देश के तमाम शिक्षकों एवं शिष्यों के नाम…

मैं आपके समक्ष आज शिक्षक दिवस के विशेष अवसर पर अपनी बात रखना चाहता हूं ।
प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति में गुरु को शिष्य के संरक्षक के रूप में देखा जाता रहा है, जो शिष्यों को सही दिशा दिखाकर मोक्ष या ईश्वर-प्राप्ति का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करते हैं।
गुरु को ईश्वर का प्रतिनिधि या स्वयं ईश्वर का रूप माना जाता है, जो ईश्वर से मिलाने का माध्यम बनते हैं। गुरु का शाब्दिक अर्थ ही है अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाना और जीवन का सही उद्देश्य समझाना।
त्रेता युग में हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के समय से ही गुरु शिष्य की परंपरा रही है। उस युग में महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र उनके गुरु थे। महान धनुर्धारी अर्जुन के गुरू द्रोणाचार्य थे, महान योद्धा वीर छत्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ रामदास थे क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के गुरु रमाकांत आचरेकर थे। ये है कुछ महान और अमर गुरुओं के नाम। जो अपने-अपने समय में गुरु धर्म का पालन करते हुए प्रतिष्ठित हुए और आदर्श उदाहरण बन गए हैं। तो ये है हमारी गुरु-शिष्य की परंपरा। जिस पर हम जितना गर्व करें कम है। ऐसे उदाहरणों की सूघी काफी लंबी है।इसलिए हम चाहते हैं कि यह परंपरा आगे भी बरकरार रहे अक्षुण्ण रहे। एक अच्छे नागरिक का निर्माण, जो देश की प्रगति में योगदान दे, ऐसा सिर्फ एक कुशल शिक्षक ही कर सकता है। लेकिन आज की हालत परिस्थितियों कैसी है हमसे छुपी नहीं है।
इसलिए आप सबसे हमारी ये आशा और विश्वास है कि आपमें से प्रत्येक विद्यार्थी और शिक्षक आदर्श गुरू-शिष्य धर्म को निभाते हुए खुशहाल और उन्नत राष्ट्र निर्माण में योगदान देकर एक सार्थक गुरू- शिष्य की भूमिका निभाएंगे। यह सर्वविदित ही है किसब कि हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ.राधा कृष्णन जिनका आज जन्मदिन है उन्हीं की स्मृति में शिक्षक दिवस मनाई जाती है।
आप अवश्य ही देश के लिए अच्छे और सच्चे नागरिक और साथ ही उन्नत देश के निर्माण में अपनी सार्थक भूमिका के पालन का निर्वाह अवश्य करेंगे।
श्याम कुमार राई
‘सलुवावाला’