मुंबई, फरवरी 2023: इंडिया हेल्थ फंड (आईएचएफ), संक्रामक रोगों के मामले में स्वास्थ्य परिणामों को सुधारने पर केन्द्रित टाटा ट्रस्ट्स की एक पहल ने आज दो अग्रणी प्लेटफॉर्म टूल्स के लिये फंडिंग की घोषणा की है। इनका इस्तेमाल कई बीमारियों के निदान के लिए किया जा सकता है। एमेलियोरेट बायोटेक प्रा. लि. और मेडप्राइम टेक्नोलॉजीज द्वारा विकसित ये नवाचार हैं – डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया का पता लगाने वाला एक फीवर पैनल; और विभिन्न बीमारियों में काम आने वाला एक माइक्रोस्कोप-एग्नोस्टिक एआई-इनैबल्ड डायग्नोसिस सॉफ्टवेयर।
भारत में मच्छर-जनित रोग तेजी से फैल रहे हैं और 2015 से 2021 के बीच डेंगू और चिकनगुनिया के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। पिछले 20 वर्षों में मलेरिया की मौजूदगी भले ही कम हुई है, लेकिन वास्तविक संख्या अभी भी बहुत अधिक है। इन बीमारियों में शुरूआती अवस्था में अक्सर एक जैसे लक्षण नजर आते हैं, जिससे बीमारी की गलत डायग्नोसिस हो सकती है या सही पहचान करने में विलंब भी हो सकता है। इसलिये रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) की तत्काल आवश्यकता है, जो वास्तविक समय में हो और इस्तेमाल में आसान होने के साथ ही किफायती, यूजर के अनुकूल और उपकरणों से रहित हो। इसी प्रकार, मलेरिया जैसी बीमारियों का आसानी और सटीकता से पता लगाने वाली अल्गोरिदम सुदूर समुदायों के लिये बहुत मूल्यवान है। इसमें माइक्रोस्कोपिस्ट्स के कौशल और प्रशिक्षण में अंतर के कारण होने वाली वस्तुपरकता की गुंजाइश नहीं होती है। मलेरिया के लिये एक डायग्नोस्टिक टूल के रूप में माइक्रोस्कोपी के प्रथम प्रयोग के बाद से इसका विकास बहुत कम हुआ है।
डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया (मलेरिया फाल्सिपेरम और विवैक्स पृथक्करण के साथ) के लिये महज 15 मिनट की एक सटीक और कई विधियों वाली यह जाँच (आरडीटी) एक सिंगल टेस्ट किट और सिंगल ब्लड सैम्पल का इस्तेमाल करती है और प्राथमिक स्तर पर न्यूनतम प्रशिक्षित कर्मी द्वारा भी इसे आसानी से किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में सीरम/प्लाज़्मा के नमूनों की जरूरत नहीं होती है। इसके परिणाम तुरंत मिल जाते हैं, इसमें कोल्ड चेन सुविधा/बायोसेफ्टी लैब की आवश्यकता नहीं है और इसमें कम से कम चिकित्सकीय अपशिष्ट निकलता है। आईएचएफ से मिला 12 महीनों का वित्तपोषण आरडीटी की संभावना, बहुकेन्द्रीय प्रदर्शन और कम खर्चीले मूल्यांकन को संभव बनाएगा। आरडीटी को सरकारी खरीद के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को 200 रुपये प्रति पीस के रियायती दाम पर उपलब्ध कराया जाएगा। यह 3000 से लेकर 4000 रुपये तक की कीमत वाले मौजूदा फीवर पैनल से बहुत कम है।
एमेलियोरेट बायोटेक प्रा. लि. के प्रबंध निदेशक एवं संस्थापक डॉ. रासबिहारी तुंगा ने कहा, “एमेलियोरेट के पास एक गेम-चेंजिंग समाधान है, जो बुखार वाली बीमारियों के बीच तुरंत अंतर करने और सही उपचार लेने में सुदूरतम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मदद कर सकता है।” एमेलियोरेट की निदेशक एवं सह-संस्थापक डॉ. बिनिता श्रीवास्तव तुंगा ने कहा, “इंडिया हेल्थ फंड से मिला सहयोग और वित्तपोषण इस नवाचार को जरूरतमंदों तक पहुँचाने के लिये जरूरी गति प्रदान करेगा।”
रोग के निदान की तेज, कम खर्चीली और ज्यादा सटीक माइक्रोस्कोपी के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से पावर्ड एक सॉफ्टवेयर स्थानीय आधार पर मशीन लर्निंग से प्रशिक्षित अल्गोरिदम का इस्तेमाल करता है, जिससे मलेरिया के परजीवियों (पी. फाल्सिपेरम और पी. विवैक्स) का ऑटोमेटिक तरीके से पता चलता है, पहचान होती है और उनका स्पष्ट पृथक्करण होता है। इस टूल को माइक्रोस्कोप, बीमारी (संचारी और गैर-संचारी) और नमूने (खून, पेशाब, मल, मवाद) से निरपेक्ष होगा और यह स्लाइड देखने, इमैज की प्रोसेसिंग और रिजल्ट की रिपोर्टिंग में तीन गुना कम समय लेगा। यह अल्गोरिदम प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत को भी खत्म करता है और उन मेडिकल, पैरामेडिकल तथा संबद्ध स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं शोध के लिये महत्वपूर्ण होगा, जिसमें दूरस्थ सहयोग और पारस्परिक समन्वय की ज़रुरत होती है। मेडप्राइम को आईएचएफ से मिला 24 महीनों का सहयोग एआई/मशीन लर्निंग (एमएल) से चलने वाले इस मल्टीप्लेक्स डायग्नोसिस सॉफ्टवेयर के विकास और पायलट परीक्षण को संभव बनाएगा।
मेडप्राइम टेक्नोलॉजीज के सीईओ सम्राट ने कहा, “एआई हमारी दुनिया को नया आकार दे रही है। इंडिया हेल्थ फंड के सहयोग से हमारा डिजिटल सॉल्यूशन भविष्य के लिये तैयार है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ताकत से सुनिश्चित करेगा कि देश के सबसे सुदूर कोनों में भी मलेरिया और दूसरी बीमारियों का निदान तेजी से और बिल्कुल सही हो और यह शोध, प्रशिक्षण तथा शिक्षा के उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल में आसान एक ओपन डिजाइन रिमोट टूल की पेशकश करता है, जोकि एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।”
इंडिया हेल्थ फंड के सीईओ माधव जोशी ने कहा, “फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को कई बीमारियों की तेज और सटीक जाँच करने में सक्षम प्लेटफॉर्म टूल्स से सशक्त करने से जिंदगियां बचाने में मदद मिलेगी और राष्ट्रीय चौकसी की व्यवस्था मजबूत होगी। एमेलियोरेट का फीवर पैनल और मेडप्राइम का डायग्नोस्टिक अल्गोरिदम हमारे सहयोग से उन समुदायों तक पहुँच सकेगा जिनकी इसे सबसे ज्यादा जरूरत है तथा किसी विशिष्ट टेक्नोलॉजी, भूभाग और वहन-क्षमता की मजबूरी के बगैर संक्रामक रोगों को समाप्त करने की दिशा में काम करेगा।”
कई बीमारियों की पहचान कर सकने वाले नवाचारों का इस्तेमाल करने से न सिर्फ पहले से दबाव झेल रही स्वास्थ्य प्रणालियों की दक्षता बढ़ेगी और खर्च बचेगा, बल्कि मरीजों का कीमती समय भी बचेगा और इलाज के लिये एक सही दिशा मिलेगी। आईएचएफ से सहयोग-प्राप्त और “भारत में निर्मित’’ यह दोनों टूल्स इसी दिशा में योगदान करने का वादा करते हैं।