आठों उंगलियां व दोनो अंगूठों को मिलाने की मुद्रा को कहते हैं पूर्ण मुद्रा
आठों उंगलियों और दोनों अंगूठों को आपस में मिलाने से जो मुद्रा बनती है, वह पूर्ण मुद्रा या कई जगह प्राण मुद्रा का विस्तृत रूप मानी जाती है। इसका महत्व योग, ध्यान और आयुर्वेद, तीनों दृष्टियों से समझा जा सकता है। आइये विस्तार से जानते हैं कि उसके क्या क्या लाभ हैंः-
वैज्ञानिक दृश्टि से देखें तो इस मुद्रा से ऊर्जा का चक्र पूरा होता है। आठों उंगलियों व दोनों अगूंठे शरीर के पाँच तत्वों अग्नि, वायु, आकाश, जल, पृथ्वी के प्रतिनिधि माने जाते हैं। अंगूठा अग्नि का प्रतीक है और बाकी उंगलियां अन्य चार तत्वों को दर्शाती हैं। जब सभी उंगलियों को आपस में मिलाया जाता है, तो इन सभी तत्वों का संतुलन स्थापित होता है और ऊर्जा का प्रवाह सिर से लेकर पैरों तक सुचारू हो जाता है। इससे प्राण शक्ति का संचार होता है। शरीर में बिखरी हुई ऊर्जा एक बिंदु पर केंद्रित होकर नाड़ी तंत्र में सक्रिय हो जाती है।
मानसिक दृश्टि से देखा जाए तो इस मुद्रा से एकाग्रता, मानसिक शांति और ध्यान की गहराई बढ़ती है। मन की चंचलता कम होती है और विचारों में स्पष्टता आती है। इससे स्वास्थ्य लाभ भी होता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से यह मुद्रा रक्त संचार और स्नायु-तंत्र यानि नर्वस सिस्टम को सक्रिय करती है। शरीर के सभी अंगों में प्राण वायु का प्रवाह संतुलित करता है। इससे थकान, तनाव और मानसिक अशांति कम होती है।4. इसका आध्यात्मिक पक्ष भी है। सभी उंगलियां मिलकर “पूर्णता” और “समर्पण” का प्रतीक बनती हैं। इसे साधना या ध्यान के समय करने से साधक का आंतरिक और बाहरी ऊर्जा-क्षेत्र संतुलित होता है।
तनिक सावधान की भी जरूरत होती है। यह मुद्रा खाली पेट, आराम की स्थिति में, सीधी रीढ़ के साथ बैठ कर करना सबसे लाभकारी माना जाता है। समय सीमा 5 से 15 मिनट पर्याप्त है, परंतु ध्यान या जप के दौरान इसे लंबे समय तक भी रखा जा सकता है।