भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) दुनिया का सबसे बड़ा व व्यापक अनुसंधान संस्थान है। संस्थान की अब तक की प्रगति प्रशंसनीय है। चाहे उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करना हो, उत्पादकता बढ़ानी हो या जलवायु अनुकूल फसलें उत्पन्न करने की चुनौती हो, हर क्षेत्र में हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राचीन काल में परंपरागत खेती के बाद कृषि के क्षेत्र की प्रगति में किसानों के परिश्रम के साथ ही वैज्ञानिकों का अनुसंधान मील का पत्थर साबित हुआ है। अब तक यह यात्रा संतोषजनक रही है, लेकिन देश को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने के लिए वर्ष 2047 तक अमृत काल में कृषि की चुनौतियों का समाधान, उन पर विजय प्राप्त करने का सरकार का लक्ष्य निश्चित ही सराहनीय है। विगत 9 वर्षों में कृषि क्षेत्र में किए गए भगीरथी प्रयासों के परिणाम अब स्वतः ही दृष्टिगोचर होने लगे हैं। जहां वर्ष 2013-14 में कृषि के लिए बजट में मात्र 21933 करोड़ रुपए था, वहीं इस वर्ष 2023-24 के बजट में 1 लाख 25 हजार करोड़ रुपए की धनराशि का प्रावधान कृषि के लिए किया जाना सरकार की दूरगामी सोच को दर्शाता है। 2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का उद्देश्य हर किसान को प्रति वर्ष 6 हजार रुपए के रूप में ऐसा आर्थिक संबल दिया जा रहा है, जिससे न केवल किसान प्रतिकूल समय में कर्ज के जाल में फंसने से बच सके, बल्कि इस धनराशि से समय पर खाद-बीज की व्यवस्था भी कर सके।
अन्याय क्षेत्रों के साथ कृषि क्षेत्र में भारत का वर्चस्व दुनियाभर में बढ़ रहा है, इसके साथ ही दुनिया भर की अपेक्षाएं भी बढ़ रही हैं। 2047 तक नए भारत को गढ़ने का लक्ष्य है। नए भारत के लिए नया विज्ञान, अनुसंधान, नया कौशल तथा नया इनोवेशन चाहिए क्योंकि आने वाला कल नए भारत का है। इसके लिए श्री नरेंद्र मोदी की सरकार नित-नए मंत्रों के आधार पर काम कर रही है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास मोदी का मूलमंत्र है, किसी को न छोड़ते हुए लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते जाना। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था- जय जवान, जय किसान। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसमें विज्ञान को जोड़ा और मोदी ने इसमें अनुसंधान भी जोड़ दिया है। भारत की कृषि के लिए यह मंत्र बन गया है- जय जवान जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान।
कृषि उत्पादों की दृष्टि से उल्लेखनीय तरक्की हुई है, भारत ने 4 लाख करोड़ रु. से अधिक का निर्यात किया है, जो अब तक का सबसे अधिक है। प्राकृतिक खेती व जैविक खेती पर बल देने के कारण इस तरह के उत्पाद दुनिया में और भी ज्यादा लोकप्रिय होने वाले हैं। जिससे भविष्य में निर्यात और बढ़ेगा, इसके लिये जरूरी है कि कृषि उत्पादन की गुणवत्ता वैश्विक मानकों पर खरी उतरने वाली हो, इस पर विशेष ध्यान देना होगा। प्राकृतिक खेती पर सरकार का बल है। प्रधानमंत्री श्री मोदी का आग्रह है कि हम प्राकृतिक खेती यानी गाय आधारित खेती करें। वेस्ट टू वैल्थ का काम हो। हमारे उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा भी अधिक रहे। निश्चित ही प्राकृतिक खेती अब भारत की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के अंतर्गत 8 राज्यों आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्यप्रदेश व तमिलनाडु में 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया है। सरकार प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने की राह पर हैं और राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत देश के 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं। मोदी का यह मिशन मृदा, किसान, कृषि और आमजन सभी के लिए हितकारी साबित होगा, इससे किसानों की समृद्धि बढ़ेगी एवं कृषि का क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा।
संपूर्ण दुनिया की खान-पान से जुड़ी विसंगतियों और उनसे उपजती स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निदान की दिशा में भारत सरकार की पहल पर संयुक्त राष्ट्र का वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया गया है। श्रीअन्न यानी मिलेट के उत्पादन, संवर्धन एवं विकास में भारत की अगुवाई बेहद महत्त्वपूर्ण कदम है। श्रीअन्न यानी मोटे अनाज को जनआंदोलन बनाने से जहां हमारी खाद्य विसंगतियों में सुधार आएगा, वहीं पोषण में भी सुधार होगा। साथ ही छोटे और मझोले किसानों के लिए भी श्री अन्न की खेती वरदान साबित होगी। कम पानी में होनी वाली ये फसलें बहुत उपयोगी साबित होंगी। मोदी ने ही मोटे अनाज की उपयोगिता को उजागर किया है, जिससे दुनियाभर में मोटे अनाज के लिये लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है, भारत के योग एवं अहिंसा की ही भांति मोटे अनाज से दुनिया में भारत एक नयी पहचान बनाने के लिये अग्रसर है।
देश के समग्र और संतुलित विकास को आगे बढ़ाया जा रहा है। जब समग्र विकास की बात करें तो कृषि का क्षेत्र देश के बैकबोन की तरह होना ही चाहिए। जलवायु परिवर्तन जैसी विभिन्न समस्याएं, किसानों की खड़ी फसलों में प्राकृतिक प्रकोप से नुकसान होने की चुनौती जैसे जटिल हालातों में नए भारत में कृषि की नई टेक्नालॉजी, नए अनुसंधान से कृषि एवं किसानों को जोड़ना हमारी प्राथमिकता होनी ही चाहिए। किसानों की आमदनी भी बढ़नी चाहिए, उनके घर में समृद्धि दिखे तथा गांवों को और कृषि क्षेत्र को समृद्ध किया जाये, तभी भारत वास्तविक रूप में नया भारत बन सकेगा। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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