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समाज का सच्चा व असली दर्पण होता है-‘मीडिया’

गेस्ट राइटर
/
April 7, 2023

सुनील कुमार महला
मीडिया आधुनिक समाज का दर्पण है। वास्तव में यह मीडिया ही है जो हमारे जीवन और उसके परिप्रेक्ष्य को आकार देने का काम करता है। सच तो यह है कि यह मीडिया ही होता है जो ‘जन के मत’ को तैयार करता है। वास्तव में मीडिया ही हमें यह बताता है कि हमारे आसपास और दुनिया क्या हो रहा है और क्या नहीं ? जिसे समाज में कोई छुपाने की कोशिश कर रहा होता है, मीडिया उसे समाज के समक्ष लाने का काम करता है। वास्तव में, मीडिया की अवधारणा आज के युग में अत्याधिक तेजी से विकसित हुई है और यह शब्द जनसंचार के लिए आधुनिक अर्थ में प्रयोग किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मीडिया में विभिन्न माध्यम शामिल हैं जिसके द्वारा सूचना अधिक लोगों तक पहुंचती है। वास्तव में, इन सभी माध्यमों में टेलीविजन रेडियो फिल्म समाचार पत्र सोशल नेटवर्किंग साइट्स तथा इण्टरनेट शामिल है। लेकिन यह विडंबना है कि आज मीडिया का स्वरूप लगातार बदलता चला जा रहा है, जो तथ्य समाज के सामने आने चाहिए, उन्हें छुपाया जा रहा है। पेड न्यूज को स्थान दिया जा रहा है। पत्रकारिता का धर्म आज पैसा कमाना हो गया है। आज सच्चाई को मीडिया में बहुत कम स्थान मिलता है, तथ्यों को पहले की भांति आज समाज के सामने नहीं लाया जा रहा है। मीडिया स्वतंत्र नजर नहीं आता है, उस पर कहीं न कहीं दबाव नजर आता है, यह गलत है, ऐसा नहीं होना चाहिए। हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘मीडिया द्वारा सरकार की नीतियों की आलोचना को राष्ट्रविरोधी नहीं करार दिया जा सकता है।मीडिया की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वो हर हाल और परिस्थितियों में सच को सामने रखें। लोकतंत्र की मज़बूती के लिए मीडिया का स्वतंत्र, निष्पक्ष रहना बहुत जरूरी है। मीडिया से सिर्फ सरकार का पक्ष रखने की उम्मीद नहीं की जाती है।’ मीडिया लोकतंत्र का चौथा पाया है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन अन्य पाये हैं, जिनकी चौथा स्तंभ रक्षा करता है। मीडिया वास्तव में, जनता तथा शासन दोनों के बीच एक माध्यम का काम करता है और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ(चौथा पाया) कहलाता है। अब यह चौथा स्तंभ अपनी पूरी निष्ठा, ईमानदारी व जिम्मेवारी से काम करे इसकी जिम्मेवारी भी आम जनता की ही बनती है कि जनता अपने विवेक से मीडिया द्वारा दी गई जानकारी का सही प्रयोग करे। वास्तव में, यहीं से हमारा लोकतंत्र मजबूत होता है। लोकतंत्र इन चार स्तंभों(विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका व प्रैस) पर टिका है इन चारों स्तंभो की मजबूती मिलकर एक मजबूत लोकतंत्र का निर्माण करती है। यह गलत है कि आज यदि कोई मीडिया सरकार की आलोचनात्मक रिपोर्टिंग करता है तो उसे कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। किसी मीडिया संगठन द्वारा आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को कभी भी सरकार विरोधी नहीं कहा जा सकता। दूसरे शब्दों में यह बात कही जा सकती है कि मीडिया द्वारा सरकार की आलोचना करने को देश विरोधी नहीं कहा जा सकता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद-19 हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, लेकिन आमतौर पर संवैधानिक संरक्षण होने के बावजूद राज्य और राज्य सरकार के विरुद्ध कहने लिखने में एक बहस जारी है। अभिव्यक्ति की आजादी हरेक भारतीय नागरिक का मूलभूत अधिकार है। लेकिन यह हमारे देश की विडंबना ही कही जा सकती है कि आज संवैधानिक संरक्षण के बावजूद भारत में विभिन्न पत्रकारों और मीडिया संस्थानों, मीडिया घरानों, प्रैस को कई तरह की चुनौतियों, परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पत्रकारिता के आदर्श, पत्रकारिता के लिए असली मानक सत्य, निडरता, निष्पक्षता धरे के धरे रह जाते हैं। समय के साथ आज की पत्रकारिता में गिरावट आई है और पत्रकारिता के मूल्यों का लगातार ह्वास होता चला जा रहा है। जो सत्य बाहर आना चाहिए, वह आज बाहर नहीं आने दिया जा रहा है। साम,दाम,दंड,भेद लगाकर आज विभिन्न पत्रकारों, पत्रकारिता को ऊंचे रसूख वाले लोगों, बेईमानों, भ्रष्टाचारियों, झूठों द्वारा दबाया जाता है और यह सरासर प्रैस की स्वतंत्रता का हनन ही होता है। आज पत्रकारों, प्रैस को धमकी, हमले आम बात है। आज सोशल मीडिया का युग है, डिजीटल युग में हर कोई आज एक पत्रकार है, ऐसे में आज सत्य, न्याय और समानता की तलाश के साथ लोकतंत्र के मानकों को बनाए रखने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। दरअसल यह मीडिया ही है जो एक मजबूत तार्किक जनमत तैयार कर सकने में सक्षम तंत्र है। मीडिया ही है जो जन(आमजन) के प्रतिनिधियों को अपने कार्य के प्रति, देश के प्रति,समाज के प्रति हमेशा जबाबदेह बनाए रखता है। मीडिया एक प्रहरी (वॉच डॉग) के रूप में निष्पक्ष, साहसी और निडर होकर सच्चाई से कार्य करता है। यह मीडिया ही होता है जो सरकार व सरकारी अधिकारियों के कार्यों की लगातार समीक्षा करता है और उन्हें उनके कार्यों के लिए जवाबदेह भी ठहराता है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब

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