निसन्देह खुशीयोंके अनमोल खजानेकी राह सिर्फ मां, मां ही प्यारएवं डांट का खट्टा-मीठे की मूर्ति है | याद रक्खें , मां की हर दुआ कबूल है, मां को नाराज करना इन्सान तेरी भूलहै मां केकदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है | किसीने मां के कंधें परसर रख के पूछा मां कब तक अपने कंधों पर सोने दोगी ? मां ने कहा जब तक लोग मुझेअपने कंधें पर न उठा लें | वास्तव के अंदर यह मत कहिये मेरे साथ रहती हैमां, कहिये किमां के साथ रहते हैं हम | अगर सारे देशों की माएं मिल पातीं तो और युद्धनहीं होते .ज़िन्दगी उठने और माँ के चेहरे से प्यार करने के साथ शुरू हुई .जिस घरमें माँ होती है, वहांचीजें सही रहती हैं | मैं जो कुछ भी हूँ या होने की आशा रखता हूँउसका श्रेय मेरी माँ को जाता है | निसंदेह मां ही भगवान से भेजी गयी एक फरिस्ता माँ’तोभगवान के रूप स्वरूप का साक्षात् प्रमाण हैं। माँ कर्त्तव्य की प्रतिमा हैं। उनकाउठना-बैठना,हर शारीरिक कर्म कर्त्तव्य का मौन प्रमाण है। जिसेकोई उपमा न दी जा सके उसका नाम है ‘माँ’।जिसकी कोई सीमा नहीं उसका नाम है ‘माँ’।जिसके प्रेम को कभी पतझड़ स्पर्श न करे उसका नाम है ‘माँ’।ऐसी तीन माँ हैं यथा परमात्मा, महात्मा और माँ।प्रभु को पाने की पहली सीढ़ी ‘माँ’ है।निसंदेह नारी माँ बनने के बाद भगवान के और नजदीक हो जाती है | संसारमें ये माँ-बेटे-बेटी का रिश्ता है जिसमें सिर्फ प्यार और दुलार होता है क्योंकिइस रिश्ते में कभी भी स्वार्थ एवम् धोखा नहीं होता है | ‘माँ तो बस माँ’ हीहोती है माँ क्या हैं इसका अनुमान हम खुद ही लगा सकते हैं क्योंकि बहुत कम समय मेंमाँ हमारे जीवन के हर पहलू में छा जाती हैं – उनकारूप हमारी आँखों से ओझल ही नहीं होता। जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये साधकजन्म-जन्म लगे रहते हैं और अत्यन्त परिश्रम से भी नहीं पा सकते, वहमाँ के सम्पर्क से सहज ही हँसते-हँसते प्राप्त होता नज़र आता है। सारी साधना जोपहाड़ के समान दुर्गम लगती थी, अब तो एक बाग मेंसैर के समान सुहावनी तथा मन मोहक लगने लगती है। ‘माँ’तो ‘माँ’ ही हैं। साधक मेंप्रेम-श्रद्धा-भक्ति की जन्म दायिनी ‘माँ’हैं।साधक को नव जीवन प्रदान करने वाली माँ हैं।तद्रूपता क्या है यदि इसेदेखना है तब माँ के जीवन से देख लो। बच्चा-बूढ़ा-ज्ञानी-अज्ञानी, स्वार्थी-परमार्थीजो भी सामने आता है उसके लिये माँ वैसी ही बन जाती हैं। पर शरीर का कोई भी रूप, वाक्और कर्म इत्यादि उन्हें छू नहीं सकता। वह सामने खड़े के लिये सब कुछ कर देती हैं औरउन लोगों ने क्या किया है यह उनकी दृष्टि में कभी अड़चन नहीं बनता। सहज ही में जोउनके सम्पर्क में एक बार आ गया वह उनका हो गया। तुम कुछ भी करो वह तो तुम्हें अपनाचुकी हैं। माँ तो साकार भगवान का चलता-फिरता बोलता मन्दिर है। बच्चों के लिये माँएक ‘वॉकी टॉकी’गुड़ियाहैं।माँ हमेशा आपकी शरारतों परपर्दा डालती है लेकिन जब भी आप कभी किसी मैडम से ग़लत तरीके से बात करते हैं, तोवो माँ ही होती है जो आपको मैडम से माफ़ी मांगने के लिए कहती है |याद कीजिये उस रात को जबआप बुखार में तप रहे थे और माँ आपके सिरहाने बैठ कर आपके तपते सिर पर पट्टी रख रहीथी? सुबह बोर्ड की परीक्षा आपका इंतज़ार कर रही थी उसवक्त माँ की उस पट्टी और हौसला अफ्ज़ाई ने आपको परीक्षा के लिए तैयार किया था |घर से बाहर रहने वालेबच्चों को शुरू में चाय के अलावा कुछ बनाना नहीं आता, लेकिनजब माँ को ये अहसास होता है कि अब आप जल्द ही बाहर जाकर पढ़ने वालें हैं तो वोआपको खाना बनाना सिखा देती है |अब चाहे आप ईश्वर परविश्वास न करेते हों, लेकिन बचपन में आपको जबरात में डर लगता था. तो वो माँ ही थी जिसने आपको भगवान का नाम जपने को कहा था औरउसके कारण आप डर से मुक्त हो गए थे |माँ ने हमें बचपन से हीबड़ों को आदर करना सिखाया है | माँ की वजह से हीहम अपने रिश्तेदारों के अलावा अपनी उम्र से बड़े लोगों को एक सम्मानपूर्वक नज़रियेसे देखते हैं |सजने-संवरने के मामले मेंबच्चे ख़ुद जल्दी कुछ सीख नहीं पाते हैं लेकिन जब हम माँ के साथ शादी या कहीं बाहरघूमने जाते तो हमें कपड़े से लेकर जूते पहनने तक का ढ़ंग सिखाया जाता. हम आज भीवैसे ही तैयार होते हैं जैसे हमें माँ ने सिखाया था |जब कभी हमने सड़क पर गंदगीफैलाई या महमानों के सामने कोई अपमानजनक बात कही, खानेकी टेबल पर खाया कम और गिराया ज्यादा, तोमाँ ने ही हमको इन सब बुरी आदतों को छोड़ना सिखाया और वो हमारे लिए एक नियम बन गया |इंसान सबसे ज्यादा हालातोंसे सीखता है पर माँ हमें उन हालातों से निपटना सिखाती है |साधारणतया भारतीय परिवारोंमें पिता एक ‘मज़बूत दिल संस्था’ होतीहै वहीं दुसरी तरफ माँ ‘नर्मदिल’| इसी वज़ह से बच्चेमाँ के ज्यादा करीब होते हैं और अपनी हर बात माँ से शेयर करते हैं | बच्चोंकी हर बात मम्मी की ज़ुबानी ही पापा तक पहुंचती है.बचपन में माँ के होमवर्ककरवाने से ही आपके अच्छे नंबर आते थे और क्लास में आप अव्वल रहते थे. अब बड़े होनेपर भी माँ आपका हौसला इसलिए बढ़ाती है ताकि आप ज़िंदगी में आगे रहें सच्चाईतो यही है कि वो बहुत खुशनसीब हैं जिन्हें हर कदम परमाँ का ‘आशीर्वाद’ प्राप्त होता हैमाँ सेसुविधा के लिये जुदा होना पड़े, उसमेंकोई हर्ज नहीं है किन्तु स्वभाव के कारण, जुदाहोना पड़ेवो तो सबसेबड़ी शर्म है।
माँ! पहले आँसू आते थे, औरतू याद आती थी। आज तू याद आती है, औरआँसू आते हैं।।
बचपन के आठ साल तुझे, अंगुलीपकड़कर जो माँ—बाप, स्कूल ले जाते थे, उस माँ—बाप को, बुढ़ापे के आठ साल, सहारा बनकर मन्दिर ले जाना…..शायद थोड़ा सा तेरा कर्ज, थोड़ा सा तेरा फर्ज पूरा होगा।
माँ — बापको सोने से न मढ़ो, चलेगा।हीरे से न जड़ो, तो चलेगा।परउसका जिगर जले और अंतर आँसू बहाये,
वो कैसे चलेगा?
कभी नहीं जिस दिन तुम्हारे कारण माँ— बाप की आँख में आँसू आते हैं, याद रखनाउस दिन तुम्हारा किया साराधर्म आँसू में बह जाता है।
पत्नी पसंद से मिल सकती है, माँ पुण्य से ही मिलती है। पसंद सेमिलने वाली के लिये, पुण्यसे मिलने वाली को मत ठुकराना।
माँ की गोद में सातों बेटे यूं ही बड़े हो जाते हैं (मगर) सातोंबेटे अपने महल में माँ को नहीं रख पाते हैं कपूत जिसे माँ की परवाह नहीं है, नरक में भी उसके लिये जगह नहीं हैमाँ का अनादर न माफ करेगा, माँका आशीष जो पायेगा वो सीधा स्वर्ग में जायेगा…
गर्व ना कर तू धन का ओ पगले, गाड़ी ये बंगले यहीं तो रहेंगे माता—पिता की ले ले दुआई, जीवन बनेगा तेरा सुखदाई जिसने नहींली माँ की दुआयें, हरदमवो पछतायेगा जो माँ की ना सुनेगा…..जोमाँ की ना सुनेगा
याद रखना माँ को जानने वाला ही महात्मा को जान सकता है।
डा जे केगर्गपूर्वसंयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर