बच्चों को यह प्रेरणा दी गई कि वे हर दिन ताज़ा और संतुलित भोजन करें, पानी पर्याप्त मात्रा में पिएँ और समय पर भोजन करने की आदत डालें।
साथ ही संदेश दिया कि ‘यदि आज से ही हम सही खानपान अपनाएँगे, तो कल हमारा जीवन स्वस्थ और सफल होगा।
इस सार्थक चर्चा ने न केवल अभिभावकों को मार्गदर्शन दिया, बल्कि सभी को यह विश्वास भी दिलाया कि जब स्कूल और अभिभावक एक साथ चलेंगे, तभी हमारे नन्हें-मुन्नों का भविष्य सुनहरा होगा।
हर माता–पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार और शिष्टाचार सिखाएँ। ‘धन्यवाद’, ‘कृपया’, ‘सॉरी’, ‘गुड मॉर्निंग’ जैसे छोटे-छोटे शब्द बच्चों के व्यक्तित्व को बड़ा और प्रभावशाली बनाते हैं।
यह बातें केवल सुनने के लिए नहीं बल्कि अपने जीवन में उतारने के लिए हैं। यदि हम सब मिलकर इन बातों पर अमल करेंगे, तो हमारे नन्हे-मुन्ने बच्चे एक संस्कारी, सभ्य और उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ेंगे।
यदि हम सब इन बातों को जीवन में आत्मसात करें तो निश्चय ही हमारे बच्चे ज्ञान, आचरण और संस्कार—तीनों में श्रेष्ठता प्राप्त करेंगे।