खगोलीय अवधारणा के मुताबिक सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करनेको मकर संक्रांति कहा जाता है। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि मेंप्रवेश 20 मिनट की देरीसे होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल एक दिनकी देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस तरह 2080 के बाद मकरसंक्रांति 16 जनवरी कोपड़ेगी। इसी संदर्भ यह उल्लेखनीय है कि राजा हर्षवर्धन के समय में यह पर्व 24 दिसंबर कोपड़ा था। मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकरसंक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह त्योहार 11 जनवरी कोपड़ा था।मकर संक्रांति के दिन भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों यथाप्रयाग,हरिद्वार,वाराणसी,कुरुक्षेत्र,गंगासागर पुष्कर आदि में पवित्र नदियों गंगा,यमुना आदि में करोडों लोग डुबकी लगा कर स्नान करते हैं।ऐसा माना जाता है कि वरुण देवता इन दिनों में यहां आते हैं | यह भी माना जाता है कि उत्तरायण मेंदेवता मनुष्य द्वारा किए गए हवन,यज्ञ आदि को शीघ्रता से ग्रहण करतेहैं।अथर्ववेद में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दीर्घायु औरस्वस्थ रहने के लिए सूर्योदय से पूर्व ही स्नान शुभ होता है। ऋग्वेद में ऐसा लिखाहै कि हे सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करने से भास्कर देव हमारे वात,पित्त और कफसे पैदा होने वाले रोगों को समाप्त करते हैं | मकर संक्रांति माघ माह में आती है | संस्कृत मेंमघ शब्द से माघ निकला है। मघ शब्द का अर्थ होता है धन,सोना-चांदी,कपड़ा,आभूषण आदिइसलिए इन वस्तुओं के दान आदि के लिए ही माघ माह उपयुक्त है। ईसी वजह से मकरसंक्रांति को माघी संक्रांति भी कहते है। मकर संक्रांति को देश में कई अन्य नामोंसे भी जाना जाता है जैसे तिल संक्रांति, खिचड़ी संक्रांति एवं माघ संक्रांति |पंजाब और जम्मू कश्मीर मे संक्रांति के एक दिन पूर्व में लोहड़ी मनाई जाती है। लोग घर-घर जाकर लकडिय़ां एकत्रित करते हैंऔर फिर लकडिय़ों के समूह को आग के हवाले कर मकई की खील, तिल व रवेडिय़ों को अग्नि देव को समर्पित करके प्रसाद केरूप में सबमें बाटते हैं।उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति को ’खिचड़ी’ के नाम सेमनाया जाता है। इन प्रदेशों के अंदर कहीं खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं जगह दहीचूड़ा और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं। मध्य प्रदेश में इसत्योहार पर परिवार के बच्चों से लेकर बूढ़े सभी एक साथ गिल्ली-डंडे के इस खेल काआनंद उठाते हैं | महाराष्ट्रऔर गुजरात में मकरसंक्रांति के दिन लोग अपने घर के सामने आकर्षक रंग बिरंगी रंगोली अवश्य बनाते हैं।फिर एक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाते हुए आपस में कहते हैं तिल और गुड़ खाओऔर फिर हमेशामीठा-मीठा बोलो।असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहूयानि भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है। भोगाली बिहू के मौके पर खान-पान धूमधामसे होता है। इस समय असम में तिल, चावल, नरियल और गन्ने की फसल अच्छी होती है। इसी से तरह-तरह केव्यंजन और पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं। भोगाली बिहू पर भी होलिका जलाईजाती है और तिल व नरियल से बनाए व्यंजन अग्नि देवता को समर्पित किए जाते हैं।भोगली बिहू के मौके पर टिकुली भोंगा नामक खेल खेला जाता है साथ ही भैंसों की लड़ाईभी होती है। राजस्थान,गुजरात में संक्रांति को पंतग बाजी के पर्व के रूप में मनाया जाता है राजस्थान,गुजरात मे इस दिन आसमान पतंगो से ढक जाता है | लाल, हरी, नीली,पीली आदि रंग बिरंगी पतंगें जब आसमान में लहराती हैं तोऐसा लगता है मानो इन पतंगों के साथ हमारे सपने भी हकीकत की ऊँचाइयों को छू रहे हैंऔर हम सभी सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे की पतंगों के पेच लड़ा रहे हैं|केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिकतीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रांति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूरपर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़तीहै। कर्नाटक में भी फसलका त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रानिकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एकदूसरे का अभिवादन करते हैं। मकर संक्रांति फसलों की कटाई कात्यौहारनई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांतिधूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होताहै, इसलिए किसानमकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। खेतों में गेहूं और धान कीलहलहाती फसल किसानों की मेहनत का परिणाम होती है लेकिन यह सब ईश्वर और प्रकृति केआशीर्वाद से संभव होता है।मकर संक्रांति से प्राप्त सुखी जीवन के नुस्खेमकर संक्रान्ति का पर्व हमे अपनी जिन्दगी को सुखी औरखुशहाल बनाने के बारे में अप्रत्यक्ष रूप के अंदर अनेको सीख भी देता है |सूर्य आकाशमें बहुत ऊँचाई पर है इसीलिये हमे भी जीवन के अंदर कुछ बड़ा काम करने के लिये हमकोऊची और बड़ी सोच रखनी होगी | सूर्य कीरोशनी से प्राप्त उजाला हमको सीख देता है कि ज्ञान से प्राप्त की गई सोच से हमारीसोच के अंदर स्पष्ट नजरिया उत्पन्न होता है जो हमेंसफलता दिलाता है | संक्रांति के बाद मौसम मे बदलाव आता है और हमारेखान पान मे भी हम बदलाव करते है इससे सीख मिलती हैकि परिस्थिति में आए परिवर्तन के अनुसार हमें अपनेअपने को ढाल लेना चाहिये | परिवर्तन को स्वीकार करना लाजमी और फायदेमंद होता है | अपनी लीडरशिपक्षमता को कामयाब बनाने के लिये हमारी बोली में मिठास और विनम्रता का होना जरूरीहै | पौराणिकमान्यताओं के मुताबिक मकर संक्इरान्सति के दिन दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशिमें प्रवेश करते हैं,वैसे तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व शनि मेंशत्रुता बताई गई है लेकिन इस दिन पिता सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि के घर जाते हैंतो इस दिन को पिता पुत्र के तालमेल और प्रेम मिलाप के दिन के दिन व पिता पुत्र मेंगुजरे दुश्मनी पूर्ण संबंधों की बजाय नये प्रेममय रिश्तों की शुरुआतहोती है। इससे हमको यह सीख मिलती है कि हमेंअपने जीवन मे आपसीरिस्तों को मजबूत बनाये रखना चाहिए यही सबसे बड़ी पूजीं होती है | शुभ कामो कीशुरुआत करने मे देरी नहीं करें | जीवन के अंदरजीत हार को अनावश्यक महत्व नहीं दें याद रखे एक असफलता दुसरी सफलता का दरवाज खोलतीहै | सिर्फ सोचनेसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा आपको अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिये मेहनत करनीपड़ेगी |
डा जे. के. गर्गपूर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज डा जे. के. गर्ग