व्यंग्य
अपने देश में इन दिनों कई क्षेत्रों में मक्खियों की बहुलता है. विशेषकर वहां, जहांकि नगर-निगम, नगरपालिका अथवा ग्रामसभा आदि की खास कृपा रहती है. मसलन हरियाणा के करनाल जिले में रसूलपुरा गांव को ही ले, वहां तो इतनी मक्खियां बताते है कि गांव में शादी के रिश्ते तक टूट रहे हैं. नए रिश्ते आने बंद होगए है और रिश्तेदार मुंह मोड रहे है. क्या करें ? किसको कहे ?

कुछ लोगों ने जैसे आदमियों में भेद किये हुए है वैसे ही मक्खियों में भी किये हुए हैं. उदाहरणार्थ साधारण मक्खी, गधेला मक्खी (जो सिर्फ गधें पर ही बैठती है) शहदवाली मधुमक्खी, अफ्रीका की टीसी-टीसी मक्खी आदि लेकिन बावजूद इसके, इनमें एकता है. यह सब आपस में भाईचारे से रहती है. आदमी की तरह लडती नही है. जो हो लेकिन इनमें एक मत यह भी है कि यह उस कहावत के अनुसार चलती है जिसमें कहा गया है कि “मक्खियां श्राध्दों की खीर खाकर ही जाती है ”. आम जनता तो चाहती है कि वह पहले ही चली जाय लेकिन आप तो जानते है कि “बालहठ,” “त्रियाहठ” और “राजहठ” की तरह ही “मक्खीहठ” भी मशहूर है.
इनको समय पूर्व बिदा करने के लिए कुछ समय पूर्व राजस्थान में झुंझनू के एक गांव में किसानों ने कोशिश की थी. उन्होंने अपनी मांगों को लेकर कोई विरोध प्रदर्शन किया और बंद का आवहान किया और उस रोज दूध न बेचकर खीर बनाकर सब को खिलाई. अब यह तो हो नही सकता कि सब खीर खायें और मक्खियां देखती रहे सो उन्होंने भी इस दावत में बिन बुलाये मेहमान के तौर पर हिस्सा लिया जैसे कभी 2 कुछ सूट-बूट वाले नौजवान कुछ जगह विवाह-शादी के समारोह में बिना बुलावे घुस जाते है. अरे भाई ! “सूट-बूट” को तो बदनाम मत करो. मजे की बात है कि इस जिमणार के बाद भी मक्खियां वहां टिकी रही.
जानकारों का तो यह कहना है कि मक्खियां भी आजकल स्मार्ट होगई हैं. जनता की तरह वह भी सब समझती है इसलिए उनका कहना है कि हम तो श्राध्दों की खीर खाने के बाद ही जायेंगी, ऐसी पिकनिक या जिमणार की खीर तो वह अकसर ही खाती रहती हैं.