Skip to content
  • होम
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • जनरल न्यूज
  • दखल
  • गेस्ट राइटर

राष्ट्रपति शब्द पर पुनः विचार की जरूरत

गेस्ट राइटर
/
August 3, 2022

हाल ही लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने जब कथित तौर पर जुबान फिसलने पर राश्टपति द्रोपदी मुर्मु को राश्टपत्नी की संज्ञा देते हुए संबोधित किया तो एक बार फिर इस पर बहस षुरू हो गई है कि क्या राश्टाध्यक्ष या राश्टप्रमुख का नामकरण राश्टपति करने में मौलिक त्रुटि हो गई। राश्टपति षब्द में पति षब्द का एक अर्थ तो हजबैंड होता है, दूसरा अर्थ होता है मालिक। जैसे लक्ष्मीपति के माने देवी लक्ष्मी के पति विश्णु भगवान। इसी प्रकार करोडपति, धनपति आदि के मायने करोड व धन के मालिक। पति के दोनों ही अर्थों को राश्ट से जोडना गलत ही है। न तो राश्टपति राश्ट का पति है और न ही राश्ट का मालिक। पति तो बिलकुल ही नहीं। यानि मालिक के रूप में इस षब्द का उपयोग कर लिया गया। वह भी गलत ही है। कोई व्यक्ति भला कैसे किसी राश्ट का मालिक हो सकता है। राश्ट राश्टपति की मिल्कियत कैसे हो सकती है। भले ही कितना ही बडा क्यों न हो। इसमें राजषाही का आभास होता है।
इस सिलसिले में प्रसंगवष एक बात अपने ख्याल में लाइये। आपको याद में होगा कि पहले जिला कलेक्टर को जिलाधीष कहा जाता था। बाद में महसूस हुआ कि आधीष षब्द में भी राजषाही का आभास होता है, इस कारण में बाद में बाकायदा गजट नोटिफिकेषन जारी कर जिलाधीष का नाम जिला कलेक्टर कर दिया गया। एक अर्थ में यह भी अधूरा है, क्योंकि कलेक्टर के मायने राजस्व वसूली करने वाला अधिकारी होता है, जबकि जिला कलैक्टर पर न केवल राजस्व वसूली का दायित्व है, अपितु प्रषासन के अन्य सभी कार्य भी वहीं अंजाम देता है।
राश्टपति षब्द में दूसरी सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बात ये है यह पुरुशवाचक है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस षब्द की रचना पुरुश सत्तात्मक मानसिकता के कारण हुई। माना कि यह पदनाम है, जो कि न तो पुलिंग होता है और न ही स्त्रीलिंग, मगर षब्द में तो पुलिंग भाव साफ दिखाई देता है। और यही वजह है कि जब इस पद कोई महिला बैठेगी तो अटपटा लगेगा ही। इसकी बजाय अंग्रेजी का प्रेसीडेंट षब्द बिलकुल ठीक है, यानि की राश्ट का अध्यक्ष या राश्ट प्रमुख। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। पुरुश की प्रधानता पार्शद, संरपंच, विधायक, सांसद, मंत्री आदि में भी झलकती है। यदि इन पदों पर महिला बैठती है तो असहज नहीं लगता, और इसी कारण पार्शदा, सरपंचानी, विधायिका, सांसदा मंत्राणी कहने की जरूरत महसूस नहीं होती। मगर चूंकि राश्टपति षब्द में साफ तौर पर पुरुश का भाव है तो किसी महिला को राश्टपति कहने में थोडी अडचन महसूस होती है। इसी चक्कर में अधीर रंजन ने जब राटपत्नी कहा तो वह बहुत ही बेहूदा और भद्दा लगा। बेहतर यह है कि आज जब कि एक बार फिर राश्टपति षब्द पर तनिक बहस षुरू हुई तो यह किसी अंजाम तक पहुंचनी चाहिए।

राष्ट्रपति के बारे में गूगल पर दी गई जानकारी भी आप जान लीजिए
भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्धध्शान्ति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश के प्रथम नागरिक हैं। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है।
सिद्धान्ततः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है, पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद के द्वारा उपयोग किए जाते है। राष्ट्रपति अधिकतम कितनी भी बार पद पर रह सकते हैं इसकी कोई सीमा तय नहीं है। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने ही इस पद पर दो बार अपना कार्यकाल पूरा किया है। प्रतिभा पाटिल भारत की 12वीं तथा इस पद को सुशोभित करने वाली पहली महिला राष्ट्रपति हैं।
15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटेन से स्वतन्त्र हुआ था और अन्तरिम व्यवस्था के तहत देश एक राष्ट्रमण्डल अधिराज्य बन गया। इस व्यवस्था के तहत भारत के गवर्नर जनरल को भारत के राष्ट्र प्रमुख के रूप में स्थापित किया गया, जिन्हें ब्रिटिश इंडिया में ब्रिटेन के अन्तरिम राजा द्वारा ब्रिटिश सरकार के बजाय भारत के प्रधानमन्त्री की सलाह पर नियुक्त करना था। यह एक अस्थायी उपाय था, परन्तु भारतीय राजनीतिक प्रणाली में साझा राजा के अस्तित्व को जारी रखना सही मायनों में सम्प्रभु राष्ट्र के लिए उपयुक्त विचार नहीं था। आजादी से पहले भारत के आखिरी ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड माउण्टबेटन ही भारत के पहले गवर्नर जनरल बने थे। जल्द ही उन्होंने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को यह पद सौंप दिया, जो भारत के इकलौते भारतीय मूल के गवर्नर जनरल बने थे।
इसी बीच डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान का मसौदा तैयार हो चुका था और 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से संविधान को स्वीकार किया गया था। इस तिथि का प्रतीकात्मक महत्व था क्योंकि 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटेन से पहली बार पूर्ण स्वतन्त्रता को आवाज दी थी। जब संविधान लागू हुआ और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति का पद संभाला तो उसी समय गवर्नर जनरल और राजा का पद एक निर्वाचित राष्ट्रपति द्वारा प्रतिस्थापित हो गया। इस कदम से भारत की एक राष्ट्रमण्डल अधिराज्य की स्थिति समाप्त हो गया। लेकिन यह गणतन्त्र राष्ट्रों के राष्ट्रमण्डल का सदस्य बना रहा।
तेजवानी गिरधर
7742067000

पिछला खुल गया कल्लू का राज, आ गया वर्ल्डवाइड रिकार्डस का होली धमाका अगला JIO TRUE 5G NOW AVAILABLE IN PUNE

Leave a Comment Cancel reply

Recent Posts

  • आईआईटी मंडी ने अपने एमबीए डेटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम के 2025-27 बैच के लिए आवेदन आमंत्रित किए
  • समाज सुधारक युग प्रवर्तक सच्चे हिंदुत्व के मसीहा कर्म योगी सभी वर्गो चहेते स्वामी विवेकानंद
  • टोयोटा किर्लोस्कर मोटर ने कर्नाटक में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकारी टूल रूम और प्रशिक्षण केंद्र के साथ समझौता किया
  • आज का राशिफल व पंचांग : 11 जनवरी, 2025, शनिवार
  • इंसानों की तस्करी की त्रासदी वाला समाज कब तक?

संपादक की पसंद

Loading...
गेस्ट राइटर

गांव, गरीब और किसान की सुुध लेता बजट

February 2, 2018
Loading...
दखल

पिज्जा खाने से रुकी किरपा आ जाती है

December 14, 2024
दखल

पाकिस्तान सम्भले अन्यथा आत्मविस्फोट निश्चित है

February 20, 2023
दखल

श्रद्धा जैसे एक और कांड से रूह कांप गयी

February 16, 2023
दखल

अमृत की राह में बड़ा रोड़ा है भ्रष्टाचार

February 8, 2023
दखल

सामाजिक ताने- बाने को कमजोर करती जातिगत कट्टरता

February 4, 2023

जरूर पढ़े

Loading...
गेस्ट राइटर

गांव, गरीब और किसान की सुुध लेता बजट

February 2, 2018
© 2025 • Built with GeneratePress